वास्तु के प्रभाव से अछूते नहीं हैं महाराष्ट्र स्थित पांचो ज्योतिर्लिंग

Edited By ,Updated: 05 Aug, 2015 04:11 PM

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भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से 5 ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य में विभिन्न स्थानों पर स्थित हैं। इन ज्योतिर्लिंगों के नाम त्र्यंबकेश्वर, भीमाशंकर, घृष्णेश्वर, परली बैद्यनाथ और औढ़ा नागनाथ है।

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से 5 ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य में विभिन्न स्थानों पर स्थित हैं। इन ज्योतिर्लिंगों के नाम त्र्यंबकेश्वर, भीमाशंकर, घृष्णेश्वर, परली बैद्यनाथ और औढ़ा नागनाथ है। पांचों ज्योतिर्लिंग की भौगोलिक स्थितियां और उनकी बनावट के वास्तु का प्रभाव उन पर किस प्रकार पड़ रहा है, उसका वास्तु विश्लेषण इस प्रकार है -

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग नासिक से 28 किलोमीटर दूर ब्रह्मगिरी पहाड़ी की तलहटी पर स्थित है। इस मन्दिर का परकोटा 131 फीट चौड़ा और 160 फीट लम्बा है। जिसमें 56 फीट ऊंचे काले पत्थर से निर्मित मन्दिर में तीन मण्डप हैं, जहां 4 फीट नीचे गर्भगृह में स्थित तीन शिवलिंग ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस पूर्वमुखी  गर्भगृह के सामने एक छोटे मण्डप में चबूतरे पर नन्दी जी विराजमान हैं। काले पत्थरों से निर्मित यह ज्योर्तिलिंग सुन्दर कारीगरी का एक बेहतरीन नमूना है।

मन्दिर परिसर का मुख्यद्वार उत्तर दिशा में वास्तुनुकूल स्थान पर स्थित है जिस कारण यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। पश्चिम दिशा का द्वार भी वास्तुनुकूल है, किन्तु दक्षिण और पूर्व दिशा के द्वार वास्तुनुकूल स्थान पर स्थापित नहीं है।

मन्दिर परिसर से थोड़ी दूरी पर ही दक्षिण और पश्चिम दोनों दिशा में ब्रह्मगिरी पहाडि़यां हैं। इस वास्तुनुकूलता के कारण यह स्थान प्रसिद्ध है। इस मन्दिर की भौगोलिक स्थिति वास्तुनुकूल है, किन्तु मन्दिर परिसर में कई वास्तुदोष है जो इस प्रकार है -

परिसर के बाहर उत्तर दिशा में ऊंचाई है इसी कारण परिसर के अन्दर 4-5 सीढि़यां उतर कर आना पड़ता है। उत्तर दिशा की यह ऊंचाई मन्दिर की प्रसिद्धि में बाधक है। परिसर का पूर्व आग्नेय पूर्व दिशा के साथ मिलकर बढ़ा हुआ है और पूर्व आग्नेय में ही एक द्वार भी है। परिसर के अन्दर नैऋत्य कोण में एक बड़े आकार का अमृत कुण्ड है और परिसर के बाहर थोड़ी ही दूरी पर दक्षिण दिशा एवं नैऋत्य कोण को घेरता हुआ बड़े आकार का गौमती तालाब है।

उपरोक्त वास्तुदोषों के कारण ही त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में भक्तों की संख्या उपेक्षाकृत कम है। निश्चित ही चढ़ावा भी कम ही चढ़ता होगा, यहां के ट्रस्टियों और पुजारियों में आपस में विवाद भी होते होगें और सबसे ज्यादा दुःख की बात तो यह है कि त्र्यंबकेश्वर के पण्डे-पुजारियों द्वारा कालसर्प योग के नाम पर लोगों को लूटा-खसोटा जाता है। यहां 12 वर्षों में लगने वाला कुम्भ मेला भी लगता है, परन्तु यह कस्बा इतना विकसित नहीं हो पाया है जितना इसे कुम्भ मेले के अनुसार विकसित होना चाहिए था।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग पूना से 100 किलोमीटर सह्याद्री नामक पर्वत स्थित है।  मन्दिर तक जाने का मार्ग जंगल से होकर जाता है। 3250 फीट ऊंचाई पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग का शिवलिंग बहुत मोटा है इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। काले पत्थर से बने मन्दिर का गर्भगृह बहुत कलात्मक है। चारों ओर से पहाड़ों से घिरे इस ज्योतिर्लिंग के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए बहुत-सी सीढि़यां उतरनी पड़ती हैं। मन्दिर के बाहर सभा मण्डप की पूर्व दिशा में एक शनि मन्दिर है जहां पर दीपमालिका भी बनी हुई है।

