चुनाव के दौरान फ्री ऑफर्स जल्द लग सकती है रोक, ​​​​​​​सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से रास्ता निकालने को कहा

Edited By Yaspal,Updated: 26 Jul, 2022 08:58 PM

free offers may soon be banned during elections

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले ‘‘तर्कहीन मुफ्त उपहारों' के वादे को ‘‘गंभीर' करार देते हुए मंगलवार को आश्चर्य जताया कि केंद्र इस मुद्दे पर कोई रुख अपनाने से क्यों हिचकिचा रहा है

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले ‘‘तर्कहीन मुफ्त उपहारों'' के वादे को ‘‘गंभीर'' करार देते हुए मंगलवार को आश्चर्य जताया कि केंद्र इस मुद्दे पर कोई रुख अपनाने से क्यों हिचकिचा रहा है। अदालत ने केंद्र से यह भी पूछा कि क्या निर्वाचन आयोग के यह कहे जाने के बाद कि वह इस पर राजनीतिक दलों को नियंत्रित नहीं कर सकता, क्या इस मुद्दे से निपटने के लिए वित्त आयोग की राय मांगी जा सकती है।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा, "आप यह क्यों नहीं कहते कि आपका इससे कोई लेना-देना नहीं है और निर्वाचन आयोग को फैसला करना है। मेरा सवाल है कि भारत सरकार इसे गंभीर मुद्दा मान रही है या नहीं?'' न्यायमूर्ति एन वी रमण ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम नटराज से कहा, "आप कोई रुख अपनाने से क्यों हिचकिचा रहे हैं? आप कोई रुख अपनाएं और फिर हम तय करेंगे कि इन मुफ्त सुविधाओं को जारी रखा जाना है या नहीं। आप एक विस्तृत जवाबी (हलफनामा) दायर करें।"

पीठ चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त उपहारों का वादा करने के चलन के खिलाफ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता चाहता है कि निर्वाचन आयोग ऐसे दलों के चुनाव चिह्नों को जब्त करने और उनका पंजीकरण रद्द करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करे। पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई में चुनाव के दौरान और बाद में दिए जाने वाले मुफ्त उपहार के मुद्दे पर वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल से राय मांगी, जो एक अन्य मामले के संबंध में अदालत कक्ष में थे।

सिब्बल ने कहा, ‘‘यह एक गंभीर मामला है। सचमुच गंभीर! समाधान बहुत कठिन है लेकिन समस्या बहुत गंभीर है। यह वित्त आयोग है जो राज्यों को आवंटन देता है ... वे किसी राज्य के कर्ज और मुफ्त के उपहारों की मात्रा को संज्ञान में ले सकते हैं।'' उन्होंने कहा, "वित्त आयोग इससे निपटने के लिए उपयुक्त प्राधिकरण है। शायद हम इस पहलू को देखने के लिए आयोग को आमंत्रित कर सकते हैं। हम भारत सरकार से राज्यों को निर्देश जारी करने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। यह संभव नहीं है और यह एक राजनीतिक मुद्दा पैदा करेगा।"

सिब्बल ने कहा कि वित्त आयोग मुफ्त उपहारों, उनकी मात्रा और राज्य की वित्तीय स्थिति के संबंध में एक सुविज्ञ दृष्टिकोण ले सकता है जहां वादे को लागू करने की बात कही गई हो। प्रधान न्यायाधीश ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से कहा, "कृपया वित्त आयोग से पता करें कि क्या यह होता है। आप पता करें कि कौन प्राधिकरण है जहां हम बहस या कुछ शुरू कर सकते हैं। मैं इसे अगले सप्ताह सूचीबद्ध करूंगा। हम भारत सरकार को इस मामले में निर्देश प्राप्त करने का निर्देश देते हैं।"

शुरुआत में, निर्वाचन आयोग के वकील ने मामले में दायर जवाब का हवाला दिया और कहा कि चुनाव से पहले मुफ्त उपहार देना और परिणाम के बाद उनका निष्पादन राजनीतिक दलों के नीतिगत फैसले हैं। आयोग के वकील ने कहा कि निर्वाचन आयोग राज्य की नीतियों और फैसलों को विनियमित नहीं कर सकता है, जो जीतने वाली पार्टी द्वारा सरकार बनाने पर लिए जा सकते हैं।

दूसरी ओर, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने जोर देकर कहा कि इस मुद्दे को निर्वाचन आयोग द्वारा निपटाए जाने की जरूरत है। मामले को "गंभीर" बताते हुए, पीठ ने सरकार से कहा कि वह कोई रुख अपनाने में हिचकिचाए नहीं। जनहित याचिका दायर करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि निर्वाचन आयोग के पास राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्न की मान्यता समाप्त करने और जब्त करने की शक्ति है तथा उसका इस्तेमाल तर्कहीन मुफ्त उपहारों को रोकने के लिए किया जा सकता है।

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