सहारनपुर हिंसा के विस्तार से बढ़ेंगी भाजपा की मुश्किलें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 May, 2017 11:30 PM

saharanpur violence will increase with bjps problems

यू.पी. की योगी सरकार को एक सरल-सा सवाल परेशान कर रहा है कि सर्वशक्तिमान....

यू.पी. की योगी सरकार को एक सरल-सा सवाल परेशान कर रहा है कि सर्वशक्तिमान सरकार चुनाव के शीघ्र ही बाद एक जिले के स्तर पर अमन-कानून की स्थिति एवं राजनीतिक मुद्दों को हैंडल करने में विफल क्यों है? इसका उत्तर खुद भाजपा की भारी-भरकम जीत की प्रवृत्ति में छिपा हुआ है। 

सहारनपुर में ठाकुरों और दलितों के बीच टकराव शायद अटल था। जातीय टकरावों को देखने के दो दृष्टिकोण हैं- एक तो है राजनीति के शीशे में से और दूसरा गवर्नैंस के पैंतरे से। यू.पी. में जीतने के लिए भाजपा ने उच्च जातियों, गैर यादव ओ.बी.सी. एवं गैर जाटव दलितों का आश्रय लिया था। ये तीनों वर्ग मिलकर यू.पी. की आबादी का 60 प्रतिशत बनते हैं। लेकिन इस जीत का एक दूसरा पहलू भी था-तीन अत्यंत सशक्त सामाजिक समूहों ने भाजपा के विरुद्ध मतदान किया। ये समूह थे-मुस्लिम, यादव और जाटव दलित। इन समूहों ने गत 15 वर्षों दौरान अलग-अलग समय पर यू.पी. में शासन किया है। ऐसे में यह बिल्कुल भी हैरानीजनक नहीं कि सत्ता संतुलन में परिवर्तन और सत्ता के ढांचे में से इन तीनों समूहों को बाहर किए जाने का जमीनी स्तर पर असर पडऩा शुरू हो गया था। 

जिन समूहों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया था वे कुछ अधिक दलेर हो गए थे जबकि मुस्लिम, यादव और जाटव खुद को अन्याय का पात्र महसूस कर रहे थे। यदि ऐसी मानसिकता किसी छोटे-मोटे समूह की होती, तो बात अलग थी। लेकिन जब वे मिलकर आबादी का 40 प्रतिशत बनते हों तो बिल्कुल अलग स्थिति पैदा हो जाती है। इसका तात्पर्य यह नहीं कि ये तीनों समूह एकजुट होकर काम कर रहे हैं बल्कि हकीकत इससे बहुत दूर है। वास्तव में तो उनके बीच आंतरिक विरोध और टकराव मौजूद हैं। 

लेकिन इन तीनों समूहों को छोड़कर हर किसी से (यानी 60 प्रतिशत आबादी से) वोट हासिल करके भाजपा को जो राजनीतिक सफलता मिली है, वह अब 40 प्रतिशत आबादी की गवर्नैंस की समस्या का रूप ग्रहण कर गई है। अब उसे मुस्लिम, यादव और जाटव समूहों की ओर से उबर रही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सहारनपुर में जाटव प्रचंड रूप में सामने आए हैं जबकि अन्य स्थानों पर मुस्लिम या यादव ऐसी ही भूमिका को अंजाम दे सकते हैं। ये तीनों समूह ऐसी प्रवृत्ति वाले नहीं हैं कि यदि भाजपा के समर्थक आक्रामक हो जाएं तो हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहेंगे। उनके पास पर्याप्त मात्रा में संख्या बल व इतनी राजनीतिक शक्ति भी है कि वे प्रशासन के लिए समस्याएं पैदा कर सकते हैं। 

यदि सहारनपुर की तर्ज पर अन्य जगहों पर भी ये समूह विरोध में उतर आते हैं तो भाजपा को दरपेश समस्या के एक नए आयाम से निपटना होगा। भाजपा इस समय एक महत्वाकांक्षी राजनीतिक प्रयोग- यानी बहुजातीय गठबंधन का सृजन करने की प्रक्रिया के ऐन बीचोंबीच से गुजर रही है। प्रधानमंत्री ने दलितों, पिछड़ों और गरीबों के बीच भाजपा के जनाधार का विस्तार करने का सचेत प्रयास किया है। भाजपा ने भी यह जान लिया है कि ङ्क्षहदू एकता का झंडा ऊंचा उठाने की इसकी वैचारिक परियोजना और चुनाव जीतने की परियोजना को दलितों के बगैर सदैव अवरोधों का सामना करना पड़ेगा। इसके साथ ही साथ पार्टी अपनी उच्च जातियों में परम्परागत जनाधार की वफादारियों को अक्षुण्ण बनाए रखने में सफल हुई है।

यदि सहारनपुर का टकराव विस्तार लेते हुए अन्य दलितों के साथ टकराव का रूप ग्रहण कर जाता है तो इसका तात्पर्य यह होगा कि भाजपा की ‘सबका साथ सबका विकास’ की बहुजातीय एवं बहुवर्गीय परियोजना खटाई में पड़ गई है। योगी आदित्यनाथ और भाजपा यह महसूूस कर रहे हैं कि यू.पी. जैसे प्रदेश में सामाजिक अंतॢवरोध इस प्रकार के हैं कि भारी-भरकम जनादेश को भी चुनौती मिलती रहेगी। वास्तव में तो इस प्रकार की राजनीतिक जीतें कभी-कभार स्वयं ही इन अंतॢवरोधों को धारदार बनाती हैं।     

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