किसान संगठनों ने खारिज किया सरकार का प्रस्ताव, कानूनों की वापसी की मांग पर अड़े

Edited By Yaspal,Updated: 21 Jan, 2021 09:36 PM

farmers organizations rejected the government s proposal

किसान संगठनों ने बृहस्पतिवार को तीन कृषि कानूनों के क्रियान्वयन को डेढ़ साल तक स्थगित रखने और समाधान का रास्ता निकालने के लिए एक समिति के गठन संबंधी केन्द्र सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। संयुक्त किसान मोर्चा के तत्वावधान में किसान नेताओं ने...

नेशनल डेस्कः किसान संगठनों ने बृहस्पतिवार को तीन कृषि कानूनों के क्रियान्वयन को डेढ़ साल तक स्थगित रखने और समाधान का रास्ता निकालने के लिए एक समिति के गठन संबंधी केन्द्र सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। संयुक्त किसान मोर्चा के तत्वावधान में किसान नेताओं ने सरकार के इस प्रस्ताव पर सिंघू बॉर्डर पर एक मैराथन बैठक में यह फैसला लिया। इसी मोर्चा के बैनर तले कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर किसान संगठन पिछले लगभग दो महीने से आंदोलन कर रहे हैं।


किसान नेता दर्शन पाल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, ‘‘संयुक्त किसान मोर्चा की आम सभा में सरकार द्वारा रखे गए प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया।'' उन्होंने कहा, ‘‘आम सभा में तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को पूरी तरह रद्द करने और सभी किसानों के लिए सभी फसलों पर लाभदायक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए एक कानून बनाने की बात, इस आंदोलन की मुख्य मांगों के रूप में दोहराई गयी।

सयुंक्त किसान मोर्चा ने दावा किया कि अब तक इस आंदोलन में 147 किसानों की मौत हो चुकी है। उन्हें आम सभा ने श्रद्धाजंलि अर्पित की। बयान में कहा गया, ‘‘इस जनांदोलन को लड़ते-लड़ते ये साथी हमसे बिछड़े है। इनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।'' मोर्चा की बैठक अपराह्र लगभग ढाई बजे शुरू हुई थी। बुधवार को हुई 10वें दौर की वार्ता में सरकार ने किसान संगठनों के समक्ष तीन कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक स्थगित रखने और समाधान का रास्ता निकालने के लिए एक समिति के गठन का प्रस्ताव दिया था। दोनों पक्षों ने 22 जनवरी को फिर से वार्ता करना तय किया था।

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने वार्ता शुरू कर दी और इस कड़ी में उसने आठ राज्यों के 10 किसान संगठनों से संवाद किया। उच्चतम अदालत ने 11 जनवरी को तीन कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी और गतिरोध को दूर करने के मकसद से चार-सदस्यीय एक समिति का गठन किया था। फिलहाल, इस समिति मे तीन ही सदस्य हैं क्योंकि भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने खुद को इस समिति से अलग कर लिया था।

समिति ने एक बयान में कहा कि बृहस्पतिवार को विभिन्न किसान संगठनों और संस्थाओं से वीडियो कांफ्रेस के माध्यम से संवाद किया गया। इसमें कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना, तमिलनाडु, और उत्तर प्रदेश के 10 किसान संगठन शामिल हुए। इससे पहले इन कानूनों के खिलाफ गणतंत्र दिवस पर किसानों की ओर से प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली के संदर्भ में दिल्ली पुलिस और किसान संगठनों के बीच दूसरे चरण की बातचीत हुई जो बेनतीजा रही। किसान नेता अपने इस रुख पर कायम रहे कि 26 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी के व्यस्त बाहरी रिंग रोड पर ही यह रैली निकाली जाएगी।

पुलिस और किसान संगठनों के बीच बैठक के बाद ‘स्वराज अभियान' के नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि पुलिस चाहती थी कि किसान अपनी ट्रैक्टर रैली दिल्ली के बाहर निकालें। उन्होंने कहा, ‘‘हम दिल्ली के भीतर शांतिपूर्ण ढंग से अपनी परेड निकालेंगे। वे चाहते थे कि यह ट्रैक्टर रैली दिल्ली के बाहर हो, जो संभव नहीं है।'' सूत्रों ने बताया कि पुलिस अधिकारियों ने किसान संगठनों को इस बात के लिए मनाने का प्रयास किया कि वे ट्रैक्टर रैली बाहरी रिंग रोड की बजाय कुंडली-मानेसर पलवल एक्सप्रेस पर निकालें। इसी तरह एक बैठक किसान नेताओं और दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा पुलिस बलों के अधिकारियों ने बुधवार को यहां विज्ञान भवन में की थी।

उल्लेखनीय है कि हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर पिछले करीब दो महीने से आंदोलन कर रहे हैं। वे नये कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसानों का आरोप है कि इन कानूनों से मंडी व्यवस्था और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की प्रणाली समाप्त हो जाएगी और किसानों को बड़े कॉरपोरेट घरानों की ‘कृपा' पर रहना पड़ेगा। हालांकि, सरकार इन आशंकाओं को खारिज कर चुकी है।

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