निर्भया केस: जानिए क्या होता है Death Warrant, जिसके मिलने पर दोषी को दी जाती है फांसी

Edited By Anil dev,Updated: 07 Jan, 2020 05:57 PM

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साल 2012 में दिल्ली में हुए सनसनीखेज निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड मामले के चार दोषियों को 22 जनवरी को सुबह सात बजे तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाया जाएगा। दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट......

नई दिल्ली: साल 2012 में दिल्ली में हुए सनसनीखेज निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड मामले के चार दोषियों को 22 जनवरी को सुबह सात बजे तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाया जाएगा। दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी करने वाले अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सतीश कुमार अरोड़ा ने फांसी देने के आदेश की घोषणा की। मामले में मुकेश, विनय शर्मा, अक्षय सिंह और पवन गुप्ता को फांसी दी जानी है। आइए जानते हैं कि डेथ वारंट क्या होता है और इसके जारी होने के बाद क्या होता है।


फॉर्म नंबर 42 दोषी को फांसी की सजा का अनिवार्य आदेश 
दरअसल, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) का फॉर्म नंबर 42 दोषी को फांसी की सजा का अनिवार्य आदेश है। दोषी को तब तक फांसी के फंदे पर लटकाकर रखा जाए, जब तक कि उसकी मौत न हो जाए। यह वाक्य क्रिमिनल प्रोसीजर के फॉर्म नंबर 42 पर छपे तीन वाक्यों के दूसरे भाग का हिस्सा है, जिसे ब्लैक वारंट के नाम से जाना जाता है। फॉर्म 42 को वारंट ऑफ एक्जीक्यूशन ऑफ ए सेंटेंस ऑफ डेथ कहा जाता है। ये जारी होने के बाद ही किसी व्यक्ति को फांसी दी जाती है।
 

वारंट में दोषी के नाम के साथ ही मौत की सजा की पुष्टि भी होती है
इस वारंट को जेल प्रशासन के उस वरिष्ठ अधिकारी को भेजा जाता है। जहां पर दोषी को कैद करके रखा जाता है। इस वारंट में दोषी के नाम के साथ ही मौत की सजा की पुष्टि भी होती है। इसके बाद पहले खाली कॉलम में उस जेल का नंबर लिखा होता है जिस जेल में फांसी दी जानी है। इसके बाद अगले कॉलम में फांसी पर चढऩे वाले सभी दोषियों के नाम लिखे जाते है। खाली कॉलम में केस का एफआईआर नंबर लिखा जाता है। उसके बाद के कॉलम में किस दिन ब्लैक वारंट जारी हो रहा है वो तारीख पहले लिखी जाती है। इसके बाद के कॉलम में फांसी देने वाले दिन यानी मौत के दिन की तारीख लिखी जाती है और किस जगह फांसी दी जाएगी यह लिखा जाता है।
 

डेथ वारंट को ब्लैक वारंट कहा जाता है। 
डेथ वारंट को ब्लैक वारंट के नाम से भी जाना जाता है। अदालत इसे वारंट को जेल प्रभारी को संबोधित करते हुए भेजती है। जहां दोषी को कैद करके रखा गया होता है। ब्लैक वारंट में ट्रायल कोर्ट के उस जज का सिग्नेचर भी होता है, जिसने मौत की सजा सुनाई होती है।


 

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