बीडीएस उम्मीदवार को अदालत ने पांच लाख रुपये का मुआवजा दिलाया

Edited By PTI News Agency,Updated: 07 Dec, 2021 08:34 PM

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चेन्नई, सात दिसंबर (भाषा) मद्रास उच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति की एक महिला उम्मीदवार को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है, जिसे संबंधित अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण 2014 में नमक्कल जिले के तिरुचेंगोडे में एक निजी डेंटल कॉलेज...

चेन्नई, सात दिसंबर (भाषा) मद्रास उच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति की एक महिला उम्मीदवार को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है, जिसे संबंधित अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण 2014 में नमक्कल जिले के तिरुचेंगोडे में एक निजी डेंटल कॉलेज में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम ने तमिलनाडु स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन सचिव, चयन समिति और केएसआर डेंटल कॉलेज को ए जयरंजनी को बीडीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश से वंचित करने के लिए जिम्मेदार ठहराया और उन्हें चार सप्ताह के भीतर मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया।


मुआवजे की राशि के अनुपात को लेकर न्यायाधीश ने कहा कि स्वास्थ्य सचिव और चयन समिति संयुक्त रूप से याचिकाकर्ता को तीन लाख रुपये और कॉलेज दो लाख रुपये का भुगतान करे।


न्यायाधीश ने छात्रा द्वारा हाल में दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया।

याचिकाकर्ता के अनुसार, वह अनुसूचित जाति समुदाय से है और उसके पिता का 2011 में निधन हो गया था और उसकी विधवा मां परिवार का भरण-पोषण कर रही है। उसने मार्च 2014 में आयोजित हायर सेकेंडरी पब्लिक परीक्षा में 1,063 अंक हासिल किए थे और एमबीबीएस/बीडीएस कोर्स के लिए आवेदन किया था।
उनका चयन किया गया और उसे बीडीएस में प्रवेश की पेशकश की गई और तिरुचेंगोडु में केएसआर डेंटल कॉलेज आवंटित किया गया। आवंटन का आदेश 30 सितंबर 2014 को शाम चार बजे चयन समिति द्वारा जारी किया गया था। प्रवेश पत्र देर से जारी होने के कारण, याचिकाकर्ता कॉलेज में प्रवेश करने में असमर्थ थी, जो प्रवेश की अंतिम तिथि थी।
अगली सुबह हालांकि उसने अपने दादा के साथ संस्था को सूचना दी, लेकिन प्रमाणपत्रों को सत्यापित करने और पाठ्यक्रम में प्रवेश देने के बजाय, कॉलेज के प्रशासनिक अधिकारी ने दाखिला देने से इनकार कर दिया था।

याचिकाकर्ता ने चयन समिति द्वारा जारी आवंटन आदेश दिखाया और इसके बावजूद, उन्होंने उसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। ऐसे में याचिकाकर्ता मौजूदा रिट याचिका दायर करने को बाध्य हुई, जिससे कॉलेज और अन्य अधिकारियों को उसे बीडीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश देने का निर्देश दिया जा सके।


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