महाभारत: वाणी की ये विशेषताएं, समाज में बढाएंगी मान-सम्मान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Nov, 2017 01:29 PM

mahabharata  these attributes of language will enhance the dignity in society

इंसान का व्यवहार, घर-परिवार और समाज में स्थिति कैसी है, ये सब बहुत हद तक उसकी वाणी पर निर्भर करता है। सामने वाले से बात करते समय हम किन शब्दों का प्रयोग और किस लहजे में बात करतें हैं, ये सब ही हमें समाज में मान-सम्मान प्रदान करवाता है।

इंसान का व्यवहार, घर-परिवार और समाज में स्थिति कैसी है, ये सब बहुत हद तक उसकी वाणी पर निर्भर करता है। सामने वाले से बात करते समय हम किन शब्दों का प्रयोग और किस लहजे में बात करतें हैं, ये सब ही हमें समाज में मान-सम्मान प्रदान करवाता है। अगर हम बात करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखें तो सामने वाले के साथ अपनी वाणी के जरिए एक रिश्ता कायम कर सकते हैं और समाज में अपमानित होने से बच सकते हैं। 

 


आईए जानें महाभारत में बताया गया एक श्लोक , जिसमें वाणी के संबंध में खास बातें बताई गई हैं। इनको ध्यान में रखने से हो स्त्री हो या पुरुष, सभी की हर जगह प्रतिष्ठा बढ़ती है। 

 

श्लोक 
अव्याहृतं व्याहृताच्छ्रेय आहू: सत्यं वदेद् व्याहृतं तद् द्वितीयम्।
वदेद् व्याहृतं तत् तृतीयं प्रियं धर्मं वदेद् व्याहृतं तच्चतुर्थम्।।

 


इस श्लोक में वाणी की चार श्रेष्ठ विशेषताएं बताई गई हैं। 

 


बोली की पहली विशेषता- यह है कि हमें हमेशा सच बोलना चाहिए। झूठ बोलना किसी पाप से कम नहीं माना जाता। मान्यता अनुसार महाभारत में युधिष्ठिर हमेशा सच बोलते थे, इसी कारण उनका रथ जमीन से चार अंगुल ऊपर ही चलता था। युद्ध में द्रोणाचार्य को मारने के लिए पांडवों ने षड़यंत्र रचा था। षड़यंत्र के अनुसार भीम ने अश्वथामा नाम के हाथी को मार दिया और जोर-जोर से चिल्लाने यह लगा कि मैंने अश्वथामा को मार दिया। जब इस बात के बारे में द्रोणाचार्य को ज्ञात हुआ तो उन्हें लगा कि उनके पुत्र अश्वथामा को भीम ने मार दिया है।


द्रोणाचार्य जानते थे कि युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलते हैं, इसलिए इस बात की सच्चाई जानने के लिए वे युधिष्ठिर के पास गए। युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य से कहा कि अश्वथामा मारा गया, लेकिन वह हाथी था। जब युधिष्ठिर यह बोला कि ‘लेकिन वह हाथी था’ उसी समय श्रीकृष्ण ने शंख बजा दिया। जिससे द्रोणाचार्य ने केवल यही सुना कि अश्वथामा मारा गया। यह सुनते द्रोणाचार्य रथ से उतर गए और उसी समय धृष्टधुम्य ने उनका वध कर दिया। इस प्रसंग में युधिष्ठिर ने झूठ नहीं बोला लेकिन झूठ में साथ दिया था। इसी कारण उनका रथ जमीन पर आ गया। एक झूठ के कारण युधिष्ठिर की जीवनभर की सच बोलने की तपस्या टूट गई।

इसलिए हमें झूठ बोलने से बचना चाहिए। एक झूठ से अच्छे रिश्ते टूट जाते हैं। झूठ कभी ना कभी सामने आ ही जाता है। हमेशा सच बोलना वाणी की विशेषता मानी जाती है।


 


बोली की दूसरी विशेषता- है कि व्यर्थ बोलने की अपेक्षा चुप रहना श्रेष्ठ होता है। बेकार बातें सुनना कोई पसंद नहीं करता है और जो लोग बेमतलब की बोलतें हैं, उन्हें लोग पसंद नहीं करते हैं। इसीलिए फालतू बातें नहीं करना चाहिए। जितना जरूरी हो, उतना ही बोलना चाहिए।

 

 


बोली की तीसरी विशेषता- वाणी की तीसरी विशेषता है कि हमें हमेशा प्रिय बोलना चाहिए। प्रिय बोलना यानी ऐसी बोली जिससे दूसरों को ठेस न पहुंचे। वाणी में कठोरता होने पर लोग आपको पंसद नहीं करते। इसलिए ऐसे शब्दों का उपयोग करना चाहिए, जिनसे दूसरों को सुख मिले।

 

 

बोली की चौथी विशेषता- वाणी की अंतिम विशेषता यह है कि हमें धर्म सम्मत यानी धर्म के अनुसार जो सही वैसी बातें करनी चाहिए। जो लोग धर्म का ज्ञान दूसरों को देते हैं, वे घर-परिवार और समाज में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करते हैं। इस प्रकार हमें झूठ बोलने से बचना चाहिए, व्यर्थ की बात नहीं करना चाहिए, हमेशा प्रिय बोलना चाहिए और धर्म सम्मत बात करनी चाहिए।
 

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