बंगाल : बदले राजनीतिक समीकरणों के बीच एक दशक बाद हो रहे जीटीए चुनाव पर सभी की नजर

Edited By Updated: 24 Jun, 2022 06:08 PM

pti west bengal story

कोलकाता, 24 जून (भाषा) उत्तरी बंगाल के पहाड़ी जिलों में गत कुछ सालों में हुए राजनीतिक बदलाव के बीच गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के लिए रविवार को मतदान होगा जिसपर सभी की नजर बनी हुई है।

कोलकाता, 24 जून (भाषा) उत्तरी बंगाल के पहाड़ी जिलों में गत कुछ सालों में हुए राजनीतिक बदलाव के बीच गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के लिए रविवार को मतदान होगा जिसपर सभी की नजर बनी हुई है।
अर्ध स्वायत्त परिषद के 45 सदस्यों के लिए होने वाले चुनाव में पहाड़ी जिलों की पांरपरिक पार्टियां जैसे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा(जीजेएम), गोरखा नेशनल लिब्रेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) हिस्सा ले रही हैं। वहीं, भाजपा चुनाव का बहिष्कार कर रही है जबकि हाल में दर्जीलिंग नगर निकाय चुनाव जीतने वाली हमारो पार्टी पहली बार जीटीए चुनाव में सभी सीटों किस्मत आजमा रही है।

हालांकि, जिन पार्टीयों ने चुनाव का बहिष्कार किया है, उनके कई नेता बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं।
जीएनएलएफ के पूर्व नेता और दार्जीलिंग के रेस्तरां व्यवसायी अजॉय एडवर्ड ने हमारो पार्टी बनाई है जो पहाड़ों में नयी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी है।
एडवर्ड ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ हमें निकाय चुनाव में दार्जीलिंग नगपालिका में मिली जीत की तरह ही जीटीए में भी जीत का भरोसा है। पहाड़ों में रहने वाले लोग इन पार्टियों के झूठे वादों से तंग आ चुके हैं जिन्होंने उनके साथ गत कुछ दशकों में केवल विश्वासघात किया है।’’
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2011 में 34 साल के वाम मोर्चा की सरकार के बाद तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आई। इसके बाद जीजेएम अध्यक्ष बिमल गुरुंग, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पी.चिदंबरम की उपस्थिति में जीटीए का गठन किया गया।
नए अर्ध स्वायत्त परिषद ने दार्जीलिंग गोरखा हिल काउंसिल का स्थान लिया जो वर्ष 1988 से पहाड़ी जिलों का प्रशासन देख रही थी।
जीजेएम ने वर्ष 2012 में पहले और एकमात्र जीटीए चुनाव में भारी जीत दर्ज की। जीटीए के लिए वर्ष 2017 में चुनाव होना था लेकिन राज्य के दर्जे की मांग को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शनों की वजह से चुनाव नहीं हो सके। इसकी वजह से परिषद का कार्य राज्य सरकार द्वारा नियुक्त प्रशासनिक निकाय के हाथों में आ गया।
गत सालों में आए राजनीतिक उतार चढ़ाव की वजह से जीजेएम के अधिकतर आधार क्षेत्र पर हमारो पार्टी का कब्जा हो गया है। जीजेएम ने जीटीए के न्यायाधिकार क्षेत्र को बढ़ाने की मांग पर राज्य सरकार द्वारा ध्यान नहीं देने के खिलाफ चुनाव का बहिष्कार किया है।
जीजेएम के महासाचिव रोशन गिरि ने कहा,‘‘हम क्यों चुनाव लड़े? जीटीए अब स्वायत्त निकाय नहीं रह गया है। यह अब पहाड़ों के लोगों के अधिकारों को नहीं देखता है।’’
गौरतलब है कि जीजेएम और तूणमूल कांग्रेस द्वारा जीटीए के गठन के साथ स्थापित शांति अल्पकाल के लिए रही और गुरुंग ने वर्ष 2013 में और फिर वर्ष 2017 में राज्य की मांग को लेकर पहाड़ी जिलों में बंद का आह्वान किया।
वर्ष 2017 में 104 दिनों तक चले विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस कर्मियों सहित कई लोगों की मौत हुई और गुरुंग को पहाड़ों को छोड़कर भागना पड़ा।
इस हड़ताल की वजह से जीजेएम में भी फूट पड़ गई और उपाध्यक्ष बिनय तमांग ने पार्टी पर कब्जा कर लिया और गुरुंग और उनके विश्वस्तों को पार्टी से बाहर निकाल दिया गया।
अक्टूबर 2020 में गुरुंग ने भाजपा के साथ भी राजनीतिक गठबंधन तोड़ दिया और आरोप लगाया कि उसने गोरखालैंड के मुद्दे पर विश्वासघात किया है। भाजपा वर्ष 2009 से ही दार्जीलिंग लोकसभा सीट जीत रही है।
भाजपा ने जीटीए चुनाव का बहिष्कार किया है। पार्टी ने कहा कि अर्ध स्वायत्त परिषद पहाड़ के लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए‘‘तमाशा’’ है।

दार्जीलिंग से भाजपा सांसद राजू बिष्ट ने कहा,‘‘ जीटीए ने गत 10 साल में किन उद्देश्यों की पूर्ति की है?क्या इसने पहाड़ के लोगों की अकांक्षाओं को पूरा किया है? जीटीए महज तृणमूल कांग्रेस का विस्तार है।’’
वहीं, दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस ने अनौपचारिक रूप से जीटीए के पूर्व अध्यक्ष और जीजेएम नेता अनित थापा की नवगठित भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा के साथ सीटों का करार किया है। तृणमूल कांग्रेस 10 सीटों पर लड़ रही है जबकि थापा की पार्टी 36 सीटों पर किस्मत आजमा रही है।



यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
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