शास्त्रों कहते हैं मार्ग पर जरा संभल कर चलें, पाप के भागी बनेंगे

Edited By ,Updated: 29 Nov, 2016 11:23 AM

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मार्ग-गमन सिद्धांत * मृदं गां दैवतं विप्रं घृतं मधु चतुष्पथम।

मार्ग-गमन सिद्धांत
* मृदं गां दैवतं विप्रं घृतं मधु चतुष्पथम। प्रदक्षिणानि कुर्वीत प्रज्ञातांश्च वनस्पतीन्।। (मनु स्मृति 4/39)


अर्थात गाय, बैल, देवमंदिर, चौराहा, ब्राह्मण, संन्यासी, राजा, गुरु, अग्रि, मिट्टी का ढेर, घी, मधु, पीपल-वृक्ष, धर्मात्मा मनुष्य, अवस्था तथा विद्या में बड़ा मनुष्य, जल से भरा हुआ घड़ा, दही, सरसों, चिता, देवसंबंधी सरोवर का कुंड- इन सब वस्तुओं को अपने से दाहिने करके जाना चाहिए।


* पूज्य एवं मांगलिक पदार्थों को अपने से दाहिने करके और अपूज्य एवं अमंगलकारी वस्तुओं को अपने से बाएं करके चलना चाहिए। (चरकसंहिता, सूत्र 8/19)


* इस संसार में आठ मंगल हैं- ब्राह्मण, गौ, अग्रि, स्वर्ण, घृत, सूर्य, जल और राजा, इनका सदैव दर्शन, नमस्कार एवं पूजन कर दाहिने करके ही चलना चाहिए। (नारदीय मनुस्मृति 18/5152)


* अग्रि और शिवलिंग, सूर्य और चंद्रमा की प्रतिमा, भगवान शंकर और नंदिकेश्वर वृषभ, ब्राह्मण, घोड़ा और सांड-इन दोनों के बीच से नहीं निकलना चाहिए। दो अग्रि और दो ब्राह्मणों के बीच से नहीं निकलना चाहिए। इनके बीच से निकलने वाला मनुष्य पाप का भागी होता है। (स्कंद पुराण, मा. कौ. 41/142-143)


* रथ (गाड़ी) पर बैठे, 90 वर्ष से अधिक आयु के वृद्ध, रोगी, बोझ उठाए हुए, स्त्री, स्नातक, राजा और दूल्हा- ये यदि सामने से आते हों तो इन्हें मार्ग दे देना चाहिए। (मनुस्मृति 2/138)


* चलते हुए पढऩा और किसी वस्तु को खाना नहीं चाहिए। (पद्मपुराण, स्वर्ग. 55)


* बैलगाड़ी से 5 हाथ, घोड़े से 10 हाथ, हाथी से 100 हाथ और बैल से 10 हाथ की दूरी पर चलना चाहिए। परंतु दुष्ट पुरुष का स्थान ही छोड़ देना चाहिए। (चाणक्य नीति 7/7)


* जूठे मुंह कहीं नहीं जाना चाहिए। (स्कंदपुराण, ब्रह्म, धर्मा. 6/73)


* रास्ते में शिखा खोलकर नहीं चलना चाहिए। (स्कंद, पुराण, ब्राम्ह. धर्मा. 6/67)


* यदि रात में कहीं जाना पड़े तो दंड लेकर, सिर पर पगड़ी बांधकर और किसी सहायक के साथ घर से निकलना चाहिए। (अष्टांगहृदय, सूत्र 2/33)
 

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