खुश व तनावमुक्त शिक्षक के हाथों में ही विद्यार्थी का भविष्य

Edited By ,Updated: 10 May, 2024 05:44 AM

the future of the student is in the hands of a happy and stress free teacher

छात्रों के जीवन को बेहतरीन बनाने का कार्य शिक्षक के सिवाय कोई और नहीं कर सकता, परन्तु आज शिक्षक खुद परेशान है। जब शिक्षक को ऐसा लगता है कि समाज में या शिक्षण संस्थानों में उनके काम को महत्व नहीं दिया जा रहा या उसकी सराहना नहीं की जा रही, तो वह...

छात्रों के जीवन को बेहतरीन बनाने का कार्य शिक्षक के सिवाय कोई और नहीं कर सकता, परन्तु आज शिक्षक खुद परेशान है। जब शिक्षक को ऐसा लगता है कि समाज में या शिक्षण संस्थानों में उनके काम को महत्व नहीं दिया जा रहा या उसकी सराहना नहीं की जा रही, तो वह हतोत्साहित और तनाव से घिर जाता है। शिक्षक सुखी हो, तो पढ़ाई का स्तर बहुत अधिक सुधर सकता है। अगर शिक्षक का अधिक समय तनाव, आपसी मतभेदों और इधर-उधर की बातों में व्यर्थ होता है, तो इसका सबसे अधिक असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ेगा। 

अंग्रेजी का एक शब्द है ‘बर्नआऊट’। इसका अर्थ है बहुत अधिक काम के कारण अवसाद, चिड़चिड़ापन और हमेशा थकान का अनुभव होना। जैसे किसी वाहन में ईंधन खत्म हो जाए, और वह रुक जाए, ऐसी ही हालत बहुत अधिक काम की वजह से किसी इंसान की हो जाए, तो उसे ‘बर्नआऊट’ का शिकार कहा जा सकता है। गौरतलब है कि देश में शिक्षण के पेशे में भी ‘बर्नआऊट’ की गंभीर समस्या होने लग गई है, पर इस पर शायद ही कोई गंभीरता से ध्यान दे रहा हो। शिक्षक तनाव महसूस करते हैं, उन्हें शारीरिक और मानसिक थकान का अनुभव होता है, तो वे अक्सर अपने कामकाज को लेकर उदासीन हो जाते हैं। नौकरी में आनंद नहीं बचता, मगर नौकरी करना मजबूरी भी है। इसका सबसे बुरा असर पड़ता है बच्चों पर, जो स्कूल या कालेज में पढ़ रहे होते हैं। 

स्कूलों में शिक्षकों की संख्या अक्सर आवश्यकता से कम होती है। जब कुछ शिक्षक गैरहाजिर हों, तो समस्या और बढ़ जाती है। बाकी शिक्षकों को अनुपस्थित शिक्षकों की कक्षाएं लेनी पड़ती हैं, जिसका अर्थ है अतिरिक्त जिम्मेदारी और दोहरा तनाव। अक्सर स्कूलों में शिक्षकों को प्रशासनिक काम भी सौंप दिए जाते हैं। जब शिक्षकों को पर्याप्त वेतन नहीं मिलता है या पर्याप्त लाभ नहीं मिलता, तो यह उन्हें बहुत थका हुआ और निराश कर सकता है। यह शिक्षण के लिए उनकी ऊर्जा और प्रेरणा को छीन लेता है। ऐसी भी व्यवस्था हो कि काम के बाद शिक्षक पूरी तरह से अपने व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन पर ध्यान दे सकें। 

अगर शिक्षकों पर प्रशासनिक काम का बोझ लाद दिया जाता है, तो यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्या वे इस काम के लिए इच्छुक हैं? ऐसी हालत में उन्हें इसके आर्थिक फायदे मिलने चाहिएं या फिर अतिरिक्त काम के बदले में अवकाश दिया जाए। पेशेवर विकास के लिए शिक्षकों के पास पर्याप्त अवसर होने चाहिएं। इससे उनका हुनर बढ़ेगा और वे शिक्षण के क्षेत्र में हो रहे नए प्रयोगों से परिचित होंगे। शिक्षकों के ऐसे समूह होने चाहिएं, जिनमें वे एक-दूसरे की सहायता कर सकें। इससे उनका दबाव काफी हद तक घटेगा। आपसी सहयोग की संस्कृति स्कूल को हर क्षेत्र में मदद करेगी। 

स्कूल की बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान देना जरूरी है। शहरों में कई स्कूल बहुमंजिला होते हैं। ऐसे में शिक्षक को बार-बार ऊपर-नीचे जाना पड़ सकता है। अधिक उम्र के शिक्षकों को ज्यादा कक्षाएं निचली मंजिल पर ही मिलें, समय सारिणी बनाने वाले को इसका ख्याल रखना चाहिए। शिक्षक सुखी हो, तो पढ़ाई का स्तर बहुत अधिक सुधर सकता है। एक सुखी, हंसमुख शिक्षक अपने विषय में भी पारंगत होता है और बच्चे उसके विषय को पसंद भी करते हैं क्योंकि बच्चे विषय को शिक्षक के व्यक्तित्व के साथ जोड़ कर देखते हैं। 

सकारात्मक स्कूली संस्कृति छात्र और शिक्षक दोनों के लिए कितनी लाभकारी होगी, यह आसानी से समझा जा सकता है। शिक्षकों के लिए जरूरी है कि उनके रोजमर्रा के जीवन में ऐसा समय भी हो जब उन्हें स्कूल, छात्रों और काम के बारे में बिल्कुल सोचना न पड़े। यह जिम्मेदारी खुद उनकी है कि ऐसा समय वे खुद की और परिवार की देखभाल में बिताएं क्योंकि परिवार के सदस्यों के बीच समय बिताने से काम के तनाव को कम किया जा सकता है। सही संगी-साथियों और बेहतर माहौल तैयार करके भी इससे बचा जा सकता है।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा 
 

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