Edited By ,Updated: 27 Mar, 2015 01:29 AM
कांग्रेस ने राज्यसभा में भ्रष्टाचार प्रतिरोधक बिल 1988 में सुधार का एक बिल 2013 में रखा है, जिसे भ्रष्टाचार प्रतिरोधक (संशोधन) बिल 2013 नाम दिया गया।
(बी.जे. अग्रवाल): कांग्रेस ने राज्यसभा में भ्रष्टाचार प्रतिरोधक बिल 1988 में सुधार का एक बिल 2013 में रखा है, जिसे भ्रष्टाचार प्रतिरोधक (संशोधन) बिल 2013 नाम दिया गया। पास हो जाता तो शायद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी मनमोहन सिंह की सरकार के लिए यह बिल रामबाण का काम करता। इस प्रस्तावित सुधार का असर रिश्वत लेने वाले को मुक्ति दिलाता है, वहीं देने वाले को सजा।
वित्त मंत्री अरुण जेतली ने 12 नवम्बर 2014 को कैबिनेट की मीटिंग के अनौपचारिक फैसले से कांग्रेस (आई.) सरकार द्वारा प्रस्तावित (भ्रष्टाचार प्रतिरोधक संशोधन) बिल 2013 विधि आयोग की राय जानने के लिए भेजा। प्रस्ताव विधि आयोग को 8 जनवरी 2015 को भेजा गया जिसमें फरवरी 2015 के अंत तक रिपोर्ट देने को कहा गया। समय की कमी के बावजूद विधि आयोग ने यूनाइटेड नेशन कन्वैंशन अगेंस्ट करप्शन व अन्य संबद्ध कायदे तथा भारत व इंगलैंड में इस बाबत हुए फैसलों के आधार पर रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया। 12 फरवरी 2015 के पत्र के साथ यह रिपोर्ट विधि आयोग ने विधि व न्याय मंत्री को दे दी।
बिल के अनुसार गलत, अनुचित व गैर कानूनी काम के लिए रिश्वत किसी भी रूप में नहीं ली जा सकती। जिसका अप्रत्यक्ष अर्थ होगा कि सही काम के लिए रिश्वत ली जा सकती है। लॉ कमीशन के सुझाव के अनुसार भारत में केवल गलत तरीके से फायदे देने के लिए ही रिश्वत नहीं ली जाती, बल्कि वाजिब काम के लिए भी लोग घूस लेते हैं।
सच कहा जाए तो रिश्वत को भी कानूनी रूप से जायज ठहराने का काम प्रस्तावित सुधार कर सकता है। सुझाए गए सुधार के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो आर्थिक लाभ देने का वायदा करता है या देने का लालच देता है, ताकि सरकारी कर्मचारी गलत कार्य करे तो उस व्यक्ति को कम से कम 3 वर्ष व अधिकतम 7 साल तक सजा हो सकती है।
यदि कोई व्यावसायिक संगठन ऐसा करेगा तो उसे जुर्माना होगा। इन प्रावधानों के आने के बादरिश्वत लेना शायद ही अपराध रहेगा और कोई भी सरकारी कर्मचारी यह कहकर पीछा छुड़ा लेगा कि उसने कोई गैर-कानूनी या अनुचित काम नहीं किया है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेशों में जिस किसी सरकारी कर्मचारी के यहां लोकायुक्त के कहने पर या भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग की सक्रियता से छापे पड़े, सभी जगह करोड़ों की माया मिली भले ही वह चपरासी, क्लर्क या और किसी अन्य पद पर ही क्यों न रहा हो? ये सभी प्रदेश भाजपा शासित हैं, परन्तु अन्य प्रदेशों की स्थिति भिन्न होगी, ऐसा लगता नहीं। इस प्रकार की बातों से राज्य व केन्द्र सरकार को जनता की नजर में शर्मिन्दगी झेलनी पड़ती है। इस शर्मिन्दगी से बचने का केन्द्र व राज्य सरकारों के पास इससे अच्छा उपाय क्या होगा कि भ्रष्टाचार को ही कानूनी मान्यता दे दी जाए।
चपरासी फाइल एक टेबल से दूसरे टेबल पर रखेगा नहीं क्योंकि फाइल आगे रखना ही तो उसका काम है। रखेगा तो सही काम है अत: मेहनताना मिलना ही चाहिए। इसे भले ही वर्तमान कानून के अनुसार रिश्वत कहा जाए। दफ्तर में बाबू का काम है कि किसी भी प्रस्ताव, अर्जी आदि पर टिप्पणी लिखे। टिप्पणी क्या लिखी जाए यह उसका अधिकार क्षेत्र है। उसकी लिखी गई टिप्पणी से कोमा, मात्रा भी हटाने का साहस बड़े-बड़े अधिकारियों में नहीं रहता। एकमात्र उपाय है बाबू को कहकर उसकी टिप्पणी या नोट को बदलवाना। जब योग्य बाबू सुधार कर नोट लिखेगा तो वह कैसे गलत होसकता है। अत: मेहनताना लेने का वह हकदार है या नहीं? वैसे भी गलती तो सुधारी जा सकती है न?
वैसे भी सरकार को वस्तुओं की पूर्ति करने वाले ठेकेदारों, सरकारी कार्यों से जुड़े लोगों का अनुभव क्या है? सर्वोच्च स्थान से निचले स्तर तक सबको खुश रखना पड़ता है तभी गाड़ी आगे बढ़ती है। अब यदि भ्रष्टाचार को कानूनी मान्यता मिल जाए तो कालांतर में हर स्तर पर प्रतिशत भी तय हो जाएगा और सभी को मालूम रहेगा कि किसको क्या देना है और क्या मिला होगा। आयकर विभाग को आमदनी का प्रमाण तय करने में सुविधा होगी। जिससे कर चोरी पर कुछ हद तक रोक लग सकती है।
किसानों के कृषि संबंधी दस्तावेजों की दर तय हो जाएगी तो पटवारी गांव में छाती ठोककर कह सकेगा कि उसने कोई गलत पैसा नहीं लिया है, उसने कानून में जो प्रावधान है उसके अनुसार सही काम करके ही मेहनताना लिया है। किसान की जमीन अधिग्रहण के मुआवजे का भुगतान देने के लिए अनेक कागज मांगे जा सकते हैं और उनकी पूर्ति के बगैर पैसा नहीं दिया जा सकता, ऐसा कहा जा सकता है। इसके बावजूद भी कायदे से रास्ता निकाल कर बगैर कागज लिए भुगतान किया जाए तो मेहनताना मांगना गलत नहीं कहा जा सकेगा!
इस प्रकार सभी कार्यों को कानूनी शक्ल दी जा सकती है। कौन-सा कार्य सही है, कौन सा गलत, इसका निर्णय कौन करेगा? रिश्वत लेने वाला तो खुद के कार्य को सही ही कहेगा। अत: उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। अच्छा हो वर्तमान सरकार इस मुगालते से बाहर निकले कि स्पष्ट बहुमत के बल पर कुछ भी किया जा सकता है। अच्छा हो इस ओर कोई भी पहल से मोदी सरकार बचे और कांग्रेस द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत बिल वापस ले ले और लॉ कमीशन के प्रस्तावित सुझावों को भी उसी के साथ समाप्त कर दे और 1988 के मूल कानून को वैसा ही रहने दे।