कांग्रेस के पांच विधायकों ने पूछे छह सौ से ज्यादा प्रश्न

Edited By Anil dev,Updated: 04 Oct, 2018 05:32 PM

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मध्यप्रदेश की 14वीं विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के पांच विधायकों ने छह सौ से अधिक प्रश्न पूछे। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉफ्र्स (एडीआर) और मध्यप्रदेश इलेक्शन वॉच ने एक विश्लेषण के आधार पर यह जानकारी दी है।

भोपाल: मध्यप्रदेश की 14वीं विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के पांच विधायकों ने छह सौ से अधिक प्रश्न पूछे। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉफ्र्स (एडीआर) और मध्यप्रदेश इलेक्शन वॉच ने एक विश्लेषण के आधार पर यह जानकारी दी है। एडीआर की रोली शिवहरे ने आज यहां मीडिया से चर्चा में बताया कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायकों ने औसतन 432 प्रश्न पूछे। इसके बाद कांग्रेस ने 350, निर्दलियों ने 250 और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायकों ने 197 सवाल औसतन किए। उन्होंने बताया कि कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत ने सबसे अधिक 620 प्रश्न किए। इसके बाद उनकी ही पार्टी के मुकेश नायक ने 613, डॉ गोविंद सिंह ने 612,  आरिफ अकील ने 608 और निशंक जैन ने 603 सवाल पूछे। 

209 विधायकों ने कुल किए 51 हजार 389 सवाल
सूचना का अधिकार से मिले डाटा का विश्लेषण करने के बाद एडीआर ने दावा किया कि 209 विधायकों ने कुल 51 हजार 389 सवाल किए। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने 260 सवाल किए और एकमात्र एंग्लो इंडियन सदस्य ने कोई प्रश्न नहीं पूछा। सबसे कम सवाल करने वालों में सत्तारूढ़ भाजपा के पांच सदस्य रहे। इनमें रमेश मेंदोला तीन प्रश्न के साथ सबसे निचले स्थान पर हैं। इनके बाद नागर सिंह चौहान (12), नानाभाऊ माहोड़ (14), मथुरालाल (15) और राजेंद्र मेश्राम (19) का नंबर रहा। चौदहवीं विधानसभा में कुल 135 बैठकें हुई। वर्ष 2017 में 33 बैठकों में सबसे ज्यादा 14 हजार 826 और वर्ष 2014 में 30 बैठकों में सबसे कम तीन हजार 363 प्रश्न आए। वर्ष 2015 में 20 बैठकों में 12 हजार 86, वर्ष 2016 में 37 बैठकों में 13 हजार 701 और वर्ष 2018 में 15 बैठकों में सात हजार 413 सवाल पूछे गए। 

 विधानसभा में किए गए कुल 142 विधेयक पेश 
सबसे ज्यादा सवाल लोक निर्माण, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और राजस्व विभाग से संबंधित थे, जबकि सबसे कम प्रश्न सामान्य प्रशासन, सहकारिता और आदिम जाति कल्याण के बारे में थे। एडीआर के अनुसार इस विधानसभा में कुल 142 विधेयक पेश किए गए, जिनमें से 135 पारित कर दिए गए। सबसे अधिक विधेयक वित्त, वाणिज्यिक कर और नगरीय विकास एवं पर्यावरण विभाग के थे, जबकि सबसे कम विधेयक सामाजिक विकास से जुड़े विभागों के थे। 

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