गुजरात विधानसभा चुनाव: भाजपा न हारी तो हार्दिक कांग्रेस के लिए ‘खलनायक’ बन जाएंगे

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Nov, 2017 03:01 AM

gujarat assembly elections if bjp fails hearty congress will become villains

यह मानने में कोई संदेह नहीं कि पाटीदार नेता हार्दिक पटेल में कई विशेषताएं हैं जिन्होंने उन्हें गुजरात विधानसभा चुनाव में विशेष बना दिया है। कांग्रेस जहां हार्दिक पटेल की उंगलियों पर नाच रही है और अपनी चुनावी संभावनाएं हाॢदक पटेल की करिश्माई छवि में...

यह मानने में कोई संदेह नहीं कि पाटीदार नेता हार्दिक पटेल में कई विशेषताएं हैं जिन्होंने उन्हें गुजरात विधानसभा चुनाव में विशेष बना दिया है। कांग्रेस जहां हार्दिक पटेल की उंगलियों पर नाच रही है और अपनी चुनावी संभावनाएं हार्दिक पटेल की करिश्माई छवि में देख रही है, वहीं भाजपा हार्दिक पटेल की चालबाजियों के शिकंजे में है और उसे हार्दिक पटेल की चुनौतियों से निपटने के लिए सी.डी. कांड जैसे हथकंडे भी अपनाने पड़े हैं। 

हार्दिक पटेल की खूबियां यहीं तक सीमित नहीं हैं। वे एक युवा हैं, उनकी उम्र अभी 22 साल भी नहीं हुई है, फिर भी वे गुजरात की पाटीदार जाति के दमदार नेता बन चुके हैं। उसने सबसे मजबूत और दबंग तथा राजनीति को अपने शिकंजे में कैद रखने वाली जाति को सड़कों पर उतार दिया और आरक्षण की आग में उसी भाजपा को झोंक दिया, जो पाटीदार जाति की राजनीति पर सवारी करती थी। कांग्रेस ने हार्दिक पटेल की आरक्षण की मांग को स्वीकार कर चुनावी राजनीति में उसकी सर्वश्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि भाजपा विरोधी राजनीतिक धड़े ने हार्दिक पटेल की कथित तौर पर करिश्माई छवि को भुनाने की कोई कसर नहीं छोड़ी है। मीडिया पूरी तरह से हार्दिक पटेल से चमत्कृत है और मीडिया में उसे नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी से भी बड़ी जगह मिल रही है। 

स्थापित सत्य है कि गुजरात की राजनीति पटेल जाति के इर्द-गिर्द ही घूमती है, नाचती है और सत्ता बनती-बिगड़ती है। जिस तरह से बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति में यादवों का दबदबा है उसी तरह से गुजरात में पटेल जाति का दबदबा है लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश में यादवों के बीच उपजातियों का कोई विवाद और झगड़ा नहीं है, जबकि गुजरात में पटेल जाति के अंदर भी कई उपजातियां हैं और इन उपजातियों में समय-समय पर राजनीतिक विवाद उत्पन्न होते रहे हैं और यह भी उल्लेखित है कि पटेल जाति की उपजातियों के अपने-अपने नेता भी हैं। पर चुनावी विशेषक या फिर मीडिया बदलते हुए राजनीतिक समीकरण और राजनीतिक वर्चस्व को समझ नहीं पा रहे हैं। बड़ी जातियों का मिथक टूट रहा है, बड़ी जातियों का वर्चस्व विध्वंस हो रहा है। सबसे पहले बिहार में इसका उदाहरण उपस्थित हुआ था जहां पर यादवों के वर्चस्व और गुंडागर्दी से उत्पन्न लालू की सत्ता को नीतीश कुमार ने नई सामाजिक संरचना के आधार पर धराशायी कर दिया था। 

अभी-अभी उत्तर प्रदेश में यादवों के वर्चस्व वाली अखिलेश सरकार का पतन किसने नहीं देखा है? सबसे बड़ा उदाहरण तो हरियाणा का है, जहां पर जाट जाति का वर्चस्व उल्लेखनीय था और सभी दल जाट पर ही दाव लगाते थे, जाट मुख्यमंत्री होने की कल्पना की जाती थी। भाजपा ने हरियाणा की जाट खुशफहमी की राजनीति का विध्वंस कर दिया था और आज हरियाणा में गैर-जाट वर्चस्व वाली सरकार चल रही है और गैर-जाट हरियाणा का मुख्यमंत्री है। अगर देश के अन्य राज्यों में जब वर्चस्व वाली जातियां पराजित होकर सत्ता से बाहर हो सकती हैं तो फिर गुजरात में पटेल-पाटीदारों का राजनीतिक हश्र बुरा क्यों नहीं हो सकता है? 