गर्भगृह तक पहुंचने के लिए उत्तर दिशा में बनी सीढि़यां मन्दिर परिसर में वास्तुनुकूल स्थान पर समाप्त होती है। मन्दिर परिसर की चारदीवारी में पूर्व ईशान में पूर्व के साथ मिलकर बढ़ाव है, जो कि शुभ है। मन्दिर की पश्चिम दिशा स्थित गर्भगृह 4 फीट नीचा है और परिसर की पश्चिम दिशा में एक कुण्ड है जहां हैण्ड पम्प भी लगा हुआ है। पश्चिम दिशा की इन नीचाईयों के कारण भक्तों में इस मन्दिर के प्रति बहुत ज्यादा आस्था है।

मन्दिर की भौगोलिक स्थिति एवं बनावट में वास्तुदोष भी है जो इस प्रकार है -

मन्दिर परिसर के नैऋत्य कोण को छोड़कर चारों ओर पहाड़ हैं। मन्दिर परिसर के ईशान कोण में एक बहुत बड़ा चबूतरा है। परिसर की चारदीवारी में दक्षिण आग्नेय में दक्षिण दिशा के साथ मिलकर बढ़ाव है। इसी के साथ दक्षिण दिशा में भी एक कुण्ड है।

इन्हीं वास्तुदोषों के कारण ही पहाड़ों की गोदी में सुरम्य स्थान पर अद्भूत कारीगरी से निर्मित इस ज्योतिर्लिंग की चमक अन्य ज्योतिर्लिंगों की तुलना में फीकी है, बहुत कम लोग ही यहां दर्शन करने आते हैं इस कारण इस मन्दिर में बहुत चहल-पहल नहीं होती है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर घृष्णेष्वर महादेव का मन्दिर है। कुछ लोग इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं इस मन्दिर के समीप ही स्थित है। शहर से दूर स्थित यह मन्दिर सादगी से परिपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह अन्तिम ज्योतिर्लिंग है। इस 240 फीट 185 फीट मन्दिर मजबूत और सुन्दर है। इसका गर्भगृह 24 खम्भों पर बनाया गया है। इन खम्भो पर अद्भूत नक्काशियां कर दृश्यों और सुन्दर चित्रों को बनाया गया है। गर्भगृह 17 लम्बा और 17 फीट चैड़ा है। भगवान् पूर्वमुखी विराजमान हैं। गर्भगृह के बाहर एक भव्य नन्दी विराजित है।

मन्दिर का मुख्य प्रवेशद्वार पश्चिम दिशा में वास्तुनुकूल स्थान पर स्थित है। मन्दिर परिसर के उत्तर ईशान में कुआं और पूर्व ईशान में बावड़ी है और मन्दिर का गर्भगृह उत्तर दिशा में स्थित होकर 4 फीट नीचा है। शहर से दूर होने के बाद भी मन्दिर की यही वास्तुनुकूलताएं भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।

मन्दिर के बाहर कुछ भौगोलिक वास्तुदोष हैं जैसे - पूर्व दिशा में थोड़ी दूरी पर पहाड़ी पर एलोरा की गुफाएं है तथा उत्तर दिशा में भी पहाड़ी है और परिसर के बाहर सड़क दक्षिण दिशा में नीची है जहां मन्दिर से सटकर बने विश्वशान्ति धाम में जाने का रास्ता है। इन्हीं दो वास्तुदोषों के कारण मन्दिर परिसर के आसपास विकास कार्य नहीं हो पाने के कारण उजाड़-उजाड़ सा दिखाई देता है।

