Exclusive : 5 साल से वन नेशन, वन इलेक्शन की तैयारी, लोकसभा के साथ 13 राज्यों के चुनाव संभव

Edited By Rahul Singh,Updated: 31 Aug, 2023 09:21 PM

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केंद्र सरकार द्वारा 18 से लेकर 22 सितंबर तक बुलाए गए संसद के विशेष सत्र ने एक बार फिर देश में वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर चर्चा छेड़ दी है।  दरअसल देश में इलेक्शन रिफार्म के यह काम पिछले लंबे समय से लंबित है और केंद्र सरकार  पिछले पांच साल से ज्यादा...

नेशनल डैस्क : केंद्र सरकार द्वारा 18 से लेकर 22 सितंबर तक बुलाए गए संसद के विशेष सत्र ने एक बार फिर देश में वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर चर्चा छेड़ दी है।  दरअसल देश में इलेक्शन रिफार्म के यह काम पिछले लंबे समय से लंबित है और केंद्र सरकार  पिछले पांच साल से ज्यादा लंबे समय से इसकी तैयारी कर रही थी। निति आयोग ने इस संबंध में 2018 में एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में देश में लोक सभा चुनाव के साथ राज्यों के चुनाव करवाने की सिफारिश की गई थी।  इस विशेष रिपोर्ट में जानिए कि देश में राज्यों का विधान सभा चुनाव और लोक सभा का चुनाव एक साथ कैसे होगा और इसे एक साथ करवाने का क्या फायदा होगा।  


2019 के चुनाव में 60 हजार करोड़ रूपए का खर्चा आया

देश में चुनाव करवाना एक बहुत खर्चीला काम है और सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में देश में 60 हजार करोड़ रूपए का खर्च आया था। यह खर्च 1998 में हुए चुनाव के मुकाबले करीब 7 गुना ज्यादा है।  1998 के चुनाव में करीब 9 हजार करोड़ रूपए खर्च हुए थे। 2024 में होने वाले चुनाव में खर्च का यह आंकड़ा इस से भी जायदा बढ़ सकता है।  लोकसभा चुनाव के अलावा हर साल होने वाले राज्यों के विधान सभा चुनावों में भी हजारों करोड़ रूपए का खर्चा होता है।  इस खर्च से बचने के लिए ही सरकार चुनाव सुधार का यह बड़ा कदम उठा सकती है।

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वन नेशन ,वन इलेक्शन के फायदे


देश में लोकसभा चुनाव के साथ राज्यों के चुनाव करवाने का रास्ता साफ़ हुआ तो देश को भारी भरकम चुनावी खर्च से निजात मिलने के साथ साथ गवर्नेंस में भी तेजी आएगी। देश में बार-बार होने वाले चुनाव के कारण अलग अलग राज्यों में करीब पूरा साल चुनाव अचार संहिता लगी रहती है जिस से विकास कार्य रुक जाते हैं। इसके अलावा चुनाव में सुरक्षा व्यवस्था पर भी भारी भरकम खर्च आता है।  बार बार चुनाव होने के कारण चुनाव से जुड़ा भ्र्ष्टाचार  भी बढ़ता है। यदि एक साथ चुनाव होते तो न सिर्फ विकास कार्य तेजी से होंगे बल्कि खर्च भी बचेगा और नीतिगत फैसले भी तेजी से हो सकेंगे।


1967 तक एक साथ होते थे चुनाव

1951 में पहले लोकसभा चुनाव के साथ 22 राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए थे और ये सिलसिला 1967 तक जारी रहा, लेकिन धीरे-धीरे लोकसभा की अवधि कम होने और कई राज्यों में सरकारों को बर्खास्त किए जाने या राष्ट्रपति शासन लागू होने और नए राज्यों के गठन के साथ ही विभिन्न राज्यों में चुनाव का समय बदलता गया जिस कारण आए साल देश के किसी न किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होते हैं और केंद्र सरकार के अलावा चुनाव आयोग की पूरी मशीनरी हर साल चुनावी मोड में ही रहती है जिससे चुनाव वाले राज्यों में प्रशासनिक अधिकारी भी जनता के पूरे काम नहीं कर पाते। चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण विकास कार्यों पर भी प्रभाव पड़ता है।

