Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Sep, 2017 11:54 AM
एक समय ज्ञान की खोज में 3 साधु हिमालय पहुंचे। वहां तीनों को जोरों की भूख लगी मगर उन्होंने पाया कि उनके पास 2 ही रोटियां शेष रह गई
एक समय ज्ञान की खोज में 3 साधु हिमालय पहुंचे। वहां तीनों को जोरों की भूख लगी मगर उन्होंने पाया कि उनके पास 2 ही रोटियां शेष रह गई थीं। तीनों ने तय किया कि वे उस दिन भूखे ही सो जाएंगे। ईश्वर जिसके सपने में आकर रोटी खाने का संकेत देंगे वही ये रोटियां खाएगा। ऐसा निश्चय कर वे तीनों साधु सो गए।
आधी रात के समय अचानक तीनों साधु उठे और एक-दूसरे को अपना-अपना सपना सुनाने लगे। पहले साधु ने कहा, ‘‘मैं सपने में एक अनजानी जगह पर जा पहुंचा। वहां बहुत शांति थी और वहां मुझे ईश्वर के दर्शन हुए। उन्होंने मुझसे कहा कि तुमने जीवन में सदा त्याग ही किया है इसलिए ये रोटियां तुम्हें ही खानी चाहिएं।’’
दूसरे साधु ने भी अपना सपना सुनाना शुरू किया, ‘‘मैंने सपने में देखा कि भूतकाल में तपस्या करने के कारण मैं एक महात्मा बन गया हूं और अकस्मात मेरी मुलाकात ईश्वर से होती है। सपने में ही वह मुझसे कहते हैं कि लंबे समय तक कठोर तप करने के कारण तुम्हारे पास पुण्य का अथाह भंडार है। इस पुण्य की बदौलत रोटियों पर पहला हक तुम्हारा बनता है, तुम्हारे मित्रों का नहीं।’’
अब तीसरे साधु की बारी आई। उसने साफ शब्दों में कहा, ‘‘मैंने सपने में कुछ नहीं देखा। न मेरे सपने में ईश्वर आए और न उन्होंने मुझे रोटी खाने को कहा, पर मैंने वे रोटियां खा ली हैं।’’
यह सुनकर दोनों साधु क्रोधित हो गए। उन्होंने तीसरे साधु से कहा, ‘‘यह निर्णय लेने से पहले तुमने हमें क्यों नहीं उठाया?’’
तीसरे साधु ने कहा, ‘‘कैसे उठाता? तुम दोनों तो ईश्वर से बातें करने में लगे हुए थे लेकिन ईश्वर ने मुझे नींद से उठाया और भूखा मरने से बचा लिया।’’
बिल्कुल सही कहा गया है कि जीवन-मरण का प्रश्न हो तो मित्रता निभा पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। व्यक्ति वही काम करता है जिससे उसका जीवन बच सके।