केजरीवाल ने अपने लाखों समर्थकों का सिर नीचा करवा दिया

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Mar, 2018 03:59 AM

kejriwal lowered his millions of supporters

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल द्वारा पहले पंजाब के पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया से और फिर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली जैसे वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं से बिना शर्त क्षमा याचना से न केवल पार्टी के अंदर तूफान खड़ा हो गया है बल्कि...

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल द्वारा पहले पंजाब के पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया से और फिर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली जैसे वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं से बिना शर्त क्षमा याचना से न केवल पार्टी के अंदर तूफान खड़ा हो गया है बल्कि राजनीतिक सदाचार और मर्यादाओं को लेकर भी कई सवाल खड़े हो गए हैं। 

क्या केजरीवाल को यह एहसास है कि इस तरह के आधारहीन बयान देने और बिना सोचे-समझे दोषारोपण करने से वह शायद चुनाव तो जीत सकते हैं लेकिन इस तरह के आरोपों ने उन सभी की प्रतिष्ठा दागदार कर दी है जिनके विरुद्ध ये लगाए गए थे। राजनीतिज्ञों के अलावा मीडिया संगठनों और पत्रकारों को भी मानहानि मामले में पक्ष बनाया गया था जिसके फलस्वरूप अदालतों में समय की भारी बर्बादी हुई। यह क्षमा याचना एक तरह से इस तथ्य की स्वीकारोक्ति है कि केजरीवाल ने केवल चुनाव जीतने के लिए ही झूठे और आधारहीन आरोप लगाए थे। अब इन आरोपों को जब उन्होंने स्वयं झूठ मान लिया है तो क्या यह उनका नैतिक दायित्व नहीं बनता कि अपने पद से खुद इस्तीफा दें और उन सभी पार्टी नेताओं को भी इस्तीफा देने को मजबूर करें जो इन झूठे दोषारोपणों के आधार पर चुनाव जीते थे? 

‘आप’ के उत्साही समर्थक और उनके नेता हो सकता है यह बहाना गढ़ें कि चुनाव से पहले तो सभी पाॢटयां आधारहीन आरोप लगाती हैं इसलिए यदि उन्होंने किसी तरह के ऐसे आरोप लगाए हैं तो कौन सा आसमान गिर गया है। लेकिन मेरा नुक्ता यह है कि ‘आप’ ने तो खुद को बिल्कुल ‘अलग तरह की’ पार्टी के रूप में प्रस्तुत किया था। ‘आम आदमी’ अपनी हित साधना या सफलता के लिए या किसी अन्य लाभ हेतु क्या लोगों पर झूठे आरोप लगाते हैं? ‘आप’ ने स्वच्छ राजनीति का वायदा किया था और कहा था कि दूसरी पार्टियों द्वारा फैलाई गई गंदगी से यह दूर रहेगी। 

यही कारण था कि पहले दिल्ली, फिर पंजाब में इसे व्यापक जन समर्थन हासिल हुआ। सैंकड़ों प्रोफैशनलों और कर्मचारियों ने अपनी नौकरियों से या तो त्यागपत्र दे दिया था या फिर छुट्टी लेकर चुनावी अभियान में हिस्सा लिया था। जिन लोगों ने अपनी नौकरियां ही छोड़ दी थीं वे जानी-मानी कम्पनियों में वरिष्ठ पदों पर सुशोभित थे और चुनावी अभियान के लिए पैसा भी उन्होंने अपनी जेब से खर्च किया था। ऐसे लोगों का यह दृढ़ विश्वास था कि स्वतंत्रता के बाद देश में यदि कोई सबसे अच्छी घटना हुई है तो वह है ‘आप’ का अवतरण। ये सभी लोग इस पार्टी की सादगी और स्वच्छता तथा इसके उम्मीदवारों की साफ-सुथरी छवि व भ्रष्टाचार के विरुद्ध उनके ‘धर्म युद्ध’ का गुणगान करते नहीं थकते थे। 

