world explosive: धरती की छाती फटने को तैयार! वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी से कांपी दुनिया

Edited By Updated: 09 Jul, 2025 08:26 AM

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जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ बर्फबारी या समुद्री स्तर पर ही नहीं दिख रहा, बल्कि अब पृथ्वी के अंदर की आग भी इससे प्रभावित हो रही है। दुनियाभर के वैज्ञानिक अब एक नई चिंता में डूबे हैं—ग्लेशियरों के पिघलने से ज्वालामुखियों की सक्रियता बढ़ रही है। यह एक...

नेशनल डेस्क:  जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ बर्फबारी या समुद्री स्तर पर ही नहीं दिख रहा, बल्कि अब पृथ्वी के अंदर की आग भी इससे प्रभावित हो रही है। दुनियाभर के वैज्ञानिक अब एक नई चिंता में डूबे हैं—ग्लेशियरों के पिघलने से ज्वालामुखियों की सक्रियता बढ़ रही है। यह एक ऐसा चक्र है जो धरती के संतुलन को हिला सकता है।

धरती के कई हिस्सों में ऐसे ज्वालामुखी मौजूद हैं, जिनके आसपास भारी बर्फ की चादरें फैली हुई हैं। अंटार्कटिका, रूस, न्यूज़ीलैंड और अमेरिका जैसे क्षेत्रों में करीब 245 सक्रिय ज्वालामुखी ऐसे इलाकों में हैं जहां उनके ऊपर या आसपास ग्लेशियर मौजूद हैं। ये ग्लेशियर लाखों टन बर्फ का भार अपने नीचे की ज़मीन और मैग्मा परतों पर डालते हैं, जिससे ज्वालामुखी निष्क्रिय बने रहते हैं। लेकिन जैसे ही ये बर्फ की चादरें पिघलती हैं, धरती के भीतर की ताकतें बाहर आने लगती हैं।

हाल ही में प्राग में हुई 'गोल्डश्मिट कॉन्फ्रेंस 2025' में पेश एक शोध में यह बताया गया कि ग्लेशियरों के पिघलने से ज्वालामुखियों के फटने की संभावना न केवल बढ़ जाती है, बल्कि वे पहले से ज्यादा तीव्र और विस्फोटक होते हैं। वैज्ञानिकों ने इसे "आइस-अनलोडिंग वोल्कैनिज्म" नाम दिया है, जिसमें बर्फ हटने से ज्वालामुखी की ऊर्जा को कोई रोक नहीं पाता।

चिली के एक ज्वालामुखी पर किए गए शोध में यह पाया गया कि जब-जब वहां बर्फ कम हुई, ज्वालामुखी ज्यादा सक्रिय हो गया। वहीं, आइसलैंड में जब पिछला हिमयुग खत्म हुआ, तो वहां ज्वालामुखीय विस्फोटों की दर 30 से 50 गुना तक बढ़ गई। यह बताता है कि ज्वालामुखी बर्फ के बोझ से कितने दबे रहते हैं और जैसे ही यह बोझ हटता है, भीतर की गैसें और मैग्मा तेजी से सतह की ओर दौड़ते हैं।

यह प्रक्रिया एक खतरनाक चक्र भी बना सकती है—ग्लेशियर पिघलते हैं, जिससे ज्वालामुखी फटते हैं, जिससे और गर्मी पैदा होती है और इससे और अधिक ग्लेशियर पिघलते हैं। यह एक पॉजिटिव फीडबैक लूप है जो जलवायु संकट को और भी गहराता है।

विशेषज्ञों की मानें तो भविष्य में अंटार्कटिका, रूस और न्यूज़ीलैंड जैसे क्षेत्रों में बड़े विस्फोटों का खतरा बढ़ सकता है, क्योंकि यहां की बर्फ की परतें सबसे मोटी हैं।

हालांकि भारत में ज्वालामुखियों की यह सीधी आशंका नहीं है, लेकिन हिमालयी ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना भी विनाशकारी है। उत्तराखंड और हिमाचल जैसे राज्यों में इससे भूस्खलन, बाढ़ और ग्लेशियल झीलों के फटने जैसी आपदाएं बढ़ रही हैं।

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