उपदेश का अमृत प्राप्त करने के लिए पहले मन को करें शुद्ध

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Jan, 2018 11:04 AM

to get nectar of preaching first make the mind pure

एक महात्मा किसी के घर में भिक्षा मांगने गए। घर की देवी ने भिक्षा दी और हाथ जोड़कर बोली, ‘‘महात्मा जी, कोई उपदेश दीजिए।’’ महात्मा ने कहा, ‘‘आज नहीं, कल उपदेश दूंगा।’’ देवी ने कहा, ‘‘तो कल भी यहीं से भिक्षा लीजिए।’’

एक महात्मा किसी के घर में भिक्षा मांगने गए। घर की देवी ने भिक्षा दी और हाथ जोड़कर बोली, ‘‘महात्मा जी, कोई उपदेश दीजिए।’’ महात्मा ने कहा, ‘‘आज नहीं, कल उपदेश दूंगा।’’ देवी ने कहा, ‘‘तो कल भी यहीं से भिक्षा लीजिए।’’


दूसरे दिन जब महात्मा भिक्षा लेने के लिए चलने लगे तो अपने कमण्डल में कुछ गोबर, कुछ कूड़ा और कुछ कंकर भर लिए। फिर कमण्डल लेकर देवी के घर पहुंचे। देवी ने उस दिन बहुत बढिया खीर बनाई थी। 


महात्मा ने आवाज दी, ‘‘ओम् तत् सत्।’’ देवी खीर का कटोरा लेकर बाहर आई। महात्मा ने अपना कमण्डल आगे कर दिया। देवी उसमे खीर डालने लगी तो देखा कि उसमें गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है। रुककर बोली, ‘‘महाराज, यह कमण्डल तो गंदा है।’’


महात्मा ने कहा, ‘‘हां, गंदा तो है। इसमें गोबर है, कूड़ा है, परंतु अब किया क्या जा सकता है, खीर भी इसी में डाल दो।’’ देवी ने कहा, ‘‘नहीं महात्मा! इसमें डालने से खीर तो गंदी हो जाएगी। मुझे यह कमण्डल दीजिए, मैं इसे शुद्ध करके लाती हूं।’’ महाराज बोले, ‘‘अच्छा मां, तब डालेगी खीर, जब कूड़ा-कंकर साफ हो जाए?’’ देवी बोली, ‘‘हां!’’


महात्मा बोले, ‘‘यही मेरा उपदेश है। जब तक मन में चिंताओं का कूड़ा-कर्कट और बुरे संस्कारों का गोबर भरा हो, तब तक उपदेश के अमृत का लाभ नहीं होगा। उपदेश का अमृत प्राप्त करना है तो पहले मन को शुद्ध करना चाहिए। चिंताओं को दूर करना चाहिए। बुरे संस्कारों को नष्ट करना होगा, तभी ईश्वर का नाम वहां चमक सकता है और तभी सुख और आनंद की ज्योति जग सकती है।’’

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