बड़े परिवारों वाले ‘घुसपैठिए’ कौन हैं

Edited By ,Updated: 10 May, 2024 05:08 AM

who are the infiltrators with large families

राजस्थान में एक चुनावी सभा को संबोधित करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूल गए कि वह प्रधानमंत्री हैं और यह भी भूल गए कि उन्हें चुनाव आयोग द्वारा बनाई गई आदर्श आचार संहिता (एम.सी.सी.) का पालन करना है। उनके अंतरतम विचारों ने उनकी जीभ पर कब्जा कर...

राजस्थान में एक चुनावी सभा को संबोधित करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूल गए कि वह प्रधानमंत्री हैं और यह भी भूल गए कि उन्हें चुनाव आयोग द्वारा बनाई गई आदर्श आचार संहिता (एम.सी.सी.) का पालन करना है। उनके अंतरतम विचारों ने उनकी जीभ पर कब्जा कर लिया। उन्होंने मुसलमानों पर (बिना नाम लिए) घुसपैठिया होने का आरोप लगाया, जो कभी न कभी भारत में चोरी-छिपे घुस आए थे। उन्होंने उन पर कई बच्चे पैदा करने का भी आरोप लगाया। किस बात ने उन्हें विचलित कर दिया? मेरा अनुमान है कि उन्हें यह अहसास हो गया है कि उनकी अपनी लोकप्रियता, जो प्रतिशत के हिसाब से राहुल गांधी की तुलना में दोगुनी से भी अधिक थी, कम हो गई है और राहुल की लोकप्रियता बढ़ी है। यह ज्ञान उन्हें चिड़चिड़ा और परेशान बना रहा है। 

अपने अंतर्निहित पूर्वाग्रहों पर सम्मानजनक नियंत्रण बनाए रखने की बजाय उन्होंने गहरे संकट और क्रोध के क्षण में कहा कि गांधी परिवार की कांग्रेस पार्टी अमीरों की पत्नियों के सोने के आभूषणों को छीनने और उन्हें उन लोगों को ‘बांटने’ की योजना बना रही है, जो घुसपैठिए हैं और कई बच्चे पैदा करते हैं! इस गलती को महसूस करते हुए अगले दिन उनकी प्रचार मशीन द्वारा उनके भाषण के आधिकारिक संस्करण में घुसपैठियों और बड़े परिवारों का संदर्भ छोड़ दिया गया। 

अतीत का चुनाव आयोग, जिसने न्याय और निष्पक्षता के साथ भारतीय चुनाव कराने के लिए इतनी मजबूत प्रतिष्ठा बनाई थी, अगर एम.सी.सी. के ऐसे चरम उल्लंघन होते तो तुरंत हस्तक्षेप करता, यदि उनके संज्ञान में लाया जाता। यह शर्म की बात है कि आज के ई.सी.आई. ने नरेंद्र मोदी के मामले में अधिक तेजी और निर्णायक कार्रवाई करना उचित नहीं समझा। कमजोरी के इस संकेत का फायदा उन लोगों द्वारा उठाया जाएगा, जो यह मानते हैं कि शासन की सभी संस्थाएं उस संविधान को दरकिनार करके सत्तारूढ़ व्यवस्था के प्रमुख के एकमात्र अधिकार को बनाए रखने के लिए एक अलिखित दायित्व के तहत हैं, जिसने चुनाव आयोग की स्वतंत्रता की गारंटी  दी और भय या पक्षपात के बिना कार्य करना अपेक्षा की है।

हम मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ मोदी द्वारा लगाए गए घुसपैठिए होने के पहले आरोप का यथासंभव विश्लेषण करें। हमारे जैसे विशाल देश में ऐसे लोग बहुत कम, नगण्य संख्या में होंगे, जो सीमा पार कर आए हैं। सैन्यीकृत पश्चिमी सीमा पर संख्या कम है। वे मुस्लिम बहुल जम्मू-कश्मीर में उत्पात मचाने के लिए घुस आते हैं। भारत इस समस्या पर ध्यान दे रहा है। इन विशेष रूप से ‘अवांछित मेहमानों’ को सोने के आभूषणों में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे हमारे सुरक्षा बलों को चौबीसों घंटे सतर्क रखने के लिए आए हैं। हमारी पूर्वी सीमाओं पर घुसपैठिए एक जीवंत समस्या है। यह उस प्रकार की आर्थिक समस्या है, जिसका सामना यू.एस., कनाडा और यू.के. को करना पड़ता था जब पंजाब या यहां तक कि गुजरात से हमारे लड़के हरे-भरे चरागाहों की तलाश में अधिक समृद्ध पश्चिमी देशों में अवैध रूप से घुसने की कोशिश करते थे। 

बंगलादेशीयों का पश्चिम बंगाल या असम में घुसना एक बड़ी समस्या थी, जो पिछले एक या दो दशकों में कम हो गई है क्योंकि कपड़ा निर्माण और निर्यात के कारण बंगलादेश की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है। पाकिस्तानी प्रभुत्व से बंगलादेश की मुक्ति से पहले ही बंगलादेशी, ङ्क्षहदू और मुस्लिम दोनों, असम में आ गए थे। उस आमद ने असम में एक बड़ी आर्थिक और सामाजिक समस्या पैदा कर दी, जिसके कारण उस राज्य में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का निर्माण हुआ। वह मामला अभी तक सुलझ नहीं सका है क्योंकि उसके बाद हुई गिनती में मुसलमानों से ज्यादा हिंदू घुसपैठिए घोषित किए गए थे। हिंदू घुसपैठियों का निष्कासन हिंदुत्व विचारधारा के खिलाफ गया और सी.ए.ए. के निर्माण का कारण बना। 

