अहमद पटेल के निधन के बाद बिखर जाएगी कांग्रेस, पार्टी के पास नहीं बचा अब कोई विकल्प!

Edited By Anil dev,Updated: 25 Nov, 2020 01:19 PM

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बिहार विधानसभा के चुनावी नतीजों के बाद आंतरिक कलह से जूझ रही कांग्रेस को उस समय बड़ा सदमा लगा जब कोरोना वायरस ने पार्टी के चाणक्य संकटमोचक अहमद पटेल को छीन लिया। अहमद पटेल 71 वर्षीय पटेल बुधवार तड़के कोरोना से जंग हार गए। पटेल पिछले एक महीने से...

नेशनल डेस्क: बिहार विधानसभा के चुनावी नतीजों के बाद आंतरिक कलह से जूझ रही कांग्रेस को उस समय बड़ा सदमा लगा जब कोरोना वायरस ने पार्टी के चाणक्य संकटमोचक अहमद पटेल को छीन लिया। अहमद पटेल 71 वर्षीय पटेल बुधवार तड़के कोरोना से जंग हार गए। पटेल पिछले एक महीने से कोरोना वायरस से संक्रमित थे। जिसके बाद से उनका इलाज चल रहा था। उनके अंगों ने भी काम करना बंद कर दिया था। 


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कांग्रेस के चाणक्य रहे अहमद पटेल
गुजरात में तालुक स्तर से राजनीति शुरू कर अहमद पटेल कांग्रेस के लिए चाणक्य ही नहीं बने अपितु संकटमोचक बनकर पार्टी को मजबूत बनाने में अपना जीवन समर्पित कर दिया। कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सलाहकार रहे पटेल केंद्र में मंत्री बनने के आमंत्रण को ठुकराते हुए कांग्रेस संगठन की मजबूती के लिए आजीवन काम करते रहे। कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले अहमद पटेल ने कई मौकों पर पार्टी को संकट से उबारने का काम किया। पार्टी में महत्वपूर्ण पदों पर काम करते हुए वह हमेशा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विश्वास पात्र बने रहे। वह वर्तमान में कांग्रेस के कोषाध्यष थे और यह जिम्मेदारी उन्हें दूसरी बार मिली थी। आपातकाल के समय जब पूरा देश पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ था और 1977 के आम चुनाव में जब लहर गांधी के विरुद्ध चल रही थी, उस समय श्री पटेल ने महज 26 साल की उम्र में लोकसभा का सदस्य बनकर राजनीति में अपनी अलग पहचान स्थापित कर ली थी। उसके बाद वह कभी रुके नहीं और हमेशा कांग्रेस के संकट मोचक् के रूप में अपनी सेवाएं देते रहे। 

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कांग्रेस के पास नहीं दूसरा पटेल 
अहमद पटेल एकलौते ऐसे नेता थे कांग्रेस में जिनकी जगह कोई और नहीं ले सकता। उन्हें 10 जनपथ का चाणक्य भी कहा जाता था। उन्हें कांग्रेस और गांधी परिवार के सबसे करीबी माना जाता था। अहमद पटेल की एक खासियत थी कि वो कभी भी कैमरे, मीडिया और खबरों में नहीं रहे। वो बेहद ताकतवर असर वाले नेता थे लेकिन उन्हें हमेशा लो-प्रोफाइल रहना ही पसंद था। पटेल कभी चुप और सीक्रेटिव रहते थे। उनकी सादगी और सलाह देने का हुनर कांग्रेस के किसी दूसरे नेता में नहीं है। पटेल में जितना ठहराव था वो किसी नेता में नहीं देखा गया। उन्होंने कांग्रेस में रहते हुए इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक सभी का साथ दिया और हमेशा पीछे रहते हुए पार्टी के हित में काम किया। उन्होंने यूथ कांग्रेस की नींव तैयार की थी जिसका सबसे अधिक फायदा सोनिया गांधी को हुआ था। वो सोनिया गांधी के सबसे करीबी थे इसलिए भी उनके जाने से सोनिया को गहरा दु:ख पहुंचा है। 

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आखिरी समय तक कांग्रेस की कश्ती के खेवनहार बने रहे पटेल
वह अपने जीवन के आखिरी समय तक कांग्रेस की कश्ती के खेवनहार बने रहे। पटेल के जाने से कांग्रेस ने तूफान में नाव पार लगाने वाला एक मांझी खो दिया है। यही नहीं, राजनीति ने भला इंसान खो दिया। गुजरात ने गुजरातियों के लिए मर-मिटनेवाला सपूत खो दिया। पांच बार राज्यसभा और तीन बार लोकसभा के सदस्य रहे पटेल का जन्म 21 अगस्त, 1949 को गुजरात के भरूच में मोहम्मद इसहाकजी पटेल और हव्वाबेन पटेल के घर हुआ था। अहमद पटेल के पिता भी कांग्रेस में थे और एक समय भरूच तालुका पंचायत सदस्य थे। अहमद पटेल को राजनीतिक करियर बनाने में पिता से बहुत मदद मिली। हालांकि अहमद पटले के दोनों बच्चे फैसल और मुमताज राजनीति से दूर हैं। कांग्रेस एवं सियासी गलियारे में अहमद भाई के नाम से पुकारे जाने वाले पटेल ने 1976 में गुजरात से भरूच में स्थानीय निकाय में किस्मत आजमाने के साथ ही राजनीतिक पारी की शुरुआत की। 

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राजीव गांधी की हत्या के बाद कठिन समय का सामना करना पड़ा
पटेल को 1980 के दशक में कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। वह राजीव गांधी के संसदीय सचिव भी रहे। पटेल 1989 में लोकसभा चुनाव हार गए और फिर 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद उन्हें राजनीतिक जीवन में कठिन समय का सामना करना पड़ा। हालांकि 1993 में वह राज्यसभा में पहली बार पहुंचे और इसके बाद लगातार ऊपरी सदन के सदस्य बने रहे। सोनिया गांधी के बतौर कांग्रेस अध्यक्ष सक्रिय राजनीति में कदम रखने के बाद पटेल का सियासी ग्राफ एक बार फिर बढ़ा और पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों में शामिल हो गए। फिर वह सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव बने। कहा जाता है कि सोनिया गांधी और कांग्रेस के फैसलों में उनकी स्पष्ट छाप होती थी। साल 2004 में मनमोहन सिंह की अगुवाई में संप्रग सरकार बनने के बाद पटेल के कद एवं भूमिका में और भी इजाफा हो गया। उस वक्त उन्हें कांग्रेस संगठन, सहयोगी दलों और सरकार के बीच सेतु का काम करने वाला नेता माना जाता था। कहा जाता है कि पटेल ने अपने राजनीतिक जीवन में कई मौकों पर सरकार का हिस्सा बनने की पेशकशों को ठुकराया और कांग्रेस संगठन के लिए काम करने को तवज्जो दी। 


 

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