कांग्रेस में ‘युवा तुर्कों’ से खिलवाड़! खतरे अभी और भी हैं...

Edited By Anil dev,Updated: 12 Mar, 2020 10:27 AM

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मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने साबित किया है कि ‘युवा तुर्कों’ को किनारे लगाकर उनसे खिलवाड़ कितना खतरनाक हो सकता है। कांग्रेस के लिए अभी आगे और भी खतरे हैं। सिंधिया के कांग्रेस छोडऩे के बाद अब ऐसी अफवाहें भी जोर पकड़ रही हैं

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने साबित किया है कि ‘युवा तुर्कों’ को किनारे लगाकर उनसे खिलवाड़ कितना खतरनाक हो सकता है। कांग्रेस के लिए अभी आगे और भी खतरे हैं। सिंधिया के कांग्रेस छोडऩे के बाद अब ऐसी अफवाहें भी जोर पकड़ रही हैं कि कुछ और युवा तुर्क पार्टी छोड़ सकते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने त्यागपत्र में सोनिया गांधी से कहा है कि इस रास्ते पर वह पिछले साल से ही आगे बढ़ रहे थे। इससे साफ  है कि खुद के खिलाफ मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के हाथ मिलाने से वह असहज महसूस कर रहे थे। 


हरियाणा के कांग्रेस विधायक कुलदीप बिश्नोई ने ट्वीट करते हुए कहा कि सिंधिया का जाना बड़ा नुक्सान है और दूसरे क्षमतावान कांग्रेस नेता भी पार्टी में अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। बिश्नोई ने एक अन्य ट्वीट में कांग्रेस को सुझाव दिया कि देश की सबसे पुरानी पार्टी को अब ऐसे युवा नेताओं को आगे बढ़ाना चाहिए जिनमें मेहनत से काम करने की क्षमता है। राजस्थान में भी कांग्रेस में अंदरूनी खटपट छिपी नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद सचिन पायलट पर सीनियर अशोक गहलोत को तवज्जो दी गई। अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और डिप्टी सी.एम. पायलट कई मौकों पर गहलोत पर अपरोक्ष हमले करते नजर आते हैं। पायलट जैसे तमाम नेता हैं जो चाहते हैं कि उनकी आवाज को ज्यादा सम्मानपूर्वक सुना जाए। कांग्रेस में अंदरूनी तकरार से यह बात भी साफ  है कि राज्य इकाई में नए नेताओं को चुनने में पार्टी नाकाम रही है।  कांग्रेस सिंधिया की ताकत का अंदाजा लगाने में बुरी तरह विफल रही। उसे मध्य प्रदेश सरकार पर संकट का अनुमान नहीं था।  


18 साल की राजनीति ने सिंधिया को क्या-क्या दिया? कांग्रेस ने जारी की लिस्ट
कांग्रेस ने एक लिस्ट जारी करते हुए कहा कि पार्टी में सिंधिया को सब कुछ दिया गया, बावजूद इसके उन्होंने पाला बदल लिया।
 बुधवार सुबह मध्य प्रदेश कांग्रेस की तरफ  से ज्योतिरादित्य सिंधिया से जुड़ा एक ट्वीट किया गया जिसमें बताया गया कि सिंधिया को राजनीतिक तौर पर कांग्रेस में क्या-क्या दिया गया? साथ ही कांग्रेस ने यह भी पूछा है कि इतना कुछ देने के बावजूद मोदी और शाह की शरण में सिंधिया क्यों चले गए?
* 17 साल सांसद बनाया
* 2 बार केंद्रीय मंत्री बनाया
* मुख्य सचेतक बनाया
* राष्ट्रीय महासचिव बनाया
* यू.पी. का प्रभारी बनाया
* कार्यसमिति सदस्य बनाया
* चुनाव अभियान प्रमुख बनाया


‘महाराज’ की एंट्री को कैसे पचा पाएंगे शिवराज?
‘माफ  करो महाराज! हमारा नेता शिवराज’, मध्य प्रदेश में भाजपा ने पिछला विधानसभा चुनाव इसी नारे के साथ लड़ा था। कांग्रेस के ‘पाप’ गिनाते हुए शिवराज की उपलब्धियों का खूब बखान किया गया था। प्रदेश में भले ही कांग्रेस ने सरकार बना ली पर पार्टी में ज्योतिरादित्य और भाजपा में शिवराज दोनों ही नेता नेपथ्य में चले गए। आज हालात पूरी तरह बदल गए हैं और उन्हीं ‘महाराज’ ने हाथ में कमल थाम लिया है। ऐसे में राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि पार्टी में ‘महाराज’ की एंट्री को शिवराज कैसे पचा पाएंगे? मार्च 2017 में एक चुनावी रैली के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंधिया राजघराने पर हमला बोला था।


सिंधिया का कांग्रेस के ‘महाराज’ से भाजपा नेता तक का सफर
कभी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बेहद करीबी रहे च्योतिरादित्य सिंधिया आखिर भाजपा में क्यों चले गए यह चर्चा का विषय है। सिंधिया के राजनीतिक करियर पर एक नजर डालते हुए समझिए कांगे्रस के ‘महाराज’ से भाजपा नेता बनने का सफर-


31 साल की उम्र में पहली बार बने सांसद
ग्वालियर घराने के माधव राव सिंधिया कांग्रेस सांसद थे। 30 सितम्बर 2001 को हादसे में माधव राव सिंधिया की जान चली गई और सीट खाली हो गई। दिसम्बर 2001 में ज्योतिरादित्य सिंधिया आधिकारिक रूप से कांग्रेस में शामिल हुए और गुना सीट से ही उपचुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2004 के लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया फिर से चुनाव जीते।

2007 में केंद्र सरकार में बने मंत्री
2007 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में ज्योतिरादित्य सिंधिया को सूचना प्रसारण एवं संचार विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया। 

लोकसभा चुनाव में हार 
2019 लोकसभा चुनाव से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते थे। यह पद तो उन्हें नहीं मिला लेकिन उन्हें पश्चिमी यू.पी. का प्रभारी बना दिया गया। पश्चिमी यू.पी. में सिंधिया ने काम भी किया लेकिन वह कांग्रेस को एक भी सीट नहीं जिता सके। खुद अपनी गुना सीट पर वह अपने ही खास रहे के.पी. सिंह यादव से चुनाव हार गए। 

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