औढ़ा नागनाथ ज्योतिर्लिंग

औंढा नागनाथ ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के हिंगौली जिले में औंढ़ा नामक गांव में स्थित है। सिक्खों के प्रथम गुरु श्री गुरुनानकदेव जी ने भी इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए थे। यह स्थान भक्त नामदेव की जन्मस्थली भी है।

श्री नागनाथ मन्दिर का शिल्प बड़ा अनोखा तथा विस्मयकारी है, मंदिर का निर्माण कार्य महाभारतकालीन माना जाता है। पत्थरों से बना यह विशाल मन्दिर हेमाड़पंथी स्थापत्य कला में निर्मित है तथा करीब 60000 वर्गफुट के क्षेत्र में फैला है। मन्दिर की चारों दीवारें काफी मजबूती से बनाई गई हैं तथा इसके गलियारे भी बहुत विस्तृत हैं। सभामण्डप आठ खम्भों पर आधारित है तथा इसका आकार गोल है।

 मन्दिर में ही अपने अविश्वसनीय सुन्दर नक्काशी के लिए देखने लायक है। पश्चिम दिशा स्थित नन्दी एक ऊंचे प्लेटफार्म पर विराजित है। मन्दिर के दक्षिण-पश्चिम में मन्दिर प्रशासन के कमरे बने हुए है। इस मन्दिर में तीन तल है। मन्दिर के गर्भगृह का तल मन्दिर के बाकी फर्श से 2 फीट नीचा है और गर्भगृह के नीचे लगभग साढ़े चार फीट नीचा एक ओर तल है जहां पर मुख्य ज्योतिर्लिंग स्थापित है जहां जाने का ढाई फीट चौड़ा रास्ता गर्भगृह की दक्षिण दिशा में है।

मन्दिर परिसर के बाहर पूर्व दिशा में तालाब के आकार का बड़ा नागनाथ कुण्ड है। मन्दिर परिसर के बाहर उत्तर दिशा में जहां बाजार है वहां नीचाई है और पास में ही बोरिंग है। मन्दिर को उत्तर दिशा का मार्ग प्रहार है। मन्दिर परिसर के बाहर की भौगोलिक स्थिति और नागनाथ कुण्ड के वास्तुनुकूल स्थान पर होने के साथ-साथ मन्दिर एवं उसका सुन्दर सभामण्डप यहां भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस कारण यहां के बाजार में भी चहल-पहल बनी हुई है, किन्तु मन्दिर परिसर के अन्दर भी कई महत्त्वपूर्ण वास्तुदोष हैं जो इस प्रकार है -

मन्दिर परिसर के ईशान कोण में तीन छोटे-छोटे मन्दिर ऊंचाई पर बने है इस कारण मन्दिर की पूर्व दिशा ऊंची हो गई है। मन्दिर के मध्य पूर्व में छोटा घृणेश्वर मन्दिर भी ऊंचे प्लेटफार्म पर बना है।

मन्दिर परिसर में आग्नेय कोण में बड़ा कुण्ड है जहां शनि मन्दिर भी है। मन्दिर के पूर्व दिशा और ईशान कोण के वास्तुदोषों के कारण यहां भले ही भक्त ज़्यादा आते हो, परन्तु चढ़ावा कम चढ़ता होगा और आग्नेय कोण के दोषों के कारण मन्दिर से जुड़े लोगों में आपसी विवाद भी होने चाहिए।

परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

परली वैजनाथ ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के मराठवाडा क्षेत्र के बीड़ जिले में स्थित है जहां भगवान शिव विराजमान हैं। परली गांव मेरू पर्वत अथवा नागनारायण पहाड़ की एक ढलान पर बसा है। माना जाता है की वैद्यनाथ मंदिर लगभग 2000 वर्ष पुराना है तथा इस मंदिर के निर्माण कार्य को पूरा होने में 18 वर्ष लगे थे, वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार इंदौर की शिवभक्त महारानी देवी अहिल्याबाई होलकर ने अठारहवीं सदी में करवाया था। अहिल्यादेवी को यह तीर्थ स्थान बहुत प्रिय था।

