चीन के खाने पर जी रहे हैं उत्तराखंड के सीमावर्ती गांवों के लोग

Edited By shukdev,Updated: 05 Oct, 2018 09:19 PM

people from border villages depend on chinese grains found in nepalese markets

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में सीमावर्ती गांवों के आदिवासियों को राशन का पूरा कोटा नहीं मिल पाने के कारण उन्हें नेपाली बाजार से मिलने वाले चीनी अनाज पर निर्भर रहना पड़ता है। क्षेत्र में राशन की आपूर्ति बढ़ाने की मांग को लेकर शुक्रवार को धारचूला के...

पिथौरागढ : उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में सीमावर्ती गांवों के आदिवासियों को राशन का पूरा कोटा नहीं मिल पाने के कारण उन्हें नेपाली बाजार से मिलने वाले चीनी अनाज पर निर्भर रहना पड़ता है। क्षेत्र में राशन की आपूर्ति बढ़ाने की मांग को लेकर शुक्रवार को धारचूला के उपजिलाधिकारी आर के पांडे से मिलने आए व्यास घाटी के प्रतिनिधिमंडल के एक आदिवासी नेता कृष्णा गब्र्याल ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा दिए जा रहे राशन का कोटा उनकी जरूरत से कम पड़ रहा है जिसके कारण ग्रामीणों को नेपाली बाजार में बिकने वाले चीनी अनाज पर निर्भर रहना पड़ता है।

PunjabKesariउन्होंने कहा कि ग्रामीण गर्बियांग के पास भारत और नेपाल को जोडऩे वाले काली नदी पर बने पुल को पार करते हैं और अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए पड़ोसी देश के टिंकर और चांगरू गांवों के बाजार से राशन खरीदते हैं। गब्र्याल ने बताया कि सरकार हर परिवार को प्रति माह पांच किलो गेहूं और दो किलो चावल देती है जो बहुत कम है और इससे भी बड़ी बात यह है कि उन्हें पिछली बार राशन मानसून शुरू होने से पहले मिला था। हालांकि, इस संबंध में पांडे ने कहा कि मानसून शुरू होने से पहले हेलीकॉप्टर द्वारा व्यास घाटी के ग्रामीणों के लिये राशन भेजा गया था जबकि ऊंचाई पर बसे गांवों के लिए अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर का राशन अभी भेजा जाएगा।

PunjabKesariउन्होंने कहा कि सड़क मार्ग की मरम्मत जारी रहने के कारण प्रशासन को व्यास घाटी तक राशन पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर की उपलब्धता पर निर्भर रहना पड़ता है और इसके लिए प्रशासन सेना के संपर्क में भी है, ताकि उनके हेलीकॉप्टरों का प्रयोग किया जा सके।

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