कामयाब आइडिया- परमात्मा के नाम का सहारा लेकर सिखाएं सबक

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Mar, 2018 02:40 PM

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रामदास एक सरल-हृदय धार्मिक व्यक्ति था। वह बहुत मेहनती था और उसने कड़े परिश्रम के जरिए अपने खेत को एक खूबसूरत बाग में तबदील कर दिया था, जिसमें तरह-तरह के फलदार वृक्ष लगे थे। एक दिन जब वह अपने बाग में पहुंचा तो देखा कि एक साधुवेशधारी शख्स पेड़ पर...

रामदास एक सरल-हृदय धार्मिक व्यक्ति था। वह बहुत मेहनती था और उसने कड़े परिश्रम के जरिए अपने खेत को एक खूबसूरत बाग में तबदील कर दिया था, जिसमें तरह-तरह के फलदार वृक्ष लगे थे। एक दिन जब वह अपने बाग में पहुंचा तो देखा कि एक साधुवेशधारी शख्स पेड़ पर चढ़कर फल तोड़ कर खा रहा है।


रामदास ने उससे कहा, ‘‘बाबा, आप मेरे बगीचे में कैसे आ गए और इस तरह फल तोड़कर क्यों खा रहे हैं? यदि आपको फल चाहिए ही थे तो मुझसे पूछकर ले लेते।’’ 


यह सुनकर वह शख्स पेड़ की डाल पर बैठे-बैठे ही बोला, ‘‘मुझे किसी से पूछने की जरूरत नहीं बच्चा। यह सारा संसार परमात्मा ने बनाया है। यह बगीचा और इसमें लगे पेड़-पौधे व फल भी उसी के हैं। मैं परमात्मा का सेवक हूं। इस नाते इन फलों पर मेरा भी हक है। मैं जितने चाहूं, उतने फल खाऊं। समझो यह परमात्मा की इच्छा है।’’


रामदास ने कहा, ‘‘परमात्मा का मैं भी सेवक हूं। पर इस तरह गलत काम नहीं करता। आप जो कर रहे हैं, वह चोरी है। आप मेरे फल चुराकर खा रहे हैं।’’ 


यह सुनकर साधुवेशधारी गुस्से में बोला, ‘‘चुप कर अधर्मी, पापी तो तू है जो मुझ पर यूं लांछन लगा रहा है।’’


रामदास समझ गया कि वह साधु के वेश में कोई ढोंगी है। रामदास ने उसे सबक सिखाने की ठान ली। वह फल खाने के बाद जैसे ही पेड़ से नीचे उतरा, रामदास ने एक रस्सी लेकर उसे तने से बांध दिया और फिर एक डंडा उठाकर उसकी पिटाई शुरू कर दी। वह ढोंगी चीखते बोला, ‘‘मुझ निरपराध को इतनी बेदर्दी से पीटते हुए तुझे लज्जा नहीं आती। क्या तुझे परमात्मा का तनिक भी खौफ नहीं?’’ 


रामदास बोला, ‘‘मैं क्यों डरूं? यह बगीचा, यह लाठी और मेरे हाथ सब कुछ परमात्मा की ही तो मिलकीयत है। सही-गलत परमात्मा जाने। समझ लो कि मैं जो कर रहा हूं, वह भी परमात्मा की इच्छा है।’’ 


यह सुनकर उसने रामदास से अपने बर्ताव के लिए क्षमा मांगी और फिर कभी ऐसा न करने का प्रण लिया।


तात्पर्य यह कि कई बार लोग दूसरों की चीजों को हड़पने के लिए परमात्मा का बहाना बनाते हैं। वे नितांत अनैतिक कार्यों को परम नैतिकता से मिलाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं। यदि गलत काम करने के लिए कोई परमात्मा का हवाला देता है तो उसे सबक सिखाने के लिए भी परमात्मा के नाम का सहारा लिया जा सकता है।

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