Edited By Seema Sharma,Updated: 26 Apr, 2019 12:57 PM
दिल्लीवासियों को आजकल दिन में एक फोन ऐसा आता है जिसकी आवाज से लोग इतने परिचित हो चुके हैं कि उसका पहला हैलो सुनते ही फोन काट देते हैं। वो हैलो है दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की।
कोलकाता: चुनावी सीजन चल रहा है और मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दल किसी भी तरह की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते। दिल्लीवासियों को आजकल दिन में एक फोन ऐसा आता है जिसकी आवाज से लोग इतने परिचित हो चुके हैं कि उसका पहला हैलो सुनते ही फोन काट देते हैं। वो हैलो है दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की। 'हेलो जी... मैं अरविंद केजरीवाल बोल रहा हूं जी।' इस आवाज से राजधानी दिल्ली का लगभग हर शख्स परिचित हो चुका है। दरअसल आम आदमी पार्टी सीएम केजरीवाल की रिकॉर्डेड आवाज को फोन कॉल्स के जरिए आम लोगों से वोट की अपील कर रही है। वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लोगों तक पहुंचना का यह तरीका नहीं भाया इसलिए वह केजरीवाल की तरह लोगों से फोन पर वोट की अपील नहीं कर रही हैं।
पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का मानना है कि पर्सनल कॉल के जरिए लोगों तक पहुंचने के तरीके फायदे की बजाए नुकसान अधिक देते हैं क्योंकि ऐसे फोन कॉल्स से लोग परेशान हो जाते हैं और फिर गुस्से में उनकी पार्टी को वोट नहीं देते। ममता की नजर में यह 'निजता का उल्लंघन' है कि किसी को पर्सनल कॉल करके तंग किया जाए। फोन कॉल्स से लोग बुरा मान जाते हैं इसलिए तृणमूल के कैम्पेन मैनेजर ने घर-घर पहुंचकर वोट मांगने का तरीका चुना है। सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि हम लोगों की निजता का सम्मान करते हैं और इसमें दखल नहीं देना चाहते हैं। इसके साथ ही हमारा यह भी मानना है कि डेटा का गलत यूज नहीं होना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि 2004 में फोन कॉल्स के जरिए वोटर्स तक पहुंचने की टेली-कैम्पेन रणनीति शुरू की गई थी। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की रेकॉर्डेड आवाज में मतदाताओं से वोट की अपील की जाती थी। पहली बार चुनावों के दौरान जब 'मैं अटल बिहारी वाजपेयी बोल रहा हूं'...की आवाज लोगों के फोन पर जब सुनाई देती तो लोग चौंक जाते थे कि आखिर देश के प्रधानमंत्री के पास हमारा नंबर कैसे पहुंच गया। लोग खुश भी होते थे और हैरान भी। साल-दर-साल फोन कॉल्स का ट्रेंड बढ़ता गया और उसके बाद तो कई दलों ने इसका सहारा लिया।