केरल में लोकसभा चुनाव में फोकस पर अल्पसंख्यकों की बड़ी तादाद

Edited By Parminder Kaur,Updated: 26 Apr, 2024 02:20 PM

majority of minorities on focus in lok sabha elections in kerala

केरल में वायनाड समेत कुल 20 सीटों पर वोटिंग शुक्रवार को होगी। यहां तीन राजनीतिक मोर्चा के लिए बड़ी चुनौती है। इसमें कांग्रेस नेतृत्व वाला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) वाला लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ)...

नेशनल डेस्क. केरल में वायनाड समेत कुल 20 सीटों पर वोटिंग शुक्रवार को होगी। यहां तीन राजनीतिक मोर्चा के लिए बड़ी चुनौती है। इसमें कांग्रेस नेतृत्व वाला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) वाला लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) है। साथ ही भाजपा पिछले चुनावों में मजबूत हुई है। इस बार पार्टी तिरुवनंतपुरम त्रिशूर समेत 5 सीटों पर कड़ी टक्कर व दे रही है, जहां भाजपा से क्रमशः केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर और अभिनेता सुरेश गोपी मैदान में हैं।


कांग्रेस और सीपीएम दोनों ही इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं लेकिन प्रभुत्व के लिए संघर्ष में जुटे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, एआईसीसी महासचिव केसी वेणुगोपाल, केंद्रीय मंत्री चंद्रशेखर, वी मुरलीधरन और पूर्व मंत्री केके शैलजा जैसे नेता संघर्ष के प्रमुख चेहरे हैं। वायनाड में राहुल गांधी को भाजपा की राष्ट्रीय नेता एनी राजा से टक्कर मिल रही है। विशेषज्ञ कहते हैं कि 2019 जैसा आसान वॉकओवर नहीं होगा। 


तिरुवनंतपुरम में भाजपा के चंद्रशेखर कांग्रेस के शशि थरूर को चुनौती दे रहे हैं। भाजपा 'मोदीयुदे गारंटी' नारे और एलडीएफ के खिलाफ सत्ता विरोधी तत्वों के जरिए पीएम मोदी द्वारा किए गए विकास कामों को भुनाने की कोशिश कर रही है। भाजपा के कड़े फैसले जैसे सीएए व यूसीसी का अनुभव केरल की धर्मनिरपेक्ष मानसिकता के साथ अच्छा नहीं रहा है। इसके बावजूद कांग्रेस व सीपीएम के पारंपरिक वोटर्स का बड़ा हिस्सा भाजपा में विकल्प तलाशने लगा है। यहां अल्पसंख्यक वोटर निर्णायक हैं। 


मुस्लिम 26%, ईसाई 18% वहीं दलित 9% हैं। अल्पसंख्यकों के मतदान व्यवहार में उतार-चढ़ाव का असर एलडीएफ व यूडीएफ दोनों पर पड़ता है। जैसे 2019 में यूडीएफ ने मुस्लिम और ईसाई वोटों के एकीकरण के कारण 20 में से 19 सीटें जीती थीं। इसलिए दलों का फोकस इन्हीं पर है। कांग्रेस फिलहाल कम्युनिस्ट पार्टी विरोधी लहर, भ्रष्टाचार, सहकारी बैंकों में पैसों का दुरुपयोग व शैक्षणिक संस्थानों में छात्र हिंसा से नाराजगी जैसे मुद्दों के साथ जमीन तलाशने में जुटी है। यूसीसी निरस्त करना भी प्रमुख वादा है।


 

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