विकसित भारत में समृद्ध होगा देश में हर इंसान, जानिए कैसे पूरी होगी 2047 तक 44 करोड़ टन भोजन की मांग

Edited By Mahima,Updated: 06 Mar, 2024 09:16 AM

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साल 2047 तक भारत का सपना विकसित राष्ट्र बनने का है। यह सपना साकार होते ही भारत की तस्वीर बदल चुकी होगी। अंदाजा है कि लोगों और किसानों के आत्मनिर्भर बनने से उनकी आय में अप्रत्याशित वृद्धि होगी। उनके खान-पान और रहन सहन में भी व्यापक बदलाव आएगा। ऐसे...

नेशनल डेस्क: साल 2047 तक भारत का सपना विकसित राष्ट्र बनने का है। यह सपना साकार होते ही भारत की तस्वीर बदल चुकी होगी। अंदाजा है कि लोगों और किसानों के आत्मनिर्भर बनने से उनकी आय में अप्रत्याशित वृद्धि होगी। उनके खान-पान और रहन सहन में भी व्यापक बदलाव आएगा। ऐसे में जानकारों का कहना है कि देश में खाद्यान्नों और मांग और आपूर्ति को लेकर कृषि क्षेत्र में अभी से ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है।

एक मीडिया रिपोर्ट में नीति आयोग के हवाले से बताया गया है कि 2047-48 में करीब 44 करोड़ टन की जरूरत होगी। जबकि कृषि मंत्रालय के मुताबिक 2023-24 फसल वर्ष (जुलाई-जून) में कुल खाद्यान्न उत्पादन 30.9 करोड़ टन रहने का अनुमान है। आयोग द्वारा कराए गए अध्ययन में यह भी कहा गया है कि न्यूट्री- सीरियल्स, दलहन और तिलहन का रकबा और पैदावार नहीं बढ़ी तो इनकी मांग को पूरा करना आसान नहीं होगा।

नीति आयोग ने कराया है अध्ययन
नीति आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गेहूं-चावल के मुकाबले दालों और मिलेट्स जैसे ज्यादा न्यूट्रिशनल वैल्यू वाले अनाज की मांग ज्यादा तेजी से बढ़ेगी। लोगों की आय बढ़ने से फल-सब्जियों, दालों, दूध और मीट-मछली का उपभोग भी बढ़ेगा। नीति आयोग की अध्यक्षता वाले एक वर्किंग ग्रुप ने लोगों के रोजमर्रा जिंदगी में उपभोग होने वाले खाद्य पदार्थों को लेकर एक अध्ययन किया है। राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र और नीति अनुसंधान संस्थान आई.सी.आर.-एन.आई.ए.पी. दिल्ली के प्रोफेसर पी.एस. बिरथल की अध्यक्षता में किए गए इस अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2047-48 तक सभी खाद्यानों की मांग 40 करोड़ 20 लाख टन की होगी। इसके अलावा अर्थव्यवस्था में तेजी आने से यह मांग 43 करोड़ 70 लाख टन तक जा सकती है।

अध्ययन में दिए गए हैं ये सुझाव
नीति आयोग द्वारा कराए गए अध्ययन में इन खाद्यान्नों की आपूर्ति के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं। इनमें कहा गया है कि गेहूं-चावल का रकबा घटाकर दलहन, तिलहन और न्यूट्री- सीरियल्स की खेती बढ़ानी चाहिए। न्यूनतम समर्थन मूल्य एम.एस.पी. पर गेहूं धान खरीद की सरकारी पॉलिसी से किसानों के लिए दूसरी फसलों का आकर्षण घटता है। इसलिए सरकार को इस नीति पर विचार करना चाहिए।

गेहूं-धान के अलावा दूसरी खेती की सिफारिश
किसान गेहूं-धान के बजाय दूसरी फसलों की खेती करें और इसके चलते उनकी आमदनी घटे तो सरकार उसकी भरपाई का उपाय कर सकती है। तीन दशकों से कुल बुआई रकबा 13.9 करोड़ हेक्टेयर के आसपास बना हुआ है। इसमें 51 फीसदी जमीन पर ही साल में एक से ज्यादा फसल की खेती होती है, जिसे बढ़ाने की आवश्यकता है। दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाना होगा।

खाद्य तेल आयात कम करने
भारत अपनी जरूरत का 60 फीसदी खाद्य तेल आयात करता है, इसकी खपत घटानी होगी। लोगों की सेहत सुधरेगी और सरकारी पैसे की भी बचत होगी। उन्नत बीज तैयार करने, उर्वरकों के उपयोग का तरीका बदलने, मौसम के हिसाब से टेक्नॉलजी अपनाने और कृषि कर्ज की बेहतर व्यवस्था करने की जरूरत है। एग्रीकल्चर रिसर्च में निवेश अभी एग्री जी.डी.पी. के 0.5 फीसदी पर है, इसे भी बढ़ाना होगा। विकसित देशों में यह 2-3 प्रतिशत है।

खाद्यान्न उत्पादन से जुड़ी खास बातें
-चालू फसल वर्ष में 31 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान है।
-44 करोड़ टन खाद्यान्नों उत्पादन विकसित भारत के सामने बड़ी चुनौती होगा।
-2021-22 में 33 करोड़ टन खाद्यान्न और 22.1 करोड़ टन दूध का उत्पादन हुआ था।
-इसी दौरान 31.7 करोड़ टन फल-सब्जी का उत्पादन हुआ था।
-2047-48 में खाद्यान्न उत्पादन 46-59 करोड़ टन रह सकता है, लेकिन गेहूं-चावल सरप्लस में होगा।




 

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