Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Jan, 2018 02:01 PM
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार वैष्णवों को वर्ष भर में आठ महाद्वादशियों के व्रत का भी पालन करना चाहिए। उसी के तहत जो वैष्णवाचार्य षटतिला एकादशी की बजाय पक्षवर्धिनी महाद्वादशी के व्रत का पालन 13 जनवरी को करेंगे उनके लिए व्रत का पारण 14 जनवरी को प्रात:
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार वैष्णवों को वर्ष भर में आठ महाद्वादशियों के व्रत का भी पालन करना चाहिए। उसी के तहत जो वैष्णवाचार्य षटतिला एकादशी की बजाय पक्षवर्धिनी महाद्वादशी के व्रत का पालन 13 जनवरी को करेंगे उनके लिए व्रत का पारण 14 जनवरी को प्रात: 9:59 से पहले करना उत्तम कर्म है। शास्त्र कहते हैं षटतिला एकादशी से अधिक पुण्य देने वाला है पक्षवर्धिनी महाद्वादशी व्रत।
भगवान विष्णु के प्रिय भक्तों को सदा ही एकादशी और महाद्वादशी व्रत का पालन सच्चे भाव से करना चाहिए। इस व्रत में बिना मांगे ही भक्त को सभी सुखों की प्राप्ति होती है । वैसे तो प्रतिदिन दीपदान करने का महात्मय है परंतु एकादशी और महाद्वादशी व्रत में दीपदान करने तथा रात्रि संकीर्तन से बड़ा कोई कर्म नहीं है। इन दोनों दिनों में केवल श्री हरि विष्णु का भजन-र्कीतन ही करना चाहिए। इसका फल शास्त्रों में बहुत ऊंचा बताया गया है।
प्रत्येक एकादशी और महाद्वादशी के दिन सुख एवं ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी को शुद्ध घी का नौ बत्तियों वाला दीपक अर्पित कर उनकी आरती करें।
एकादशी और महाद्वादशी के दिन ब्रह्म मुहुर्त में उठकर घर के मुख्य द्वार की दहलीज पर तांबे का सिक्का नए लाल रंग के वस्त्र में बांध कर लगाने से घर में धन, समृद्धि का आगमन होता है।
प्रात: उठकर पीपल, तुलसी एवं सूर्य देव को जल चढ़ा कर सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।
शनिवार को श्याम वर्ण के पशुओं को रोटी खिलाएं, घर का कोना-कोना सुव्यवस्थित रखें और मुख्य द्वार को रंगोली से सजाएं।