लेकिन बाद में ऐसा देखने को नहीं मिला और अब क्षमा याचनाओं ने तो इस बात को प्रमाणित कर दिया है कि आम आदमी पार्टी के नेताओं ने चुनाव जीतने के लिए कितने बड़े झूठ का सहारा लिया था। इनमें से कई एक तो चुनाव जीत जाने के बाद भी स्वयं आरोपों में घिरे हुए हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि ‘आप’ की दिल्ली सरकार के लगभग 18 विधायक आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं और इनमें से कुछेक को तो कई दिन जेल में बिताने पड़े हैं। जहां तक केजरीवाल का सवाल है, उन्होंने खुद राज्यसभा सीटें ऐसे धन्नासेठों को दी हैं जिनकी एकमात्र योग्यता यह है कि उनके पास अकूत सम्पत्ति है। स्पष्ट है कि ऐसे लोगों को टिकट किसी योग्यता के आधार पर नहीं दी गई लेकिन ऐसे लोगों को टिकट देने के लिए निश्चय ही पार्टी के पुराने और भरोसेमंद कार्यकत्र्ताओं की अनदेखी की गई है। 

इसके अलावा योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण तथा उन्हीं जैसे अन्य शीर्ष नेताओं को पार्टी में से बाहर धकेलने और पंजाब के चुनावी अभियान को घटिया तरीके से हैंडल करने के कारण ही पंजाब में पार्टी की चुनावी कारगुजारी अपेक्षाकृत घटिया रही है। पहले उन्होंने अग्रणी प्रादेशिक नेताओं में से एक सुच्चा सिंह छोटेपुर को पार्टी से निकाल दिया और फिर उम्मीदवारों के चयन के लिए केंद्रीय टीम थोप दी। इस टीम ने उम्मीदवारों के चयन में अनेक भारी-भरकम गलतियां कीं। स्थानीय नेतृत्व पर भरोसा न करने तथा महत्वपूर्ण फैसलों में उन्हें खुली छूट न देने के कारण पार्टी को बहुत भारी कीमत अदा करनी पड़ी है। 

पंजाब में पार्टी ने नशीले पदार्थों की लानत को समाप्त करने तथा नशा तस्करों के साथ राजनीतिज्ञों की कथित सांठ-गांठ को बेनकाब करने के मुद्दे पर ही चुनावी अभियान चलाया था। तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल के साला साहिब बिक्रम सिंह मजीठिया किसी न किसी तरीके से इस मनहूस सांठ-गांठ के प्रतीक के रूप में प्रचारित कर दिए गए। पंजाब के एक अमीर जमींदार परिवार से संबंध रखने वाले मजीठिया किसी भी तरह की संलिप्तता से इंकार करते रहे हैं लेकिन ‘आप’ के साथ-साथ कांग्रेस ने भी उन पर लक्ष्य साधे रखा। ‘ड्रग माफिया’ और मजीठिया के बीच सांठ-गांठ के प्रमाण के रूप में जो बात प्रस्तुत की गई वह पूर्व नशा तस्कर एवं पंजाब पुलिस के डी.एस.पी. जगदीश भोला द्वारा तफ्तीश दौरान दिया गया बयान था। इन आरोपों के उत्तर में मजीठिया ने न केवल ‘आप’ के नेताओं बल्कि कई मीडिया संगठनों के विरुद्ध मानहानि मामले दायर करवाए। 

तथ्य यह है कि केजरीवाल और उनकी पार्टी ने लाखों समर्थकों का सिर नीचा करवा दिया है। एक पूरी की पूरी पीढ़ी के सपनों की हत्या करने के दोष से केजरीवाल बचकर नहीं निकल सकते। यह पीढ़ी उनसे यह उम्मीद लगाए हुए थी कि वह एक अलग रास्ता अपनाएंगे और देश को तेज रफ्तार विकास के मार्ग पर अग्रसर करेंगे। उनसे एक स्वच्छ और भ्रष्टाचार मुक्त गवर्नैंस की उम्मीदें भी कोई कम महत्वपूर्ण नहीं थीं। केजरीवाल की गलतियों को भुलाने में इस पीढ़ी के लोगों को कई दशक लगेंगे और तब वे किसी नए नेता पर विश्वास जमा सकेंगे कि वह देश को आगे ले जा सकता है।-विपिन पब्बी

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