अपने हित के लिए कांग्रेस ने दिया दल-बदल को प्रोत्साहन

Edited By ,Updated: 10 May, 2024 05:20 AM

congress encouraged defection for its own interest

कांग्रेस ने अपने चौथे चुनाव में एक ऐसी नीति बनाई कि अन्य दलों के सदस्य धड़ाधड़ कांग्रेस में आएं। तब कांग्रेस का सितारा बुलंदी पर था। जो नीति कांग्रेस ने अपने हैदराबाद अधिवेशन में अपनाई, उससे ‘दल-बदल’ सुगमता से हो सकता था। कांग्रेस ने संसद सदस्यों और...

कांग्रेस ने अपने चौथे चुनाव में एक ऐसी नीति बनाई कि अन्य दलों के सदस्य धड़ाधड़ कांग्रेस में आएं। तब कांग्रेस का सितारा बुलंदी पर था। जो नीति कांग्रेस ने अपने हैदराबाद अधिवेशन में अपनाई, उससे ‘दल-बदल’ सुगमता से हो सकता था। कांग्रेस ने संसद सदस्यों और विधायकों को अपना मातृदल छोड़ कांग्रेस में शामिल होने का खुल्लमखुल्ला निमंत्रण दिया। शामिल होने वाले नेताओं को कई प्रकार के प्रलोभन दिए। तब यह नीति कांग्रेस को सूट करती थी। 1967 तक तो कांग्रेस का भारत पर एकछत्र राज रहा। परिस्थिति तो तब बदली जब देश में संयुक्त सरकारों का प्रचलन शुरू हुआ। 2014 तक तो कांग्रेस ‘दल-बदल’ को प्रोत्साहन देती रही, फिर यही पांसा कांग्रेस के उलट पडऩे लगा। 2014 के बाद ऐसा प्रतीत होने लगा कि कोई भी नेता कांग्रेस में रहने को तैयार ही नहीं। भगदड़ मच गई कांग्रेस में, कि कौन पहले पहुंच कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थामता है। इस दल-बदल ने कांग्रेस को खोखला कर दिया। 

लोकतंत्र में  ‘दल बदल’ एक ऐसा धब्बा है, जिसे आम जनता भी घृणा की दृष्टि से देखती है। ‘दल बदलू’ समझ ही नहीं पा रहे कि उनकी मातृ पार्टी ने उन्हें मान-सम्मान और प्रसिद्धि दी। ‘दल बदलू’ यह भी जान लें कि लोकतंत्र में कुछ भी स्थायी नहीं। कल कांग्रेस की तूती बोलती थी, आज हर कहीं ‘मोदी-मोदी’ हो रहा है। पद और लालच की चाह में आप इतने नीचे स्तर पर आ गए कि अपनी ही मातृ पार्टी को गाली देने लगे और शरण देने वाली पार्टी के इतने मुरीद हो गए कि अच्छे-बुरे की पहचान भी आप में नहीं रही। ‘दल बदलुओं’ ने लोकतंत्र और संविधान को शॄमदा कर दिया है। कांग्रेस इस ‘दल बदल’ की जननी है। हंसी आती है जब कोई ‘दल बदलू’ यह कहता है कि वह देश हित में अपनी मातृ पार्टी को छोड़ रहा है। शरण देने वाली पार्टी पर मुझे नाज है। वह देश भक्त पार्टी है। ‘दल बदलुओं’ को न देश, न संविधान और न ही लोकतंत्र की शर्म है। उन्हें पद चाहिए, इधर न मिले तो उधर सही। ‘दल बदलू’ अपने मतदाताओं से विश्वासघात करते हैं। 

‘दल बदलू’ का अर्थ समझते हैं न आप? इसका अर्थ है निष्ठा परिवर्तन। अपने दल को छोड़ किसी अन्य दल में जाना या अपना नया दल बना लेना, मौलिक सिद्धांतों को तिलांजलि देना। ‘दल बदल’ आधुनिक राजनीतिक में एक खतरनाक प्रवृत्ति है। इससे प्रजातंत्र खतरे में पड़ जाता है, राजनीति में अस्थिरता पैदा हो जाती है। ‘दल बदल’ की प्रवृत्ति 1968 में बहुत जोरों पर थी। मार्च 1967 से दिसम्बर 1970 तक 4000 विधायकों में से 1400 विधायकों ने ‘दल बदल’ किया। 2014 से पहले सारे का सारा ‘दल बदल’ कांग्रेस की ओर हुआ। 

