Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Apr, 2022 07:37 AM
आज 12 अप्रैल 2022 को हिंदू नववर्ष के उपरांत आने वाली ये पहली एकादशी है। ये कामनाओं को पूर्ण करने वाली और प्रेत योनि से मुक्ति प्रदान करती है। तभी तो इसे कामदा एकादशी कहा जाता है। शास्त्र कहते हैं, जो पुण्य कन्यादान,
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Kamada Ekadashi 2022: आज 12 अप्रैल 2022 को हिंदू नववर्ष के उपरांत आने वाली ये पहली एकादशी है। ये कामनाओं को पूर्ण करने वाली और प्रेत योनि से मुक्ति प्रदान करती है। तभी तो इसे कामदा एकादशी कहा जाता है। शास्त्र कहते हैं, जो पुण्य कन्यादान, स्वर्ण दान अथवा वर्षों तपस्या के उपरांत मिलता है, उससे अधिक पुण्य कामदा एकादशी व्रत से प्राप्त किया जा सकता है। मान्यता है जो व्यक्ति इस कथा को पढ़ता अथवा सुनता है वह अक्षय पुण्यों का भागी बनता है।
Kamada Ekadashi vrat katha व्रत की कथा
प्राचीन काल में रत्नपुर नामक नगर में पुण्डरीक नाम के राजा राज्य करते थे। जो बड़े ऐश्वर्यशाली थे। उनकी सेवा में गन्धर्व, किन्नर और अप्सराएं सदा ही तत्पर रहती थी। उसी राज्य में ललिता नामक अप्सरा अपने पति ललित गन्धर्व के साथ सदा प्रसन्न रहती थी। दोनों पति-पत्नी एक दूसरे के प्रति अथाह प्रेम भाव रखते थे। एक बार राजा के महल में संगीत का एक विशाल कार्यक्रम चल रहा था और ललित उसमें गीत गा रहा था परंतु उसका मन गाने में नहीं लग रहा था। जिस कारण कभी स्वर और कभी ताल टूट रहा था। ललित की प्रेरणा उसकी पत्नी ललिता उसे कार्यक्रम में कही भी दिखाई नहीं दे रही थी, जिस कारण उसका ध्यान बार बार उसकी चिंता में भटके जा रहा था।
वहां कर्कोटक नाम का नाग दोनों प्रेमियों के व्यवहार को जानता था, उसने राजा को स्वर ताल के टूटने की बात कहीं और राजा को इस बात में अपना अपमान लगा तथा उसे बड़ा गुस्सा आया। राजा ने ललित को श्राप दे दिया, ‘जिसकी चिंता में तू संगीत को भी भूल रहा है, तू कच्चा मांस खाने वाला राक्षस हो जा।’
अभिश्राप के प्रभाव से ललित राक्षस बन गया। जब ललिता ने पति का वह रूप देखा तो वह रोती और विलाप करती हुई उस राज्य को छोडक़र अपने पति ललित के साथ किसी सघन वन में चली गई। वहां वह विन्धय पर्वत की चोटी पर श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई। वहां ऋषि को उसने अपने पति की सारी बात बताई और राक्षस योनि से मुक्ति पाने का उपाय पूछा। तब ऋषि ने उसे अपने पति के उद्घार के लिए चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी का व्रत करने के लिए कहा।
ललित ने एकादशी व्रत किया तथा अगले दिन यानि द्वादशी को भगवान विष्णु जी का विधिवत पूजन किया। उसने व्रत का पारण करने से पूर्व ब्राह्मणों को दक्षिणा सहित सुन्दर वस्तुएं बड़े प्रेम भावना से भेंट की तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। ललिता ने व्रत का पुण्यफल अपने पति को संकल्प करके दिया, जिसके प्रभाव से ललित पापमुक्त होकर दिव्य देह से युक्त हुआ और दोनों पति-पत्नी खुशी-खुशी पहले की तरह मिलजुल कर प्रेम से अपना शेष जीवन व्यतीत करने लगे और हर मास में आने वाली दोनों एकादशियों का व्रत सच्चे मन से करते हुए अंत में प्रभु के परम धाम को प्राप्त हुए।