सभामण्डप में गर्भगृह के ठीक सामने, लेकिन थोड़ी दूरी पर एक ही ज़गह पर एक साथ तीन अलग-अलग आकार के पीली आभा लिए पीतल के नन्दी विद्यमान हैं, जहां से ज्योतिर्लिंग के स्पष्ट दर्शन होते हैं। गर्भगृह के प्रवेश द्वार के समीप ही माता पार्वती का मंदिर भी है।

मंदिर के चारों ओर मजबूत दीवारें हैं, मंदिर परिसर के अन्दर विशाल बरामदा तथा सभामण्डप है यह सभामण्डप साग की मजबूत लकडी से निर्मित है तथा यह बिना किसी सहारे के खड़ा है, मंदिर के बहार ऊंचा दीप स्तम्भ है तथा दीपस्तम्भ से ही लगी हुई देवी अहिल्याबाई की नयनाभिराम प्रतिमा है। मन्दिर के महाद्वार के पास एक मीनार है, जिसे प्राची या गवाक्ष कहते हैं। मन्दिर में चैत्र और आश्विन माह में एक विशेष दिन को सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर पड़ती हैं।

मन्दिर में जाने के लिए काफी चौड़ाई लिए कई सारी मजबूत सीढियां हैं जिन्हें घाट कहते हैं। मन्दिर परिसर में ही अन्य ग्यारह ज्योतिर्लिंगों के सुन्दर मन्दिर भी स्थित हैं। मन्दिर में प्रवेश पूर्व की ओर से तथा निकास उत्तर की ओर से है। यह एकमात्र स्थान है जहां नारद जी का मंदिर भी है। ज्योतिर्लिंग मंदिर में शनिदेव तथा आदि शंकराचार्य के मंदिर भी हैं। सभी मण्डप के चारों कोनों पर छोटी-छोटी मंदिरों में शिवलिंग स्थापित किए गए हैं।

मन्दिर परिसर के बाहर दक्षिण और पश्चिम दिशा में नागनारायण पहाड़ की ऊंचाई और उत्तर, पूर्व दिशा में वास्तुनुकूल तीखे ढ़लान के कारण इस ज्योतिर्लिंग में भक्तों की अच्छी खासी चहल-पहल रहती है और यहां के पुजारी भी सौम्य हैं और भक्तों परेशान नहीं करते हैं। इसी वास्तुनुकूलता के कारण वैद्यनाथ मन्दिर में महाराष्ट्र के अन्य ज्योतिर्लिंगों की तुलना में कुछ अधिक चमक जरुर दिखाई देती है, किन्तु मन्दिर परिसर की वास्तुनुकूल भौगोलिक स्थिति को देखते हुए जैसी ख्याति इस ज्योतिर्लिंग की होना चाहिए वैसी ख्याति नहीं है क्योंकि मन्दिर परिसर की बनावट में एक महत्त्वपूर्ण वास्तुदोष है, जो इस प्रकार है -

इस मन्दिर में पूर्व दिशा की ओर एक धर्मशाला बनी हुई है तथा परिसर के बाहर उत्तर वायव्य में कुछ कमरें बने हुए है। ईशान कोण स्थित कार पार्किंग के पास से परिसर की चारदीवार से लगकर एक सड़क ईशान कोण से ढ़लान लेती हुई पूर्व आग्नेय पर मुख्य सड़क से जाकर मिलती है। जिससे मन्दिर परिसर की चारदीवारी का ईशान कोण कट गया है और आग्नेय कोण ढ़लान लेते हुए आगे बढ़ गया है। इसी के साथ मन्दिर की उत्तर एवं पूर्व दिशा दोनों ओर स्थित मुख्य सड़क इस प्रकार बनी है, कि सीढि़यों से उतरने के बाद परिसर के बाहरी भाग का ईशान कोण भी गोल हो गया है। इसी दोष के कारण यह ज्योतिर्लिंग विवादित भी है। कुछ लोग इस मन्दिर की गितनी 12 ज्योतिर्लिंग में करते ही नहीं है। वह झारखण्ड के देवघर में स्थित वैद्यनाथ को ज्योतिर्लिंग मानते हैं, जबकि महाराष्ट्र सरकार द्वारा परली वैद्यनाथ को 12 ज्योतिर्लिंग में ही गिना जाता है।

- वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा

thenebula2001@yahoo.co.in

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