Edited By Riya bawa,Updated: 28 Jul, 2020 09:18 AM

मानव जीवन प्रभु की अनुपम भेंट है। सभी मानते हैं, यह एक ऐसा तथ्य है जिसको नकारा नहीं जा सकता। जीवन में सर्वप्राथिकमिकता शरीर का स्वस्थ रहना है। स्वास्थ्य ही अमूल्य धन है | लेकिन प्रायः मनुष्य यह मान लेता है कि यह तो उसका अधिकार ही है जो उसे मिलना...
मानव जीवन प्रभु की अनुपम भेंट है। सभी मानते हैं, यह एक ऐसा तथ्य है जिसको नकारा नहीं जा सकता। जीवन में सर्वप्राथिकमिकता शरीर का स्वस्थ रहना है। स्वास्थ्य ही अमूल्य धन है लेकिन प्रायः मनुष्य यह मान लेता है कि यह तो उसका अधिकार ही है जो उसे मिलना ही था। ईश्वर को इसके लिए धन्यवाद देने एवं कृतज्ञ होने के स्थान पर वह यह कह कर स्वंम को सांत्वना देता है कि यह तो ईश्वर का कर्तव्य ही है जो उसने पूर्ण किया है। चलो एकबारगी यह मान भी लिया जाय लेकिन वरदान के रूप में अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होने के पश्चात उसका अनुरक्षण तो हमें ही करना है। अच्छा स्वास्थ्य मुख्यता इस पर निर्भर करता है कि हम इस जीवन में कितना प्रसन्नचित रहते हैं। प्रसन्नता ही स्वास्थ्य का श्रोत है। कहने में यह तथ्य जितना सरल लगता है अपितु वास्तविक जीवन में उसे कार्यान्वित करना उतना ही कठिन।
यह संसार विधाता की एक विचित्र, अनुपम एवं रहस्यभरी कृति है। मनुष्य बहुत ही भाग्यशाली है कि उसे संसार में यह जन्म एक अभूतपूर्व भेंट के रूप में मिला है और साथ ही वह सब भी प्रकृति की देन के रूप में जो उसे एक प्रसन्न एवं स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है। प्रकृति प्रचुर मात्रा में विभिन्न प्रकार की ऊर्जा का एक श्रोत है जो संसार के समस्त प्राणियों के लिए आवश्यक है। प्रश्न उठता है की इतना सब कुछ भेंट स्वरुप मिलने पर भी समस्या क्या व कहाँ है ? प्रसन्न रहने में सबसे अधिक बाधक है 'समस्याऐं'। मनुष्य सदैव स्वयं को समस्याओं से घेरे रहता है। यह समस्या शब्द आया कहाँ से और क्यों ? थोड़ा गहराई से सोचें तो उत्तर मिलता है की इस शब्द का जन्मदाता स्वयं मनुष्य ही तो है।
प्रभु ने तो कोई समस्या दी ही नहीं। स्वयं की कमियों को छिपाने के लिए या फिर स्वयं में निहित अपार क्षमता को चिंहित अथवा उजागर करके उसका उपयुक्त प्रयोग करने की असमर्थता व स्वयं को प्रकृति के नियमानुसार ढ़ाल पाने की अक्षमता, तीव्र इच्छा, दृढ़ इच्छा शक्ति व आत्मविश्वास की कमी, ईश्वर पर विश्वास की कमी एवं सोच में छाई नकारात्मकता आदि कई ऐसे तत्व हैं जिनको वह ‘समस्या’ शब्द का आवरण ओढ़ा कर समस्या शब्द को समयानुसार स्वयं को सांत्वना देने के लिए विभिन्न रूप से परभाषित करता रहा है। अपितु इसके कि सब दुर्बलताओं एवं त्रुटियों पर विजय प्राप्त करता हुआ प्रसन्न्ता का आलिंगन करे, वह स्वयं को ही छलता रहा है।
अच्छा स्वास्थ्य प्रसन्न्ता पर निर्भर है, जितने अधिक प्रसन्न हम रहते हैं स्वास्थ उतना ही अधिक अच्छा रहता है लेकिन मनुष्य के लिए प्रसन्नता का श्रोत क्या है? प्रसन्न्ता प्रत्यक्ष रूप से जीवन शैली, प्रकृति से मित्रता की गहराई, कार्यक्षेत्र में प्राप्त सन्तुष्टता, उपार्जित धन, पद, जीवन में प्राप्त उपलब्धियां, सफलताएँ एवं प्रसिद्धि आदि तत्वों के साथ सोच में भरी सकारात्मकता एवं मानसिक शांति पर निर्भर करती है। प्रायः मनुष्य जीवन में छोटी छोटी उपलब्ध्ताओं एवं सफलताओं के प्राप्ति की प्रसन्नता की महत्ता को त्याग कर बड़ी सफलताओं के पीछे भागता रहता है। भूल जाता है की सफलता तो सफलता है छोटी - बड़ी का क्या अर्थ है, लेकिन नहीं, जो मिलता है उसका क्या महत्व? प्रसन्न्ता के इन तत्वों का सीधा सम्बन्ध हमारी सोच की सकारात्मकता पर निर्भर करता है। जीवन में घटित प्रत्येक क्रिया को किस प्रकार से लिया जाता है - सोचने के दो पहलू हैं - सकारात्मक एवं नकारात्मक। सोच में सकारात्मकता जितनी अधिक एवं गहरी होगी, उपलब्धियां एवं सफलताओं को प्राप्त करना उतना ही आसान होगा तथा वह प्रसन्नता प्राप्ति की, उसी अनुपात में, बृद्धि का कारण बनेगी।
दूसरी ओर नकारात्मकता समस्या, भय , असफ़लता एवं अप्रसन्नता को जन्म देती है तथा सीधे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। अतः जहाँ स्वास्थ्य की निर्भरता जीवन में प्राप्त प्रसन्न्ता पर है वहीं प्रसन्न्ता सीधी सकारात्मक्ता पर निर्भर है। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह क्या चाहता है एवं चुनता है। निष्कर्ष यह हुआ कि जीवन में अच्छे स्वास्थ्य का सम्बन्ध सीधा सकारात्मकता से है। जहां सकारात्मकता स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती है वहीं नकारात्मकता स्वास्थ्य हानि का श्रोत है। अतः मनुष्य सकारात्मक बने, सकारात्मक सोचे, सकात्मक कार्य शैली अपनाए। अच्छे स्वास्थ्य की यही एकमात्र कुंजी है।
(भगवान दास मोटवानी)