Edited By ,Updated: 22 Dec, 2016 03:39 PM
इस संसार को बनाने वाले ब्रह्मा जी ने एक मनुष्य को अपने पास बुलाकर पूछा, ‘‘तुम क्या चाहते हो?’’
इस संसार को बनाने वाले ब्रह्मा जी ने एक मनुष्य को अपने पास बुलाकर पूछा, ‘‘तुम क्या चाहते हो?’’
मनुष्य ने कहा, ‘‘मैं उन्नति चाहता हूं, सुख-शांति चाहता हूं और चाहता हूं कि सब लोग मेरी प्रशंसा करें।’’
ब्रह्मा जी ने मनुष्य को दो थैले देते हुए कहा, ‘‘इन थैलों को लो। इनमें से एक थैले में तुम्हारे पड़ोसी की बुराइयां हैं, उन्हें पीठ पर लाद लो। इसे सदा बंद रखना। न तुम देखना, न दूसरे को दिखाना। दूसरे थैले में तुम्हारे दोष भरे हैं। इसे सामने लटका लो और बार-बार खोल कर देखा करो।’’
मनुष्य ने तुरन्त दोनों थैले उठा लिए पर एक भूल कर बैठा। उसने अपनी बुराइयों का थैला पीठ पर लाद लिया और अपने पड़ोसी की बुराइयों से भरा थैला अपने सामने लटका दिया। उसका मुंह खोलकर वह उसे देखता और दूसरे को भी दिखाता। इससे उसने जो वरदान मांगे थे, वे भी उल्टे हो गए वह अवनति करने लगा। उसे दुख और अशांति मिलने लगी।