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गाय का चारा न बदला तो और तपेगी दुनिया

Edited By vasudha,Updated: 19 Sep, 2019 10:49 AM

if cow feed does not change then the world will burn

गाय और भैंस जैसे मवेशी जब जुगाली करते हैं तो इससे बड़े पैमाने पर मीथेन गैस पैदा होती है। वायुमंडल में मीथेन (सीएच-4) की मात्रा का बढऩा पर्यावरण के लिए कार्बन डाईऑक्साइड (सीओ-2) से भी अधिक नुकसानदायक है...

नेशनल डेस्क: गाय और भैंस जैसे मवेशी जब जुगाली करते हैं तो इससे बड़े पैमाने पर मीथेन गैस पैदा होती है। वायुमंडल में मीथेन (सीएच-4) की मात्रा का बढऩा पर्यावरण के लिए कार्बन डाईऑक्साइड (सीओ-2) से भी अधिक नुकसानदायक है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एक शोध में सामने आया है कि जुगाली करते वक्त ये मवेशी लगातार मीथेन छोड़ते हैं और दुनियाभर में इसकी वजह इनका चारा है। अगर चारे में बदलाव कर दिया जाए तो इस समस्या को 99 फीसदी तक कम किया जा सकता है। 

 

इस खतरे को ऐसे समझें

ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा करने वाली गैसों में से मीथेन एक प्रमुख गैस है, ग्रीन हाउस गैसें धरती पर क्लाइमेट चेंज, धरती के गर्म होने और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का प्रमुख कारण हैं। 

  • 84 फीसदी अधिक तेजी से मीथेन धरती को गर्म करती है कार्बनडाई ऑक्साइड की तुलना में।
  • 20 फीसदी बीमारियां मीथेन की वजह से होती हैं, जितनी कुल ग्रीन हाउस गैसों की वजह से बीमारियां होती हैं।
  • 150 फीसदी मीथेन 1750 के बाद अब तक वायुमंडल में बढ़ चुकी है और इसकी वजह मानव की गतिविधियां हैं।
  • 1 8 भाग हमारे वायुमंडल में प्रति दस लाख हिस्से में मीथेन होती है। 


गाय के चार पेट का सच और मीथेन का संबंध
यह कहावत है कि गाय के चार पेट होते हैं। असल में गाय के पेट में चार चैंबर होते हैं। सबसे पहला चैंबर रूमेण होता है। गाय जब चर रही होती है तो वह अपना सारा खाना बिना चबाये तेजी से निगलती जाती है। यह चारा रूमेण में ही इकट्ठा होता है। गाय एक बार में 50 गैलन चारा इस चैंबर में रख सकती है। इस चैंबर में कई तरह के पाचक एंजाइम आकर चारे में मिलते हैं। वे इस सख्त चारे को सेल्यूलोज में बदल देते हैं। इस चैंबर में चारा 15 से 48 घंटे तक रहता है। गाय फिर रूमेण चैंबर से यह चारा मुंह में वापस लाकर चबाते हुए जुगाली करती है। एंजाइम युक्त यह चारा मुंह में लार के साथ मीथेन पैदा करता है। यह चबा हुआ चारा ही पेट के दूसरे हिस्से रेटिकुलम में जाता है। यहां इसे और पचाया जाता है। उसके बाद चारा ओमासुम हिस्से में जाता है, जहां इससे पानी और पोषक तत्व अलग होते हैं। पेट का आखिरी हिस्सा एबोमासुम होता है, इसमें सभी जरूरी पोषक तत्वों को रोककर रक्त में भेजा जाता है और बाकी बचे हिस्से को आतों की ओर भेज दिया जाता है। इस तरह गाय के पेट में भोजन को पाचन क्रिया से गुजरने में एक से तीन दिन लगते हैं। 

 

समुद्री बूटी है समस्या का समाधान
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की शोध कर रही टीम के सदस्य ब्रिएना रुके के अनुसार भूसा और घास का चारा काफी मात्रा में मीथेन पैदा करता है। मवेशियों की खुराक बदलकर इसे काफी हद तक कम किया जा सकता है। चारे के रूप में अगर मवेशियों को समुद्री बूटी एस्पारागोप्सिस टेक्सिफोर्मिस दी जाए तो मीथेन की समस्या को 99 फीसदी तक कम किया जा सकता है। यह समुद्री बूटी लाल रंग की होती है।  प्रमुख शोधकर्ता और इकोलॉजिस्ट एर्मियास केबरिएब के अनुसार शोध के दौरान कृत्रिम पेट में इस समुद्री बूटी से मीथेन उत्सर्जन 99 फीसदी कम हुआ।

गायों पर प्रयोग का नतीजा 
इस समुद्री बूटी को जब चारे में 5 फीसदी मिलाया गया तो मीथेन उत्सर्जन 95 फीसदी तक कम पाया गया। चारे में आधा फीसदी की मामूली मात्रा में टेक्सिफोर्मिस मिलाने पर भी मीथेन उत्सर्जन 27 फीसदी कम हुआ और एक फीसदी मात्रा में तो यह 67 फीसदी कम पाया गया। ऐसे में वायुमंडल में मीथेन की मात्रा नियंत्रित करने में यह समुद्री बूटी कारगर भूमिका निभा सकती है। 

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