विधानसभा चुनाव: पांचों राज्यों में राहुल-मोदी की जोर आजमाईश जारी

Edited By vasudha,Updated: 12 Nov, 2018 01:19 AM

rahul modi assertion in five states for assembly election

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच की जोर आजमाईश, आखिरी घड़ी में नेताओं के पाला बदलने, आरोप-प्रत्यारोप और जातीय समीकरण बड़ी चुनावी सुर्खियां रही...

नेशनल डेस्क: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच की जोर आजमाईश, आखिरी घड़ी में नेताओं के पाला बदलने, आरोप-प्रत्यारोप और जातीय समीकरण बड़ी चुनावी सुर्खियां रही। लेकिन चुनाव नतीजे के बारे में हॉलीवुड थ्रीलर के क्लाईमेक्स की भांति ही कुछ कहना मुश्किल है। सोमवार को छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले चरण के साथ ही पांच राज्यों में शुरु हो रहे विधानसभा चुनाव को अगले साल के लोकसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल माना जा रहा है। 
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राजनीतिक दल बना रहे सियासी समीकरण 
ये विधानसभा चुनाव तय करेंगे कि भाजपा, कांग्रेस, बसपा जैसे प्रमुख राजनीतिक दल 2019 के आम चुनाव में मुकाबला करने के लिए किस तरह सियासी समीकरण बनाएंगे। राजनीतिक दल छत्तीसगढ़ की 90, मध्यमप्रदेश की 230, मिजोरम की 40, राजस्थान की 200 और तेलंगाना की 119 सीटों के लिए जोर आजमाएंगे। यदि कांग्रेस इन विधानसभा चुनावों में अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी भाजपा का खेल बिगाडऩे में सफल रहती है तो यह लोकसभा चुनाव से पहले उसके लिए मनोबल बढ़ाने वाला कदम होगा। 

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चंद्रशेखर राव एक मजबूत ताकत
उधर, अच्छा प्रदर्शन करने पर भाजपा अपने कार्यकर्ताओं में नया जोश भर पाएगी और 2019 के चुनाव में केंद्र में अपनी सत्ता बचाए रखने की अपनी उम्मीद को बल देगी। भाजपा ने 2013 में हिंदी-भाषी राज्यों - मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़- में क्रमश: 165,163 और 49 सीटें जीती थीं और कांग्रेस 58, 21, और 39 सीटों में सिमट गयी थी।  तेलंगाना में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की अगुवाई वाली सत्तारुढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति को सबसे मजबूत राजनीतिक ताकत के रुप में देखा जा रहा है और उसका मुकाबला कांग्रेस एवं भाजपा से होगा। 

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छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में शासन कर रही भाजपा 
2014 के विधानसभा चुनाव में 63 सीटों पर जीती टीआरएस में बाद के सालों में विरोधी दलों के कई नेता शामिल हो गये। बहरहाल, सत्ताविरोधी लहर एवं केसीआर द्वारा समय से पहले चुनाव कराने से चौंकाने वाली बातें सामने आ सकती हैं। मिजोरम में कांग्रेस 2008 से सत्तासीन है जबकि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भाजपा पिछले 15 सालों से शासन कर रही है।  वर्ष 2013 में छत्तीसगढ के विधानसभा चुनाव में वैसे भाजपा और कांग्रेस के बीच 10 सीटों का फर्क था लेकिन उनके वोट प्रतिशत में महज 0.75 फीसद का ही अंतर था।   
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मध्यप्रदेश में कड़ा मुकाबला
छत्तीसगढ़ में चुनावी मुकाबला एक बार फिर राजनीतिक दलों के लिए चिंताजनक स्थिति पैदा कर रहा है। सत्तारुढ़ भाजपा सत्ताविरोधी लहर का सामना कर रही है जबकि कांग्रेस को अजीत जोगी-बहुजन समाज पार्टी गठजोड़ से चुनौती मिल रही है। मुख्यमंत्री रमन सिंह ने पिछले ही हफ्ते कहा था कि ‘जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़’ भाजपा से ज्यादा कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं पर असर डालेगी। दूसरी तरफ, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कहा कि इस गठबंधन से भाजपा की संभावनाओं को ज्यादा नुकसान पहुंचेगा क्योंकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित दस सीटों में से कांग्रेस 2013 में केवल एक सीट की जीती थी जबकि भाजपा नौ सीटों पर विजयी रही थी।   
 
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छत्तीसगढ़ में एक सीट जीत पायी थी बसपा 
छत्तीसगढ़ में बसपा पिछली बार महज एक सीट जीत पायी थी लेकिन उसका वोट प्रतिशत 4.27 फीसद रहा था। यदि उसका वोट प्रतिशत बना रहता है तो यह निर्णायक साबित हो सकता है। गोंडवाणा गणतंत्र पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच के गठबंधन जैसे छोटे क्षेत्रीय गठबंधन एक अन्य कारक है। इन दलों को पिछले चुनाव में क्रमश: 1.57 फीसद और 0.29 फीसद वोट मिले थे।  राज्य में कांग्रेस-भाजपा मुकाबला प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामदयाल उइके के भाजपा में शामिल होने से और तीखा हो गया है। राज्य में 12 और 20 नवंबर को मतदान है। 
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मध्यप्रदेश में कड़ा मुकाबला
मध्यप्रदेश में मुकाबला और कड़ा जान पड़ता है क्योंकि राज्य में सत्ताविरोधी लहर एक बड़ा कारक है और कांग्रेस पिछले डेढ़ सालों में कई उचुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर चुकी है। भाजपा को 2013 में 44.88 फीसद वोट मिला था जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत 36.38 फीसद रहा था। बसपा ने 6.29 फीसद वोट हासिल किया था। राज्य में कई नेताओं ने पाला बदला। उनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय सिंह मसानी, वरिष्ठ भाजपा नेता सरताज सिंह कांग्रेस में चले गये जबकि दलित नेता प्रेमचंद गुड्डु भाजपा से जुड़ गये।  

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राजस्थान में सत्ताविरोधी लहर मजबूत 
राजस्थान में चुनावी समर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से भिन्न जान पड़ता है। यहां 1998 से एक बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा चुनाव जीतती रही है। 2013 के चुनाव में भाजपा ने 45.17 फीसद वोट हासिल किया था जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत 33.07 फीसद रहा था। यहां अन्य राज्यों की तुलना में सत्ताविरोधी लहर बड़ा कारक है। मध्यप्रदेश और मिजोरम में 28 नवंबर को तथा राजस्थान एवं तेलंगाना में सात दिसंबर को मतदान होगा।     

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