तेल खरीद पर विदेश मंत्री जयशंकर की दो टूक – जिसे परेशानी हो, वो ना खरीदे

Edited By Updated: 24 Aug, 2025 05:52 AM

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भारत ने शनिवार को वाशिंगटन के इन आरोपों को जोरदार तरीके से खारिज कर दिया कि नई दिल्ली रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदकर और फिर परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों को यूरोप और अन्य स्थानों पर ऊंची कीमतों पर बेचकर “मुनाफाखोरी” में शामिल है।

नेशनल डेस्कः भारत ने शनिवार को वाशिंगटन के इन आरोपों को जोरदार तरीके से खारिज कर दिया कि नई दिल्ली रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदकर और फिर परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों को यूरोप और अन्य स्थानों पर ऊंची कीमतों पर बेचकर “मुनाफाखोरी” में शामिल है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि नयी दिल्ली की खरीद प्रक्रिया न सिर्फ उसके राष्ट्रीय, बल्कि वैश्विक हित में भी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत इस मामले में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना जारी रखेगा। 

जयशंकर ने कहा कि अमेरिका का पिछला प्रशासन नई दिल्ली के रूस से कच्चे तेल की खरीद का समर्थन करता था, क्योंकि इससे तेल बाजार में स्थिरता आती है। उन्होंने कहा, “यह हास्यास्पद है कि व्यापार-समर्थक अमेरिकी प्रशासन के लोग दूसरों पर व्यापार करने का आरोप लगा रहे हैं।” 

विदेश मंत्री ने कहा, “यह वाकई अजीब है। अगर आपको भारत से तेल या परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद खरीदने में कोई समस्या है, तो उसे न खरीदें। कोई आपको खरीदने के लिए मजबूर नहीं करता। लेकिन यूरोप खरीदता है, अमेरिका खरीदता है, लेकिन अगर आपको यह पसंद नहीं है, तो उसे न खरीदें।” ‘इकोनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम' में जयशंकर ने यह टिप्पणी उस समय की, जब उनसे अमेरिकी अधिकारियों के रूस के साथ ऊर्जा संबंधों को लेकर भारत की आलोचना किए जाने के बारे में पूछा गया। 

व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने बुधवार को कहा था कि भारत रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदकर और फिर परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों को यूरोप और अन्य स्थानों पर ऊंची कीमतों पर बेचकर “मुनाफाखोरी” में शामिल है। उन्होंने पहले भी इसी तरह के आरोप लगाए थे। जयशंकर ने आश्चर्य जताया कि यही मानदंड चीन और यूरोपीय संघ पर क्यों नहीं लागू किया गया, जो क्रमशः रूसी कच्चे तेल और रूसी एलएनजी के सबसे बड़े आयातक हैं। उन्होंने कहा, “भारत को निशाना बनाने के लिए जिन तर्कों का इस्तेमाल किया गया है, वे सबसे बड़े तेल आयातक, चीन और सबसे बड़े एलएनजी आयातक, यूरोपीय संघ पर लागू नहीं किए गए हैं।” 

विदेश मंत्री ने सवाल किया, “जब लोग कहते हैं कि हम युद्ध के लिए धन मुहैया करा रहे हैं या (राष्ट्रपति व्लादिमीर) पुतिन के खजाने में पैसा डाल रहे हैं... तो रूस-यूरोपीय संघ का व्यापार भारत-रूस व्यापार से बड़ा है। तो क्या यूरोप पुतिन के खजाने में पैसा नहीं डाल रहा है?” जयशंकर ने माना कि पिछले कुछ वर्षों में भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद बढ़ी है और कहा कि यह राष्ट्रीय हितों से प्रेरित है। उन्होंने कहा, “यह हमारा अधिकार है। मेरे राय में, हम कहेंगे कि रणनीतिक स्वायत्तता का यही अर्थ है।” 

विदेश मंत्री ने कहा, “हम तेल बाजार को स्थिर करने के लिए (रूस से) कच्चा तेल खरीद रहे हैं। हां, यह हमारे राष्ट्रीय हित में है। हमने कभी इसके विपरीत दावा नहीं किया, लेकिन हम यह भी कहते हैं कि यह वैश्विक हित में है।” जयशंकर ने कहा कि रूस से कच्चे तेल की खरीद के मुद्दे पर नयी दिल्ली और वाशिंगटन के पूर्ववर्ती प्रशासन के बीच चर्चा हुई थी। उन्होंने कहा, “बहुत स्पष्ट बातचीत हुई थी, जिसमें कहा गया था कि हमें आपकी खरीद से कोई समस्या नहीं है।” विदेश मंत्री ने रूसी कच्चे तेल पर जी-7 मूल्य सीमा का भी जिक्र किया। 

उन्होंने कहा, “आपके मूल्य सीमा निर्धारित करने का मतलब है कि आप स्वीकार करते हैं कि रूस के साथ तेल व्यापार किया जा रहा है। वरना आपको मूल्य सीमा की आवश्यकता ही नहीं होती।” जयशंकर ने कहा, “2022 में तेल की बढ़ती कीमतों के चलते बाजार में बहुत घबराहट थी। तेल की कीमत को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी घबराहट थी। और उस समय अमेरिकी प्रशासन में विभिन्न लोगों के साथ बातचीत हुई थी।” 

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