रावण न करता ये भूल, भारत में नहीं लंका में होता बैजनाथ शिव मंदिर

Edited By ,Updated: 14 Nov, 2016 02:55 PM

baijnath shiva temple

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में सुंदर पहाड़ी स्थल पालमपुर के पास स्थित ‘बैजनाथ शिव मंदिर’ स्थानीय लोगों के साथ-साथ दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था का

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में सुंदर पहाड़ी स्थल पालमपुर के पास स्थित ‘बैजनाथ शिव मंदिर’ स्थानीय लोगों के साथ-साथ दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र है। यह मंदिर वर्ष भर पूरे भारत से आने वाले भक्तों, विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की बड़ी संख्या को आकर्षित करता है।


विशेषकर शिवरात्रि में यहां का नजारा ही अलग होता है। शिवरात्रि को सुबह से ही मंदिर के बाहर भोले नाथ के दर्शनों के लिए हजारों लोगों की भीड़ लगी रहती है। इस दिन मंदिर के साथ बहने वाली बिनवा खड्ड पर बने खीर गंगा घाट में स्नान का विशेष महत्व है। श्रद्धालु स्नान करने के उपरांत शिवलिंग को पंचामृत से स्नान करवाकर उस पर बिल्व पत्र, फूल, भांग, धतूरा इत्यादि अर्पित कर भोले बाबा को प्रसन्न करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुण्य कमाते हैं। महाशिवरात्रि पर हर वर्ष यहां पांच दिवसीय राज्य स्तरीय समारोह का आयोजन किया जाता है। सावन के महीने में भी बैजनाथ में शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। देश के कोने-कोने से शिव भक्तों के साथ विदेशी पर्यटक भी यहां आते हैं और मंदिर की सुंदरता को देखकर भाव-विभोर हो जाते हैं। 


निर्माण काल 
तेरहवीं शताब्दी में बने शिव मंदिर बैजनाथ अर्थात ‘वैद्यनाथ’ जिसका अर्थ है ‘चिकित्सा अथवा औषधीय का स्वामी’। मंदिर पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग के बिल्कुल पास ही स्थित है। इस क्षेत्र का पुराना नाम कीरग्राम था परंतु समय के साथ यह मंदिर के नाम से प्रसिद्ध होता गया और ग्राम का नाम ‘बैजनाथ’ पड़ गया। मंदिर के उत्तर-पश्चिम छोर पर बिनवा नदी बहती है जो आगे चलकर ब्यास नदी में मिलती है।


पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या की। कोई फल न मिलने पर दशानन ने घर तपस्या प्रारंभ की तथा अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहूति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न होकर रावण का हाथ पकड़ लिया।


उसके सभी सिरों को पुन: स्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिव जी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव जी ने अपने शिवलिंग स्वरूप के दो चिन्ह रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना।


रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका को चला। रास्ते में ‘गौकर्ण’ क्षेत्र बैजनाथ में पहुंचने पर रावण को लघुशंका का आभास हुआ। उसने ‘बैजु’ नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिव जी की माया के कारण बैजु उन  शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर पुन: पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे, उस मंजूषा के सामने जो  शिवलिंग था वह ‘चंद्रताल’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था वह ‘बैजनाथ’ के नाम से जाना गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर भी हैं और नंदी बैल की मूर्त है। नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते हैं। एक मान्यता यह भी है कि द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य ‘आहुक’ एवं ‘मनुक’ नाम के दो व्यापारियों ने 1204 ई. में पूर्ण किया था और तब से अब तक यह स्थान ‘शिवधाम’ के रूप में उत्तरी भारत में प्रसिद्ध है।


स्थापत्य कला 
इस मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश एक ड्योढ़ी से होता है, जिसके सामने एक बड़ा वर्गाकार मंडप बना है और उत्तर तथा दक्षिण दोनों तरफ बड़े छज्जे बने हैं। मंडप के अग्र भाग में चार स्तम्भों पर टिका एक छोटा बरामदा है, जिसके सामने ही पत्थर के छोटे मंदिर के नीचे खड़े हुए विशाल नंदी बैल की मूर्त है। पूरा मंदिर एक ऊंची दीवार से घिरा है और दक्षिण व उत्तर में प्रवेश द्वार हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों में मूर्तियों, झरोखों में कई देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। अनेक चित्र दीवारों में नक्काशी करके बनाए गए हैं। बरामदे का बाहरी द्वार और गर्भ गृह को जाता अंदरुनी द्वार अत्यंत सुंदर अनगिनत चित्रों से भरा पड़ा है।

    
धार्मिक आस्था का केंद्र 
बैजनाथ मंदिर परिसर में प्रमुख मंदिर के अलावा कई और छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें भगवान गणेश, मां दुर्गा, राधा कृष्ण व भैरव बाबा की प्रतिमाएं विराजमान हैं। दशहरा का उत्सव परम्परागत रूप से रावण का पुतला जलाने के लिए मनाया जाता है, लेकिन यहां बैजनाथ में इसे रावण द्वारा की गई भगवान शिव की तपस्या और भक्ति के लिए सम्मान के रूप में मनाया जाता है। बैजनाथ के शहर के बारे में एक और दिलचस्प  बात यह है कि यहां सुनार की दुकानें नहीं हैं। बैजनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए दिल्ली से पठानकोट या चंडीगढ़-ऊना होते हुए रेलमार्ग, बस या निजी वाहन व टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से पठानकोट और कांगड़ा जिले में गग्गल तक हवाई सेवा भी उपलब्ध है।    

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