ऑफ द रिकॉर्डः ‘हिरासत में हुईं हर रोज 5 मौतें, 8 साल में 13,710 मरे’

Edited By Pardeep,Updated: 09 Dec, 2020 05:59 AM

off the record  5 deaths in custody everyday 13 710 killed in 8 years

पुलिस तथा न्यायिक हिरासत में हर रोज औसतन 5 लोग दम तोड़ रहे हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एन.एच. आर.सी.) के ताजा आकड़ों के अनुसार, पिछले 8 सालों के दौरान हिरासत में 13,710 से ज्यादा लोगों की मौत की शिकायतें दर्ज

नई दिल्लीः पुलिस तथा न्यायिक हिरासत में हर रोज औसतन 5 लोग दम तोड़ रहे हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एन.एच. आर.सी.) के ताजा आकड़ों के अनुसार, पिछले 8 सालों के दौरान हिरासत में 13,710 से ज्यादा लोगों की मौत की शिकायतें दर्ज की गईं। इनमें इस साल अक्तूबर महीने तक पुलिस हिरासत में 77 तथा न्यायिक हिरासत में 1343 सहित कुल 1407 मौत के मामले शामिल हैं। 

जानकार मानते हैं कि पुलिस हिरासत में यातना आम है। आरोपी से अपराध कबूल करवाने तथा सबूत जुटाने के लिए ऐसा होता है। यही नहीं, जेल में भी प्रशासन के लिए परेशानी की वजह बनने वाले बंदियों के साथ शारीरिक बल इस्तेमाल किया जाता है। खास बात यह है पिछले दस सालों में 1464 मौतों के मामले पुलिस हिरासत के हैं, जहां मजिस्ट्रेट द्वारा रिमांड में देने के अतिरिक्त आरोपी को केवल 24 घंटे ही बिताने होते थे। 

मानवाधिकार आयोग के निर्देशों के अनुसार हिरासत में होने वाली मौत की जानकारी घटना के 24 घंटे में देनी होती है लेकिन यदि ऐसा नहीं किया जाता तो इसे मामले को दबाने का प्रयास माना जा सकता है। इतना ही नहीं, ऐसे मामलों में एफ.आई.आर. तथा घटना के 2 महीने में मामले की मजिस्ट्रेट द्वारा जांच कराना भी जरूरी है। हालांकि ऐसे मामलों में अक्सर नियमों का पालन कम ही होता है। इतना ही नहीं, मानवाधिकार आयोग के पास ऐसे मामले तो पहुंचते ही नहीं हैं जिनमें मौत पुलिस लॉकअप के बाहर होती है।

‘एन.एच.आर.सी.- एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों में अंतर’
मानवाधिकार आयोग तथा अपराध तथा जेल के सालाना आंकड़े जारी करने वाली गृह मंत्रालय की एजैंसी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) के आंकड़ों में भारी अंतर है। एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के अनुसार 2019 में पुलिस हिरासत में 85 तथा 2018 में 70 लोगों की मौत हुई जबकि मानवाधिकार आयोग के पास 2019 में 125 तथा 2018 में 130 से भी ज्यादा शिकायतें दर्ज की गईं। मानवाधिकार आयोग के एक सदस्य के अनुसार हालांकि हिरासत में मौत के मामलों में 24 घंटे के भीतर आयोग को सूचना देने के स्पष्ट निर्देश हैं हालांकि  कई  बार ऐसे मामलों की जानकारी देरी से मिलती है। लिहाजा यह अंतर हो सकता है। 

‘न्यायिक हिरासत में मौत’  
न्यायिक हिरासत में मौत के आंकड़े हिरासत में होने वाली मौत के मुकाबले भले ही बहुत ज्यादा हैं लेकिन जानकार मानते हैं कि न्यायिक हिरासत में सभी मौतें यातना या मारपीट का परिणाम नहीं हैं हालांकि बीमारी या इलाज में देरी या लापरवाही इसका बड़ा कारण हो सकता है। इसके अलावा जेल में जरूरत से ज्यादा लोगों को रखने के कारण भी हालात बदतर हो जाते हैं। एन.सी.आर.पी. की जेलों की स्थिति पर सालाना रिपोर्ट के अनुसार, जेल में क्षमता के मुकाबले 118 प्रतिशत अधिक बंदियों को रखा गया है।

‘कमजोर हैसियत वालों ने गंवाई जान’
नैशनल कैंपेन अगेंस्ट टॉर्चर की सालाना रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में पुलिस हिरासत में मरने वालों में से 75 बेहद गरीब, 13 दलित या जन जातीय तथा 15 मुस्लिम अल्पसंख्यक थे। 37 को चोरी के छोटे -मोटे आरोपों में पकड़ा गया था। इनमें 3 किसान, एक बंधुआ मजदूर तथा एक शरणार्थी, दो सिक्योरिटी गार्ड, दो ड्राइवर तथा एक कूड़ा बीनने वाला भी शामिल था। रिपोर्ट बताती है कि कम सामाजिक हैसियत तथा गरीबी के चलते ऐसे लोग आसान शिकार होते हैं। आंकड़ों के अनुसार पुलिस हिरासत में मौत के सबसे अधिक 14 मामले उत्तरप्रदेश तथा 11 तमिलनाडु के थे। इसके अतिरिक्त बिहार तथा मध्यप्रदेश में 9-9 लोगों की मौत हुई। महाराष्ट्र तथा राजस्थान में भी 5-5 लोगों की मौत पुलिस हिरासत में दर्ज की गई। 

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