श्राद्ध के इस खास दिन लक्ष्मी को कर सकते हैं घर में कैद आइए जानें, कैसे

Edited By ,Updated: 01 Oct, 2015 04:19 PM

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ज्योतिषशास्त्र के पंचांग खंड अनुसार महालक्ष्मी व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन प्रदोष काल में मनाए जाने का विधान है।

ज्योतिषशास्त्र के पंचांग खंड अनुसार महालक्ष्मी व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन प्रदोष काल में मनाए जाने का विधान है। धर्मशास्त्रों अनुसार इस दिन हाथी पर सवार देवी गजलक्ष्मी के पूजन का विधान है। सन 2015 में महालक्ष्मी व्रत की पूर्णाहुति रविवार दिनांक 04.10.15 के दिन है। शस्त्रानुसार यह पर्व देवी गजलक्ष्मी की कृपा पाने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन किए गए पूजन, उपाय, अनुष्ठान व टोटकों का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। 

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ज्योतिष के मुहूर्त प्रणाली अनुसार दिनांक 04.10.15 को सप्तमी तिथि दोपहर 02 बजकर 38 मिनट तक रहेगी इसलिए इस दिन सूर्यास्त शाम 06 बजकर 04 मिनट पर होगा क्योंकि इस दिन रविवार है अतः शाम 04 बजकर 34 मिनट से शाम 06 बजकर 04 मिनट तक राहुकाल विद्यमान रहेगा। अतः प्रदोष काल में अष्टमी तिथि का श्रेष्ठ महूर्त शाम 6 बजकर 4 मिनट से 6 बजकर 31 मिनट पर रहेगा। इसके बाद रात 8 बजकर 12 मिनट से रात 10 बजकर 7 मिनट तक पूजन हेतु श्रेष्ठ महूर्त है।
 
 
महालक्ष्मी व्रत पौराणिक काल से मनाया जा रहा है। शास्त्रानुसार महाभारत काल में जब महालक्ष्मी पर्व आया। उस समय हस्तिनापुर की महारानी गांधारी ने देवी कुन्ती को छोड़कर नगर की सभी स्त्रियों को पूजन का निमंत्रण दिया। गांधारी के 100 कौरव पुत्रो ने बहुत सी मिट्टी लाकर सुंदर हाथी बनाया व उसे महल के मध्य स्थापित किया। जब सभी स्त्रियां पूजन हेतु गांधारी के महल में जाने लगी। इस पर देवी कुन्ती बड़ी उदास हो गई। इस पर अर्जुन ने कुंती से कहा हे माता! आप लक्ष्मी पूजन की तैयारी करें, मैं आपके लिए जीवित हाथी लाता हूं। अर्जुन अपने पिता इंद्र से स्वर्गलोक जाकर ऐरावत हाथी ले आए। कुन्ती ने सप्रेम पूजन किया। जब गांधारी व कौरवों समेत सभी ने सुना कि कुन्ती के यहां स्वयं एरावत आए हैं तो सभी ने कुंती से क्षमा मांगकर गजलक्ष्मी के ऐरावत का पूजन किया। शास्त्रनुसार इस व्रत पर महालक्ष्मी को 16 पकवानों का भोग लगाया जाता है। सोलह बोल की कथा 16 बार कहे जाने का विधान है व कथा के बाद चावल या गेहूं छोड़े जाते हैं। 
 
सोलह बोल की कथा:"अमोती दमो तीरानी, पोला पर ऊचो सो परपाटन गांव जहां के राजा मगर सेन दमयंती रानी, कहे कहानी। सुनो हो महालक्ष्मी देवी रानी, हम से कहते तुम से सुनते सोलह बोल की कहानी॥"
 
कैसे करें महालक्ष्मी को कैद: प्रात:काल स्नान से पहले हरी दूब (दूर्वा) को अपने पूरे शरीर पर घिसें। स्नान से निवृ्त होकर व्रत का संकल्प करें। पूरा दिन व्रत रखकर संध्या के समय लकड़ी की चौकी पर श्वेत रेशमी कपड़ा बिछाएं। इसके बाद देवी लक्ष्मी के गजलक्ष्मी यंत्र स्थापित करें। इसके बाद एक कलश पर अखंड ज्योति स्थापित करें, तथा यंत्र को पंचामृ्त से स्नान कराकर सोलह प्रकार से पूजन करें। मेवा, मिठाई, सफेद दूध की बर्फी का भोग लगाएं।
 
पूजन सामग्री में चंदन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल रखें। नए पीले सूत के 16-16 की संख्या में 16 बार सागड़े रखें। पीले कलावे में 16 गांठे लगाकर लक्ष्मी जी को अर्पित करें। 
 
इसके बाद महालक्ष्मी पर सोलह सिंघार चढ़ाएं। मीठे रोट का भोग लगाएं। पूजन के समय ध्यान रखें की देवी का मुख उत्तर दिशा में हो व सभी व्रती पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके पूजन करें। चंद्रमा के निकलने पर तारों को अर्घ दें व उत्तरमुखी होकर पति-पत्नी एक–दूसरे का हाथ थाम कर देवी महालक्ष्मी को दीपावली पर अपने घर आने के लिए तीन बार आग्रह करें। इसके बाद देवी पर चढ़ाई 16 वस्तुएं चुनरी, सिंदूर, लिपिस्टिक, रिबन, कंघी, शीशा, बिछिया, नाक की नथ, फल, मिठाई, मेवा, लौंग, इलायची, वस्त्र, रुमाल श्रीफल इत्यादि विप्र पत्नी अर्थात ब्राह्मणी को दान करें। पूजन पश्चात 16 गांठे लगाएं हुए पीले कालवा घर का हर सदस्य ब्राह्मणी द्वारा अपनी कलाई पर बंधवाएं।    
 
मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गजलक्ष्म्यै नमः॥
 
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com
 

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