‘दल बदल’ से कई सरकारें बनीं और टूटीं, कई प्रांतों में राष्ट्रपति राज लागू हुआ। 1972 में उड़ीसा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक ने उत्कल कांग्रेस की स्थापना की। नंदनी सत्पथी के मंत्रिमंडल के कई मंत्रियों को उकसाया और दल बदल के सहारे उनकी सरकार को गिराया। फरवरी 1973 में बिहार के 15 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। मार्च 1973 में मणिपुर के 10 विधायकों ने संयुक्त विधानमंडल से त्यागपत्र दे दिया। जून 1975 में आपातकाल के दौरान भारतीय लोकदल, कांग्रेस (ओ), जनसंघ, समाजवादी पार्टी तथा अन्य क्षेत्रीय दलों के विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। 

2 फरवरी, 1977 को केंद्र में कैबिनेट मंत्री जगजीवन राम ने कांग्रेस छोड़ एक नया दल कांग्रेस फॉर डैमोक्रेसी बना लिया और एच.एन. बहुगुणा, उड़ीसा की पूर्व मुख्यमंत्री नंदनी सत्पथी, केंद्रीय मंत्री के.आर. गणेश, एन.डी. तिवारी, मंडल पांडे ने कांग्रेस छोड़ उनकी पार्टी ज्वाइन कर ली। इसी तरह 3 कांग्रेसी सांसद श्री नत्थी सिंह (राजस्थान), आंध्र प्रदेश के आर. नरसिंह रैड्डी और हनुमंतैया कांग्रेस छोड़ ‘जनता पार्टी में शामिल हो गए। 1979 में एच.एन. बहुगुणा, मधुलिमये, बीजू पटनायक, जार्ज फर्नांडीज, भानू प्रताप सिंह और चौधरी चरण सिंह सहित कुल 84 संसद सदस्यों ने जनता पार्टी छोड़ दी। 

जुलाई 1978 में महाराष्ट्र की पाटिल सरकार को दल बदल के कारण त्यागपत्र देना पड़ा क्योंकि शरद पवार ने अपना समर्थन वापस ले लिया। 22 जनवरी, 1980 को हरियाणा के मुख्यमंत्री भजन लाल 37 विधायकों को साथ लेकर कांग्रेस में शामिल हो गए। 14 फरवरी,1980 को हिमाचल के मुख्यमंत्री शांता कुमार को त्यागपत्र देना पड़ा। 30 दिसम्बर, 1993 को जनता दल (अ) के 9 सांसद कांग्रेस में शामिल हो गए। 29 मार्च, 1996 को केंद्रीय मंत्री राम सिंह कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा सांसद विश्वनाथ शर्मा कांग्रेस में चले गए। 

मानव स्वभाव है कि जो व्यक्ति सत्तारूढ़ होता है और जो अन्य लोगों को पद और प्रलोभन देने की स्थिति में होता है, आम लोग उस व्यक्ति के इर्द-गिर्द मंडराने लगते हैं। अत: आज की राजनीति में जब हर कहीं ‘मोदी-मोदी’ हो रहा है तो अन्य पाॢटयों के नेता सोचते हैं कि हम क्यों यहां टिके रहेें। सब कुछ मोदी के पास है तो हम क्यों न मोदी के पास चलें। दिल्ली में कांग्रेस के प्रधान ही भाजपा में शामिल हो गए। दिल्ली का सारा अकाली दल सरना गु्रप छोड़ भाजपा में जा मिला है। पंजाब में आज ‘आप’ की सरकार है तो अन्य दलों के सभी नेता सत्ता लाभ के लिए उसमें शामिल हो रहे हैं। दल-बदल का यह किस्सा लगातार चलता ही रहेगा।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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