Edited By Seema Sharma,Updated: 21 Jun, 2018 09:09 AM
यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे जिन्होंने 1 मार्च, 2015 को ट्वीट किया था कि पी.डी.पी.-भाजपा सरकार जम्मू-कश्मीर के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक ऐतिहासिक अवसर है और सरकार राज्य को प्रगति की नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी।
नेशनल डेस्कः यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे जिन्होंने 1 मार्च, 2015 को ट्वीट किया था कि पी.डी.पी.-भाजपा सरकार जम्मू-कश्मीर के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक ऐतिहासिक अवसर है और सरकार राज्य को प्रगति की नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी। 19 जून, 2018 को मोदी ने इस मेल-मिलाप को दफन कर दिया। 2015 में मोदी ने आर.एस.एस. को आघात पहुंचाया था जब उन्होंने जम्मू-कश्मीर में पी.डी.पी. के साथ हाथ मिलाने का फैसला किया। वह ‘सबका साथ सबका विकास’ के लिए काम कर रहे थे। आर.एस.एस. ने इसका विरोध किया, मगर बाद में दबाव के आगे वह झुक गया परंतु उनका यह परीक्षण पूरी तरह विफल साबित हुआ क्योंकि आर.एस.एस. और भाजपा को बुरी तरह नुक्सान हो रहा था और वे अपने हिन्दुत्व के आधार को खो रहे थे।
कठुआ दुष्कर्म मामला आर.एस.एस. की तरफ से चेतावनी की पहली घंटी थी। आर.एस.एस. नेतृत्व ने अमित शाह को स्पष्ट तौर पर बता दिया था कि यह प्रबंध आगे नहीं चल सकता। अंतत: आर.एस.एस.-भाजपा नेताओं की सूरजकुंड बैठक में ही भाजपा-पी.डी.पी. गठबंधन पर विस्तार से समीक्षा की गई। आर.एस.एस. के नेता यह जानना चाहते थे कि रमजान के दौरान एकतरफा सीजफायर का क्या लाभ है और पत्थरबाजों के खिलाफ 11,000 मामले वापस लेने से क्या फायदा हुआ है। आर.एस.एस. अपना कोर हिन्दू आधार खो रहा है, बस अब और अधिक नहीं। 3 दिवसीय सूरजकुंड में हुई बैठक के परिणामों से मोदी को अवगत करवाया गया।
सम्भवत: मोदी ने भी महसूस किया कि एक छोटे से क्षेत्र को खुश करने की प्रक्रिया में वह अपने बड़े क्षेत्र में अपना आधार खो रहे हैं। अंतत: उन्होंने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ चर्चा की जो ऐसे किसी भी गठबंधन के खिलाफ थे। केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को 19 जून की सुबह को ही इस फैसले बारे जानकारी मिली। केन्द्र अब दिल्ली से राज्य में प्रत्यक्ष रूप से शासन करेगा और घाटी में पिछले 3 वर्षों दौरान हुई अपनी नाकामियों को दूर करेगा।