नज़रिया: नाम में कुछ नहीं रखा, ऐसी प्रज्ञा से तौबा कीजिये

Edited By vasudha,Updated: 28 Nov, 2019 03:20 PM

nothing in name avoid such pragya

प्रज्ञा का मतलब होता है बुद्धि का वह परिष्कृत, विकसित तथा संस्कृत रूप जो उसे अध्ययन, अभ्यास, निरीक्षण आदि के द्वारा प्राप्त होता है और जिससे मनुष्य सब बातों का आगा पीछा या वास्तविक रूप जल्दी और सहज ही समझ लेता है...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): प्रज्ञा का मतलब होता है बुद्धि का वह परिष्कृत, विकसित तथा संस्कृत रूप जो उसे अध्ययन, अभ्यास, निरीक्षण आदि के द्वारा प्राप्त होता है और जिससे मनुष्य सब बातों का आगा पीछा या वास्तविक रूप जल्दी और सहज ही समझ लेता है। लेकिन इस संदर्भ में जब आप बात जब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की करेंगे तो आपको लगेगा कि कहीं न कहीं कोई मूल त्रुटि जरूर हुई है। अपने नाम के विपरीत प्रज्ञा ठाकुर ने बिना सोचे समझे ऐसे ब्यान दिए हैं जिनके चलते वे हमेशा विवादों में रही हैं। चाहे वह  शहीद हेमंत करकरे को लेकर दिया गया श्राप वाला वक्तव्य हो, या फिर भोपाल की जनता से कहे गए वह शब्द की ..सांसद नाली साफ़ करने या झाड़ू लगाने के लिए नहीं होता। 

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गोडसे को लेकर उनके पक्ष और ब्यान ने तो दुनियाभर में चर्चा करवाई है। ऐसा क्यों यह एक यक्ष प्रश्न हो सकता है। वे इतिहास में पोस्ट ग्रेज्युएट हैं। इस लिहाज़ से भी अगर वे अपने नाम के अनुरूप आचरण करें तो किसी गलती या गलत फहमी की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए थी। इसके बावजूद वे ऐसा क्यों करती हैं इसके कुछ चुनिंदा कारण ही हो सकते हैं। पहला कारण जो सर्वत्र चर्चा में है वह एक आरोप की शक्ल में है जिसके तहत  कहा जाता है कि वे संघ के इशारे पर यह सब करती हैं। कोई दो राय नहीं कि वे संघ की सक्रिय सदस्य रही हैं।  इस्लामिक कटटरवाद और कश्मीर पर वे संघ की लाइन के अनुसार अनेकों बार भाषण दे चुकी हैं जिन्हें उनके समर्थक ओजस्वी सम्बोधनों की श्रेणी में रखते हैं। लेकिन गोडसे मामले  में उनकी बयानबाजी पर संघ भी चुप है और अगर ये मौनम स्वीकृति लक्ष्मण नहीं है तो कभी खुलकर संघ की तरफ से उनका इतना विरोध भी नहीं किया गया।  बस चुप रहकर या निंदा करते हैं कहकर काम चलाया गया। 

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दूसरा कारण यह हो सकता है कि वे हमेशा सुर्ख़ियों में रहने की इच्छा से भरी हों और विवादित बयान देकर  चर्चाओं के केंद्र में रहना चाहती हों। तीसरा कारण उनपर हुई तथाकथित ज्यादतियों से उपजे अवसाद की परिणीति भी हो सकती है। हालांकि उनपर मालेगांव मामले में अभी भी केस चल रहा है और वे बड़ी नहीं हुई हैं। ऐसे में  दूसरा कारण --सुर्ख़ियों में बने रहने की इच्छा-- कहीं ज्यादा प्रभावी प्रतीत होता है। लेकिन इस बहाने उन्होंने अपने संगठन की साख को ही दांव पर लगा डाला। जाहिर है जब यह सब संगठन को पचाना मुश्किल हो गया तो अंतत उसने कार्रवाई की। उन्हें बीजेपी ने रक्षा मामलों की राष्ट्रीय समिति से हटा दिया है। हालाँकि बड़ा सवाल यह भी है कि उस समिति में  प्रज्ञा ठाकुर को डाला ही क्यों गया था क्योंकि विवाद तो उनसे पहले से ही जुड़ा हुआ था। वे आतंकवाद की घटना में आरोपी हैं। बीजेपी ने उनको सत्र के दौरान अपने संसदीय दल से निलंबित भी कर दिया है। यानी वे बीजेपी संसदीय दल की बैठकों में हिस्सा नहीं ले पाएंगी। अगर यह कदम तबीयत से उठाया गया है तो अगला कदम  उनको बर्खास्त करने का होना चाहिए।हालांकि उसके बाद साध्वी एक तरह से छुट्टा हो जाएंगी और उस स्थिति में उनके बयान संसद में और हंगामा खड़ा करेंगे ।  

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इसलिए बीजेपी को ऐसे नेताओं का कोई अन्य हल ढूंढना होगा और भी कई अन्य ऐसे दुरबयानी हैं पर फिलवक्त साध्वी प्रज्ञा पर ही केंद्रित रहना सही होगा। उनके बहाने अन्यों को भी सबक दिया जा सकता है। बिना शक जब देश राष्ट्रपिता की 150 वीं  जयंती मना रहा है और केंद्र सरकार हर गांव, ताल्लुका और राज्य में कार्यक्रम करवा रही है तो ऐसी स्थिति में उसके लिए अपने ही सांसद का गांधी के प्रति ऐसा ब्यान फजीहत वाला है। चुनाव के दौरान जब साध्वी ने गोडसे को देशभक्त बताया था तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बयान जारी किया था कि  वे साध्वी को मन से माफ़ नहीं कर पाएंगे। इसके बावजूद साध्वी को सुरक्षा मामलों की समिति में लेना, और वह भी तब जब वे आतंकवादी वारदात के मामले में ज़मानत पर हों, वह अपने आप में मन और सरकारी तंत्र के बीच तालमेल की कमी दर्शाने वाला था। खैर देर आयद दुरुस्त आयद। अब बीजेपी को ऐसा उदाहरण पेश करना होगा जो ऐसे बयानवीरों पर अंकुश लगाए जिनके मुंह से विवाद ही निकलते हैं। 

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