24 साल बाद इंसाफ...ISRO साइंटिस्ट नम्बी नारायण की दर्दभरी कहानी, लगा था जासूसी का आरोप

Edited By Seema Sharma,Updated: 06 Apr, 2021 01:57 PM

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सुप्रीम कोर्ट भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिक नम्बी नारायण से जुड़े 1994 के जासूसी मामले की सुनवाई अगले हफ्ते करेगा। शीर्ष अदालत ने 14 सितंबर 2018 को पूर्व जस्टिस डीके जैन की अध्यक्षता में एक तीन-सदस्यीय उच्च स्तरीय जांच समिति गठित...

नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिक नम्बी नारायण से जुड़े 1994 के जासूसी मामले की सुनवाई अगले हफ्ते करेगा। शीर्ष अदालत ने 14 सितंबर 2018 को पूर्व जस्टिस डीके जैन की अध्यक्षता में एक तीन-सदस्यीय उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की थी, जिसने अपनी रिपोर्ट हाल ही में सौंपी है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रमासुब्रमण्यम की खंडपीठ से तत्काल सुनवाई की मांग की लेकिन उसने अगले हफ्ते इसकी सुनवाई की तारीख मुकर्रर की।

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बता दें कि इस मामले में नम्बी नारायण को सीबीआई ने क्लीनचिट दे दी थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें 1998 में ही बरी कर दिया था, लेकिन अब इस मामले में उनकी गैरकानूनी गिरफ्तारी के लिए तत्कालीन वरिष्ठ अधिकारियों पर गाज गिरने की आशंका है। यही नहीं शीर्ष अदालत ने इसरो के पूर्व वैज्ञानिक के ‘घोर अपमान' के लिए केरल सरकार को उन्हें 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था। इस मामले के राजनीतिक परिणाम भी देखने को मिले थे जब कांग्रेस के एक वर्ग ने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिवंगत के करुणाकरन को इस मुद्दे को लेकर निशाना बनाया था जिससे अंतत: उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। 

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यह है पूरा मामला
साल 1994 में इसरो में जासूसी कांड की बात सामने आई थी। तब आरोप लगा था कि नम्बी नारायण, डी. शशिकुमार समेत चार लोगों ने इसरो की सीक्रेट्स पाकिस्तान समेत कई दूसरे देशों को बेचे। अक्तूबर 1994 में केरल पुलिस ने मालदीव की महिला मरियम राशिदा को पकड़ा। पुलिस ने आरोप लगाया कि इसरो के वैज्ञानिकों ने मालदीव की महिलाओं के जरिेए इसरो के रॉकेट के सीक्रेट दूसरे देशों को बेचे और इस मामले में  नम्बी नारायण, डी. शशिकुमार को गिरफ्तार किया। बाद में इस मामले की जांच इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) को सौंपी गई। साथ ही सीबीआई की भी इस केस में एंट्री हुई। दो साल बाद 1996 में सीबीआई ने बताया कि वैज्ञानिकों पर लगाए गए आरोप फर्जी थे। कोई भी सीक्रेट्स किसी दूसरे देश को नहीं बेचे गए। सीबीआई की रिपोर्ट के बाद नम्बी नारायण समेत सभी को रिहा कर दिया गया। 1998 में केरल सरकार ने इस मामले की फिर से जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करने से इंकार कर दिया। साथ केरल सरकार को आदेश दिया कि नम्बी नारायण को 1 लाख रुपए मुआवजा दिया जाए। नम्बी नारायण ने राष्ट्रीय मानवाधिकार का दरवाजा खटखटाया और कहा कि उनको गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया और यातनाएं दी गईं, इसके लिए उन्होंने 10 लाख रुपए मुआवजे की मांग की। मानवाधिकार आयोग ने 2001 में नम्बी नारायण को 10 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया। मानवाधिकार आयोग के फैसले के खिलाफ केरल सरकार हाईकोर्ट गई लेकिन वहां भी कोर्ट ने 10 लाख मुआवजे के फैसले को सही ठहराया। इसके बाद मामला सुप्रीम कर्ट पहुंचा जहां सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नम्बी नारायण को 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया।

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बिना कारण झेली यातनाएं
सोमवार को सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने त्वरित सुनवाई के लिए इस मामले का उल्लेख चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष किया। मेहता ने पीठ को बताया कि समिति ने रिपोर्ट दायर कर दी है और इसपर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि यह एक “राष्ट्रीय मुद्दा” है। पीठ ने कहा कि वह इसे महत्वपूर्ण मामला मानती है लेकिन त्वरित सुनवाई आवश्यक नहीं है, हम इस पर अगले हफ्ते सुनवाई करेंगे। नम्बी नारायण को निर्दोष होते हुए भी यातनाएं और अपमान सहना पड़ा।

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