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13 राज्यों में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव संभव

पिछली बार लोकसभा चुनाव के साथ आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, उड़ीसा, सिक्किम के चुनाव हुए थे, लिहाजा इन विधानसभाओं की अवधि लोकसभा की अवधि के साथ समाप्त होगी लेकिन इन चुनावों से पहले छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, मिजोरम  और  तेलंगाना के चुनाव दिसम्बर, 2019  में हुए थे और इन विधानसभाओं की अवधि जनवरी 2024 में खत्म होगी। यानी लोकसभा के साथ इन 9 राज्यों में तो विधानसभा चुनाव आसानी से करवाए जा सकते हैं लेकिन नीति आयोग की सिफारिश के मुताबिक लोकसभा चुनाव के साथ  हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, दिल्ली  के विधानसभा चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ ही करवाए जा सकते हैं लेकिन इसके लिए इन राज्यों में विधानसभा की अवधि में कमी करनी पड़ेगी।

नीति आयोग का सुझाव, 30 माह बाद हों राज्यों के चुनाव

नीति आयोग द्वारा इस संबंध में 2018 में तैयार की गई रिपोर्ट में लोकसभा और राज्यों के चुनाव 2 चरणों में कराने का सुझाव दिया गया है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश भर में राज्यों के विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ करवाना मुमकिन नहीं क्योंकि ऐसा करने की स्थिति में कई विधानसभाओं का कार्यकाल 2 साल से ज्यादा बढ़ाना या कम करना पड़ सकता है और राजनीतिक दल या राज्य सरकारें इस पर सहमत नहीं होंगी। लिहाजा एक ऐसा फार्मूला तैयार किया गया जिसके तहत पूरे देश के हर साल चुनाव मोड में जाने की बजाय देश में हर 30 महीने के बाद ही चुनावी माहौल बने। आयोग की रिपोर्ट में 14 राज्यों में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव करवाने की सिफारिश की गई थी ।

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संशोधित करनी पड़ सकती हैं संविधान की ये धाराएं

देश में लोकसभा चुनाव के साथ राज्यों के चुनाव करवाने के लिए कुछ कानूनी और संवैधानिक बदलाव करने की जरूरत पड़ेगी तथा ये बदलाव संसद द्वारा संविधान संशोधन के जरिए ही किए जा सकते हैं। संविधान की धारा 83 संसद (लोकसभा और राज्य सभा) की अवधि को परिभाषित करती है और इस धारा के तहत लोकसभा की अवधि 5 वर्ष निर्धारित की गई है। इसी प्रकार संविधान की धारा 172 (1) राज्यों के लिए 5 साल की अवधि का निर्धारण करती है। इसका मतलब है कि राज्यों की सरकारों की अवधि संविधान के मुताबिक नहीं बढ़ाई जा सकती जबकि एक साथ चुनाव करवाने के लिए राज्य विधानसभाओं की अवधि बढ़ानी पड़ सकती है।

संविधान की धारा 85 (20) (बी) देश के राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने की शक्ति प्रदान करती है। इसी तरह संविधान की धारा 174 (2) (बी) राज्यों के गवर्नर को राज्य विधानसभा भंग करने की शक्ति प्रदान करती है। यदि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हो तो यह शक्ति धारा 356 के तहत भी दी गई है लेकिन संविधान में कहीं भी आपातकाल को छोड़कर राज्य विधानसभाओं की अवधि बढ़ाने का प्रावधान नहीं है। इसके अलावा संविधान की धारा 324 चुनाव आयोग को देश में संवैधानिक प्रावधानों के तहत चुनाव करवाने की शक्तियां प्रदान करती है। ये चुनाव रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट 1951 के तहत करवाए जाते हैं। संविधान के मुताबिक चुनाव आयोग के पास लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव की घोषणा 6 महीने पहले करवाने का अधिकार है।

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