Edited By ,Updated: 03 May, 2016 04:10 PM
संत और बसंत
संत का आना ही बसंत का आना है। बसंत आता है तो प्रकृति मुस्कुराती है। संत आता है तो संस्कृति मुस्कुराती है। संत सोते मनुष्य को जगा देता है। जागे हुए
संत और बसंत
संत का आना ही बसंत का आना है। बसंत आता है तो प्रकृति मुस्कुराती है। संत आता है तो संस्कृति मुस्कुराती है। संत सोते मनुष्य को जगा देता है। जागे हुए को पैरों पर खड़ा कर देता है और खड़े हुए की नसों में खून दौड़ा देता है। सूखे को हरा करना, बसंत का काम है। मुर्दे को खड़ा करना, संत का काम है। फाल्गुन आता है, फूलों का त्यौहार लिए। सावन आता है, मेघों का मल्हार लिए। संत आता है खुशियों का मल्हार लिए। कोई गैर नहीं यह धर्म का मंत्र है। कोई और नहीं यह प्रेम का मंत्र है। कोई वैर नहीं यह संत का मंत्र है।
अपना काम खुद करें
आप अमीर हैं, घर नौकर-चाकर हैं, तब भी आप अपना काम खुद करें। हर रोज एक कमरे में ही सही, झाड़ू खुद लगाएं, अपनी जूठी थाली खुद धोएं। झाड़ू लगाने, थाली धोने में शर्म कैसी? मैं पूछता हूं कि सुबह-सुबह जब हम निवृत्ति के लिए जाते हैं तो हमारी बैठक कौन धोता है? जब हम अपनी बैठक स्वयं धोते हैं तो अपने घर का झाड़ू क्यों नहीं लगा सकते? अपनी जूठी थाली क्यों नहीं धो सकते? बूढ़े मां-बाप की सेवा क्यों नहीं कर सकते?
- मुनि श्री तरुण सागर