Edited By Archna Sethi,Updated: 08 Jun, 2025 06:09 PM

अकाली-भाजपा गठबंधन और कांग्रेसी सरकारों ने एस.सी.भाईचारे को सिर्फ वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया
चंडीगढ़, 8 जून (अर्चना सेठी) पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने आज पारंपरिक राजनीतिक पार्टियों पर आर्थिक रूप से कमज़ोर और पिछड़े वर्गों को नज़रअंदाज करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इन स्वार्थी नेताओं ने अनुसूचित जातियों (एससी) समुदाय को हमेशा अपने वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है।
आज यहां जनसभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन लोगों ने पोस्ट मैट्रिक वज़ीफ़ा योजना के तहत गरीब विद्यार्थियों की भलाई के लिए रखे पैसे को हड़प लिया था, वे अब कई स्वास्थ्य बीमारियों से जूझ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस लूट का पैसा अब अस्पतालों में उनके इलाज पर खर्च किया जा रहा है क्योंकि वे परमात्मा के रोष का सामना कर रहे हैं।
भगवंत सिंह मान ने कहा कि राज्य के ये शासक आम आदमी की समस्याओं के प्रति पूरी तरह संवेदनहीन थे और उन्होंने हमेशा अनुसूचित जाति भाईचारे के साथ वोट बैंक वाला व्यवहार किया।
पिछली सरकारों पर निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इन नेताओं ने अपने सरकारी पदों का दुरुपयोग करके बेशुमार दौलत इकट्ठी की और बड़े-बड़े महल बनाए थे। उन्होंने कहा कि इस महल की दीवारें ऊंची थीं और आम लोगों के लिए दरवाजे अक्सर बंद रहते थे। भगवंत सिंह मान ने कहा कि ये नेता लोगों की पहुंच से बाहर रहे, जिसके कारण लोगों ने भी इन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के लोगों ने उन राजनीतिक पार्टियों को बुरी तरह नकार दिया जो हर पांच सालों के बाद उन्हें लूटने के लिए 'उतर काटो, मैं चढूंगा' (एक को हटाकर दूसरा आना) की तरह आपस में मिलीभगत करके सत्ता हथियाती थीं। उन्होंने कहा कि इन नेताओं ने लंबे समय से लोगों को मूर्ख बनाया है, लेकिन अब लोग उनके दुष्प्रचार में नहीं आते। भगवंत सिंह मान ने कहा कि इन अहंकारी राजनेताओं ने हमेशा राज्य के लोगों को हल्के में लिया है, जिसके कारण उन्हें लोगों ने अंत में बाहर का रास्ता दिखा दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछली सरकारों के कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़े-लिखे नेताओं ने कभी भी राज्य में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। उन्होंने कहा कि इसका एकमात्र कारण यह था कि उनके अपने बच्चे पहाड़ों के बड़े प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते थे जबकि सरकारी स्कूलों में सिर्फ साधारण परिवारों के बच्चे ही पढ़ते थे