पनगढ़िया का जाना एक बड़ा बदलाव

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Aug, 2017 12:48 AM

a big change in the journey of pangarhia

नीति आयोग से अरविंद पनगढ़िया का जाना एक दुखद घटनाक्रम के तौर पर देखा जा सकता है लेकिन इसके...

नीति आयोग से अरविंद पनगढ़िया का जाना एक दुखद घटनाक्रम के तौर पर देखा जा सकता है लेकिन इसके साथ यह एक और महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत भी हो सकता है। नीति आयोग के नए आने वाले प्रमुख राजीव कुमार को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारतीय आर्थिक नीति निर्माण में विदेशी प्रभाव की समाप्ति होगी। 

पनगढ़िया के तय उत्तराधिकारी ने ये संकेत दिए हैं कि आर.बी.आई. के पूर्व प्रमुख रघुराम राजन की बीते वर्ष विदाई के बाद अब पनगढ़िया का जाना इस बड़े बदलाव का प्रतीक है। भारतीय-अमरीकी अर्थशास्त्रियों की धीरे-धीरे विदाई के बाद अब उन लोगों को लाया जा रहा है जोकि भारत की वास्तविकताओं को अच्छे से समझते हैं। उनकी इस टिप्पणी ने कइयों को जीभ दबाने के लिए मजबूर कर दिया और जिन लोगों ने कुमार की कोई छवि बना रखी थी, उनको भी अपनी सोच बदलने के लिए मजबूर कर दिया। साथ ही स्पष्ट कर दिया कि भविष्य की नीतियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिशा-निर्देशों के अनुसार तय होंगी या सत्तारूढ़ शासन के भीतर स्वदेशी लॉबी के अनुसार होंगी जो कि विदेश में शिक्षित अर्थशास्त्रियों के विचारों से अधिक सहमत नहीं होते थे। 

उनके इस विचार से यह भी लगता है कि उन्होंने सरकार को एक ताना मारा है जोकि विदेश से आए अर्थशास्त्रियों पर अधिक भरोसा करती रही है। अगर सरकार में यह सोच हावी हो रही है तो विदेश से आए हुए अर्थशास्त्रियों के लिए अब वर्तमान सत्तातंत्र से विदाई का समय आ गया है और यहां पर उनका अधिक स्वागत नहीं होगा। साथ ही आप यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि आगे किसकी विदाई होगी। बाबुओं को मोदी सरकार की कड़ी चेतावनी: 2014 से मोदी सरकार ने कमजोर कामकाज के आधार पर 400 से अधिक अधिकारियों को नौकरी से हटा दिया है, जिनमें आई.ए.एस. और आई.पी.एस. तक शामिल हैं। 

बाबुओं को जो बात सबसे अधिक परेशान कर रही है वह यह है कि सरकार लगातार ऐसे बाबुओं को नौकरी से बाहर करने पर तुली हुई है, जो अखंडता और ईमानदारी के मामले में अपनी प्रतिबद्धता साबित करने में सफल नहीं होंगे। अब वर्ष में 2 बार ऐसे बाबुओं की एक सूची तैयार की जाएगी और कैबिनेट सचिव द्वारा उसकी निगरानी की जाएगी। इससे पहले, ऐसी सूची नियमित रूप से एक वर्ष में तैयार की जाती थी। अब यह सूची 1 जनवरी से 30 जून के बीच और फिर 1 जुलाई से 31 दिसंबर तक की अवधि के लिए तैयार की जाएगी। 

इन 2 सूचियों में शामिल अधिकारियों को पहचाने गए संवेदनशील / भ्रष्टाचार की संभावना वाले क्षेत्रों में तैनात नहीं किया जाएगा। इससे पहले विभिन्न विभागों द्वारा तैयार की गई सूचियों को केन्द्रीय गृह मंत्रालय के पास भेज दिया गया था, वहां से यह सूची सी.बी.आई. को भेजी थी, जो एक संशोधित सूची तैयार करती है। इस सूची पर अब कैबिनेट सचिव द्वारा कड़ी नजर रखी जाएगी। मोदी सरकार लगातार मजबूत संकेत दे रही है कि वह ऐसे नाकारा या कुर्सी पर बैठकर सिर्फ उसे तोडऩे वाले नौकरशाहों को बर्दाश्त नहीं करेगी। अब भ्रष्ट बाबुओं को और अधिक सतर्क रहना होगा क्योंकि उन पर सरकार की सीधी नजर है! 

मोहम्मद मुस्तफा की घर वापसी: वित्तीय सेवाएं विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर कार्यरत मोहम्मद मुस्तफा की लघु उद्योग विकास बैंक ऑफ इंडिया (सिडबी) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक (सी.एम.डी.) के रूप में नियुक्ति 1995 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर आई.ए.एस. अधिकारी के लिए एक प्रकार की घर वापसी है। चूंकि 2012 तक मुस्तफा दिल्ली में वित्त मंत्रालय में वित्तीय सेवा विभाग के साथ रहे हैं, शुरू में एक निदेशक के रूप में और उसके बाद संयुक्त सचिव के रूप में काम करते रहे हैं। 1990 में स्थापित, और लखनऊ में मुख्यालय के साथ सिडबी उद्योगों को रिफाइनैंस की सुविधा और अल्पावधि के लिए ऋण प्रदान करता है। सिडबी के सी.एम.डी.  के तौर पर मुस्तफा मोदी सरकार की प्रिय योजना स्टार्ट अप इंडिया स्कीम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। 

कुछ पर्यवेक्षकों ने अभी भी उत्तर प्रदेश में मुस्तफा के कार्यकाल को याद किया और उन्हें एक ऐसे बिंदास अधिकारी के रूप में मानते हुए कहा कि पूर्व समाजवादी पार्टी और बसपा सरकारों के साथ उन्होंने काफी मुश्किल समय बिताया था। प्रतापगढ़ के जिला मैजिस्ट्रेट के रूप में उन्होंने सपा समर्थक विधायक राजा भैया को उठाया। दिल्ली जाने से पहले यू.पी. में उनकी पिछली नियुक्ति राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के मिशन निदेशक के तौर पर थी। अब वह अपने कैडर राज्य में लौटे हैं लेकिन उम्मीद है कि इस बार उनकी पारी आसान रहेगी।    

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