किसी के भी पक्ष में जा सकते हैं कर्नाटक के चुनाव परिणाम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Apr, 2018 02:02 AM

karnataka assembly election results can go in favor of anyone

अगले महीने होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले ओपिनियन पोल्स ने अपनी भविष्यवाणियां करनी शुरू कर दी हैं। इनमें से नवीनतम इंडिया टुडे तथा कार्वी इनसाइट्स द्वारा की गई हैं,

नेशनल डेस्कः अगले महीने होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले ओपिनियन पोल्स ने अपनी भविष्यवाणियां करनी शुरू कर दी हैं। इनमें से नवीनतम इंडिया टुडे तथा कार्वी इनसाइट्स द्वारा की गई हैं, जिसमें 224 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 90-101 सीटें तथा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 78-86 सीटें मिलने के साथ एक त्रिशंकु विधानसभा बनने की भविष्यवाणी की गई है। पोल के अनुसार बाकी की अधिकतर सीटें जनता दल (सैकुलर) अथवा जद (एस) को मिलने की भविष्यवाणी की गई है।

पाठकों को याद होगा कि 2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येद्दियुरप्पा के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप लगने के बाद भाजपा में कई विभाजन हुए थे। येद्दियुरप्पा ने अपनी खुद की पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष (के.जे.पी.) बनाने के लिए भाजपा छोड़ दी थी। येद्दियुरप्पा मंत्रिमंडल के एक सदस्य बी.श्रीराममुलु भी अपनी खुद की पार्टी (बी.एस.आर. कांग्रेस) बनाने के लिए भाजपा से अलग हो गए।

इस फूट से भाजपा को 2013 के चुनावों में काफी धक्का पहुंचा था और उसकी सीटें 40 तक सिमट गई थीं। जद (एस) दूसरे स्थान पर रही थी। कांग्रेस को आराम से बहुमत मिल गया था।

के.जे.पी. तथा बी.एस.आर.सी. बाद में 2014 के आम चुनावों से पूर्व भाजपा में लौट आई थी तथा येद्दियुरप्पा और श्रीराममुलु दोनों ने भाजपा की टिकटों पर लोकसभा चुनाव जीते। मोदी लहर के चलते भाजपा कर्नाटक में 28 लोकसभा सीटों में से 17 जीतने में सफल रही।

2013 के चुनावों के बाद ‘इलैक्शन मैट्रिक्स’ ने टिप्पणी की थी कि ‘‘हमारे अनुमान दर्शाते हैं कि भाजपा, के.जे.पी. तथा बी.एस.आर.सी. ने एक पार्टी के तौर पर चुनाव लड़े और वेे मिल कर 87 सीटें प्राप्त करेंगी, जबकि कांग्रेस को 91 सीटें प्राप्त होंगी, जो त्रिशंकु विधानसभा का कारण बनेगा।’’ इंडिया टुडे-कार्वी इनसाइट्स द्वारा की गई आंकड़ों बारे भविष्यवाणी उल्लेखनीय तौर पर इसके काफी करीब थी।

दूसरे शब्दों में, यदि भाजपा में बंटवारे तथा पुन: विलय को ध्यान में रखते हैं तो कर्नाटक में 2013 से लेकर अब तक अधिक बदलाव नहीं हुआ है। यहां तक कि इंडिया टुडे तथा कार्वी इनसाइट्स द्वारा की गई मत हिस्सेदारी बारे भविष्यवाणी भी 2013 की दलीय स्थिति से बहुत भिन्न नहीं है।

जैसा कि इलैक्शन मैट्रिक्स ने अतीत में कई बार आकलन किया है। भारत में चुनावों को लेकर जो चीज भविष्यवाणी को कठिन बनाती है, वह है वोटों का सीटों में परिवर्तित होना। भारत चुनावी प्रणाली में निर्वाचन क्षेत्र में मतों का बंटवारा अधिक महत्व रखता है, बजाय इसके कि कोई पार्टी कुल कितनी वोटें प्राप्त करती है।

कर्नाटक में भी 2008 के चुनावों में भाजपा मत हिस्सेदारी के मामले में कांग्रेस से पीछे थी (जिसमें दोनों को 33.9 तथा 34.6 प्रतिशत मत हिस्सेदारी मिली) मगर 224 सीटों में से 110 सीटें जीत कर उसे पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ (कांग्रेस ने 79 सीटें जीतीं)। भाजपा को इस तथ्य से मदद मिली कि उसका समर्थन आधार राज्य के उत्तरी तथा तटीय क्षेत्रों में और बेंगलूर के आसपास केन्द्रित था जबकि कांग्रेस का समर्थन आधार अधिक व्यापक था।

हालांकि कई राजनीतिक घटनाक्रमों के चलते पारम्परिक समर्थन आधार में बदलाव हो रहा है। इस वर्ष के प्रारंभ में राज्यसभा चुनावों से पूर्व जद (एस) के 7 सांसद कांग्रेस में शामिल हो गए और उसी के टिकट पर चुनाव लड़ा। फिर कांग्रेस ने ङ्क्षलगायतों को अल्पसंख्यक धार्मिक समूह का दर्जा देने का प्रस्ताव रख कर जातीय कार्ड खेला। लिंगायत एक प्रभावशाली जाति है, जो पारंपरिक रूप से भाजपा का समर्थन करती आई है। यहां पर भाजपा ने पुराने मैसूर क्षेत्र, जहां वह पारम्परिक रूप से कमजोर है, में पैठ बनाने के लिए कांग्रेस में दल-बदल करवाया।

जहां इससे निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्येक पार्टी के लिए वोटों के बंटवारे में नाटकीय बदलाव आ सकता है, हम फिर भी  यह भविष्यवाणी करेंगे कि कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत (224 सीटों में से 112) प्राप्त कर सकती है। ऐसा करने के लिए हम यह अनुमान लगाएंगे कि निर्वाचन क्षेत्रों में मतों का बंटवारा 2013 के पैटर्न के अनुरूप ही होगा, जिसमें भाजपा को के.जे.पी. तथा बी.एस.आर.सी. की सभी वोटें मिलने का अनुमान लगाया गया है।

हमारी गणना यह बताती है कि कांग्रेस को 112 की जादुई संख्या को छूने के लिए लोकप्रिय मतों के कुल 40 प्रतिशत की जरूरत होगी। दूसरी ओर भाजपा को 112 की संख्या तक पहुंचने के लिए लोकप्रिय मतों के कुल केवल 37 प्रतिशत की जरूरत होगी, यदि पार्टी के वोटों का बंटवारा 2013 के पैटर्न के ही अनुरूप हो।

दूसरी तरह से देखें तो कांग्रेस को 2013 में 36.6 प्रतिशत लोकप्रिय मत मिले थे और इसे अपने पक्ष में और 3.4 प्रतिशत मत हिस्सेदारी की जरूरत है ताकि पूर्ण बहुमत प्राप्त कर सके। तीनों पाॢटयां जो अब भाजपा बनाती हैं, को 2013 में मिल कर 32.5 प्रतिशत वोट मिले थे तथा इसे भी बहुमत का  आंकड़ा छूने के लिए अपने पक्ष में मात्र 3.5 प्रतिशत - कार्तिक शशिधर

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