यदि मोदी सभी मुसलमानों का जिक्र कर रहे हैं, जैसा कि वे सुझाव दे रहे हैं, तो उनकी हताशा का कोई कानूनी या नैतिक आधार नहीं है। भारत पर आक्रमण करने वाले मुगलों और अफगानों ने मिश्रित वंशज पीछे छोड़ दिए लेकिन अलैग्जैंडर भी ऐसा ही था, जिसकी मैसेडोनियन सेना फारसियों पर विजय प्राप्त करने के बाद सिंधु के तट तक पहुंची। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश हो, जो कह सके कि वह ‘घुसपैठियों’ से मुक्त है। इतिहास दर्ज होने के समय से ही सभी सभ्यताओं ने एलियंस की गतिविधियों का अनुभव किया है। भारत में आर्यों ने द्रविड़ों और मूल जनजातियों का अनुसरण किया, जिन्हें हम आदिवासी कहते हैं। 

हमारे देश के उत्तर-पूर्व में रहने वाली मंगोलॉयड जातियां इस परिदृश्य में एक और आयाम जोड़ती हैं। आर्यों की बात करें तो एडोल्फ हिटलर ने यहूदियों और जिप्सियों से छुटकारा पा लिया क्योंकि वह आर्य जाति की शुद्धता सुनिश्चित करना चाहता था! अयातुल्ला के देश का कार्यभार संभालने से पहले ईरान के शाह द्वारा ग्रहण की गई उपाधियों में से एक ‘आर्यमेहर’ थी। (कृपया ध्यान दें कि आर्यों को अपमानित करने का मेरा कोई इरादा नहीं है क्योंकि मेरे अपने पूर्वज उसी वंश के थे, जो हजारों साल पहले ऋषि परशुराम के साथ गोवा आए थे)। 

मोदी के अपने राज्य गुजरात में राजपूत वंश के मुसलमानों का एक समुदाय है, जिसे ‘मुस्लिमीन घेरासिया’ कहा जाता है, जो मुगल शासनकाल के दौरान इस्लाम में परिवर्तित हो गया था। परिवार का सबसे बड़ा बेटा मुस्लिम नाम रखता है लेकिन अन्य बेटे और बेटियां हिंदू नाम रखना जारी रखते हैं। पुराने बम्बई प्रांत में एक आई.ए.एस. अधिकारी फतेह सिंह राणा थे, जो एक समय राज्य के गृह सचिव थे, जो एक मुस्लिम घरेसिया थे। मैं मोदी जी पर यह प्रभाव डालने की कोशिश कर रहा हूं कि सभी मुसलमान उस अर्थ में घुसपैठिए नहीं हैं, जैसा वह उनका वर्णन कर रहे हैं। जिनके पास मुगल, अफगान या फारसी रक्त है, वे आर्यों की तरह भारत का अभिन्न अंग बन गए हैं, जो हजारों साल पहले यहां बस गए थे। 

मुसलमानों पर दूसरा आरोप यह है कि उनके असंख्य बच्चे हैं। मुस्लिम और हिंदू दोनों, गरीबी में डूबे, कम पढ़े-लिखे परिवारों में यह एक आम लक्षण है। जहां महिलाएं शिक्षित हैं, या केवल साक्षर हैं और परिवार की आॢथक स्थिति आरामदायक है, वहां पुनरुत्पादन गतिविधियों को नियंत्रण में रखा जाता है क्योंकि ऐसे परिवारों को जल्द ही अहसास हो जाता है कि बड़े परिवार आर्थिक प्रगति में बाधा हैं। केरल में, जहां मुस्लिम और पिछड़े वर्ग की सभी महिलाएं शिक्षित हैं और उनके पुरुष खाड़ी देशों में कार्यरत हैं, उनके परिवारों का आकार उनके हिंदू या ईसाई भाइयों से अलग नहीं है। धर्म का परिवार के आकार से कोई लेना-देना नहीं है। मुझे यकीन है कि हमारे प्रधानमंत्री इस तथ्य को जानते हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से चुनावी विचारों या सीधे तौर पर पूर्वाग्रह के कारण यह आरोप लगाया है। 

यहूदी और ईसाई धर्म की तरह, इस्लाम एक इब्राहीम धर्म है। बाइबल में भी कहा गया है, ‘बाहर जाओ और गुणा करो’। तब यही आवश्यकता थी। उपदेश अब प्रासंगिक नहीं है। यहां तक कि पोप ने भी हाल ही में टिप्पणी की थी कि किसी से भी ‘खरगोशों की तरह’ प्रजनन की उम्मीद नहीं की जाती। चूंकि अधिकांश ईसाई महिलाएं साक्षर हैं और चूंकि अधिकांश ईसाई पुरुष लाभकारी रूप से कार्यरत हैं, इसलिए बहुत अधिक बच्चे पैदा करने का प्रश्न लंबे समय से त्याग दिया गया है। जैसे ही शिक्षा का प्रसार होगा, विशेषकर महिलाओं में और आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, इस्लाम अपनी पकड़ बना लेगा। यदि ई.सी.आई. मोदी जैसे एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई करने से डरता है तो उसे कम से कम उनकी असंयमित टिप्पणियों के लिए उन्हें भी फटकार लगानी चाहिए। वह कम से कम इतना तो कर ही सकता है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)    

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