एक समय वह भी था जब गुजरात में गैर-पटेल मुख्यमंत्री होने की उम्मीद नहीं होती थी। इस खुशफहमी को खुद नरेंद्र मोदी ने तोड़ा था। केशुभाई पटेल के खिलाफ आंतरिक विरोध के बावजूद नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली थी। पूरे 12 सालों तक नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे थे। इस दौरान नरेंद्र मोदी ने किसी पटेल नेता को पनपने नहीं दिया था। कई स्थापित पटेल नेता बौखला गए थे, मोदी के खिलाफ खड़े हो गए थे, सबके सब या तो फिर से मोदी समर्थक हो गए या फिर राजनीतिक तौर पर हाशिए पर खड़े होकर मृतप्राय: हो गए। नरेंद्र मोदी के खिलाफ केशुभाई पटेल को भी खड़ा कर दिया गया। केशुभाई पटेल को भी यह खुशफहमी हो गई थी कि भाजपा उनके रहमो-करम पर पलती है, उसी ने भाजपा को खड़ा किया है। केशुभाई पटेल एक समय भाजपा के सर्वमान्य नेता थे और उनके सामने कोई खड़ा होने का साहस नहीं करता था। 

केशुभाई पटेल बहकावे में आ गए, उनकी इच्छा फिर से मुख्यमंत्री बनने की हुई थी, उन्होंने भाजपा के अंदर नरेंद्र मोदी के खिलाफ ताल ठोंक दिया था। भाजपा ने नरेद्र मोदी को हटा कर उन्हें मुख्यमंत्री बनाने से इंकार कर दिया था। केशुभाई पटेल भाजपा से अलग हो गए। उन्होंने अलग पार्टी बना डाली। हाॢदक पटेल की तरह उन्होंने पटेलों की अस्मिता का प्रश्र उठाया था। पटेलों की राजनीतिक विरासत को उछाला था। केशुभाई पटेल की राजनीतिक सभाओं में अप्रत्याशित भीड़ जुटती थी। 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों में मीडिया और गुजरात विशेषक पूरी तरह से केशुभाई पटेल जैसे उन्माद के शिकंजे में कैद हो गए थे। मीडिया और चुनाव विश्लेषक ने यह घोषणा कर रखी थी कि नरेंद्र मोदी को केशुभाई पटेल की राजनीतिक चुनौती भारी पड़ेगी, मोदी की सत्ता संकट में फंस जाएगी और उनकी सत्ता परिवर्तन की आंधी में उड़ सकती है। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। 

हार्दिक पटेल बहुत शक्तिशाली नेता मान लिए गए हैं पर उनकी राजनीतिक शक्ति केशुभाई पटेल जैसी भी नहीं है। प्रश्र यह है कि अगर केशुभाई पटेल नरेंद्र मोदी और भाजपा का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाए और अपमानित होकर फिर से अपने परिवार को भाजपा में शामिल कराने के लिए मजबूर हुए तो फिर हाॢदक पटेल नरेंद्र मोदी का क्या बिगाड़ लेंगे?। सबसे बड़ी बात यह है कि सिर्फ एक जाति अपनी बदौलत सत्ता हासिल नहीं कर सकती है। पिछड़ी जातियों में सिर्फ पटेल-पाटीदार ही नहीं हैं। पिछड़ी अन्य जातियां जो गरीब और सही रूप में पिछड़ी हैं वे पाटीदारों के आरक्षण आंदोलन से खफा हैं और वे नहीं चाहतीं कि उनके अधिकार का हनन कर शक्तिशाली और समृद्ध पाटीदारों को आरक्षण का लाभ मिले। ऐसी जातियां बिहार और उत्तर प्रदेश में यादवों के विरोधी तर्ज पर गुजरात में भी पाटीदारों के खिलाफ खड़ी होकर भाजपा के पक्ष में गोलबंदी कर सकती हैं। 

इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि हार्दिक पटेल सत्ता बनाने और गिराने की शक्ति रखते हैं। यह अलग बात है कि कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ हार्दिक पटेल की कथित राजनीतिक शक्ति पर सवार हो गई है। अगर भाजपा पराजित नहीं हुई तो फिर कांग्रेस के लिए हार्दिक पटेल खलनायक हो जाएंगे।-विष्णु गुप्त

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!