Edited By Yaspal,Updated: 18 Jul, 2020 06:51 PM
सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश के तौर पर अपने अंतिम कार्य दिवस को न्यायमूर्ति भानुमति का वह दर्द बाहर आ गया जो उनके बचपन के दिनों में परिवार को झेलना पड़ा था। न्यायमूर्ति भानुमति ने छह दशक पहले के अपने बचपन के दिनों के दर्द का खुलासा करते हुए कहा उनका...
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश के तौर पर अपने अंतिम कार्य दिवस को न्यायमूर्ति भानुमति का वह दर्द बाहर आ गया जो उनके बचपन के दिनों में परिवार को झेलना पड़ा था। न्यायमूर्ति भानुमति ने छह दशक पहले के अपने बचपन के दिनों के दर्द का खुलासा करते हुए कहा उनका परिवार भी न्यायिक व्यवस्था में देरी से न्याय मिलने और जटिल न्यायिक प्रक्रिया का शिकार हुआ था। उनका यह दर्द अंतिम कार्य दिवस को सुप्रीम कोटर् बार एसोसिएशन की ओर से आयोजित वर्चुअल विदाई समारोह के दौरान छलका। वह 19 जुलाई को सेवानिवृत्त होने वाली है, लेकिन शनिवार और रविवार को शीर्ष अदालत में सप्ताहांत की छुट्टी के कारण शुक्रवार ही उनका अंतिम कार्य दिवस था।
न्यायमूर्ति भानुमति ने बताया, ‘‘मैंने अपने पिता को एक बस दुर्घटना में खो दिया, जब मैं दो साल की थी. उन दिनों हमें पिता की मौत पर मुआवजे के लिए मुकदमा दायर करना पड़ा।'' उन्होंने कहा,‘‘मेरी मां ने दावा दायर किया और अदालत ने फैसला सुनाया, लेकिन हमें मुआवजे की राशि नहीं मिल पाई। न्याय की काफी जटिल प्रक्रियाएं थी। स्वयं, मेरी विधवा मां और मेरी दो बहनें, हम न्यायालय में सुनवाई की देरी और न्यायिक प्रकिया में जटिलताओं के शिकार थे।''
न्यायमूर्ति भानुमति ने बताया कि उनकी माता जी की मेहनत से उनकी तीनों बहनों ने पढ़ाई की और उन्होंने शीर्ष अदालत के जज की कुर्सी पर बैठकर लोगों को न्याय देने का मुकाम हासिल किया। वह शीर्ष अदालत के इतिहास में ऐसी अकेली जज हैं जो निचली अदालत में जज की कुर्सी से तरक्की करते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत की कुर्सी पर पहंचीं। न्यायमूर्ति भानुमति ने शुक्रवार को अदालत की परंपरा के अनुसार मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे के साथ बेंच साझा किया और कुछ मामलों की सुनवाई की।