भारतीय साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत-ज्ञानी सोहण सिंह सीतल

Edited By Updated: 25 Dec, 2017 01:17 PM

sohan singh sheetal awarded by the sahitya sahitya academy

मानव जन्म को दुर्लभ कह कर उसकी प्रशंसा तथा सराहना की जाती है। गुरबाणी के निर्णय के अनुसार इस जन्म की दुर्लभता के कारण ही इसकी प्राप्ति के लिए देवी-देवते तथा ऋषि-मुनि भी तरसते है। परन्तु अधिकतर मनुष्य ऐसे भी होते हैं जो इस जन्म...

मानव जन्म को दुर्लभ कह कर उसकी प्रशंसा तथा सराहना की जाती है। गुरबाणी के निर्णय के अनुसार इस जन्म की दुर्लभता के कारण ही इसकी प्राप्ति के लिए देवी-देवते तथा ऋषि-मुनि भी तरसते है। परन्तु अधिकतर मनुष्य ऐसे भी होते हैं जो इस जन्म की कदर न करते हुए इसका भरपूर लाभ नहीं उठाते। अपने परिवारिक तथा सांसारिक उलझनों में उलझ कर वे अपने जीवन के मूल्यवान पलों को व्यर्थ ही गँवा देते हैं। इस प्रकार गँवाए हुए पल दुर्भाग्य के खाते में जमा हो जाते हैं तथा व्यक्ति अपने आप को दोश देता हुआ इस दुनिया से चला जाता है। मानवीय जन्म की पुन: प्राप्ति न होने के कारण ही भक्त कबीर जी जीव को समझते हुए लिखते हैं-

 

कबीर मानस जनमु दुलंभु है होइ न बारै बार।।
जिउ बन फल पाके भुइ गिरहि बहुरि न लागहि डार।।

 

इन पंक्तियों की रोशनी में देखा जाए तो इन्सानी जीवन का उद्देश्य केवल खाने-पीने तथा मौज करने तक ही सीमित नहीं रह जाता बल्कि उसका एक ऊंचा तथा सुच्चा लक्ष्य प्रजा की सेवा करना भी होता है। इस लक्ष्य का समर्थन करते हुए गुरू साहिब अपनी बाण्ी में इस प्रकार फुर्माते है:- आपु

 

गवाइ सेवा करे ता किछु पाए मानु।।
नानक जिस नो लगा तिसु मिलै लगा सो परवानु।।

 

इसी तरह ही अपना आप गंवा (कठोर परिश्रम करके) कर संसार का प्रेम तथा सतिकार हासिल करने वाले पुरूषों में ही शामिल है पंथक ढाडी तथा उच्चकोटि के साहित्यकार ज्ञानी सोहण सिंह सीतल का नाम। यह प्रेम तथा सम्मान किसी व्यक्ति विशेष के जीवन की बहुमूल्य पूंजी होती है जिस को प्राप्त करने के लिए उस व्यक्ति को विशेष प्रयास करना पड़ता है। ज्ञानी सोहण सिंह सीतल को भी सामान्य से विशेष का सफर तय करने के लिए एक लम्बी तथा अनथक घाल कमाई करनी पड़ी है। बहुपर्ती व्यक्तित्व (ढाडी,कवि,प्रचारक,कहानीकार,गीतकार ,नावलकार,नाटककार तथा एक खोजी इतिहासकार) के मालिक ज्ञानी सोहण सिंह सीतल का जन्म 7 अगस्त 1909 ई.को गांव कादीविंड,तहसील कसूर जि़ला लाहौर (पाकिस्तान) में श्री खुशहाल सिंह तथा माता दयाल कौर के गृह में हुआ।

 

औपचारिक शिक्षा हासिल करने के लिए चाहे सीतल के मन में एक तीव्र इच्छा थी परन्तु उस समय संस्थागत शिक्षा (विशेष करके गांवों में) का बहुत अभाव था। इस अभाव के बावजूद भी उन्होंने अपनी पढऩे की इच्छा को सुस्त नहीं पडऩे दिया। कुछ विशेष प्रयत्न करके सीतल ने अपने गांव के साधू/ग्रंथी हरिदास से गुरमुखी वर्णो की पहचान करनी सीख ली। इस पहचान ने उसके साहस ऐसा बढ़ाया कि वह कुछ अधिक आयु (14 वर्ष की) हो जाने के बावजूद भी पड़ौसी गांव ‘वरन’ की पाठशाला में प्रवेश कर गया। पढ़ाई में उसकी दिलचस्पी को देखते हुए पाठशाला के संचालकों द्वारा उसको कुछ कक्षाएं वर्षो की अपेक्षा छिमाहियों में ही पूरी करवा दी।

 

अध्यापकों से मिले विशेष सहयोग से सीतल ने मैट्रिक स्तर की शिक्षा प्रथम दर्जे में पास कर ली। उस समय मैट्रिक में यह दर्जा कि सी विशेष विद्यार्थी को ही प्राप्त हुआ करता था। इस पढ़ाई (आठवीं कक्षा) के दौरान ही ज्ञानी सोहण सिंह सीतल के माता पिता ने उसका विवाह जि़ला फिरोज़पुर के गांव भड़ाणा क निवासी बीबी करतार कौर के साथ करवा दिया । इनके घर दो पुत्रों तथा एक पुत्री ने जन्म लिया। अब पढ़ाई के साथ-साथ सीतल को अपने घर-परिवार की ओर भी विशेष ध्यान देना पढ़ता था। इस ध्यान के विभाजित हो जाने के कारण उनकी पढ़ाई का काम कुछ पीछे पडऩे लगा। इस पिछेतर के कारण वे उच्च शिक्षा का सफऱ सिर्फ़ ज्ञानी तक ही तय कर सका।

 

ज्ञानी सोहण सिंह सीतल को कुछ समय खेतीबाड़ी भी करनी पढ़ी। इस व्यवसाय को करते हुए ही उसके भीतर कुछ अलग करके दिखाने की इच्छा भी प्रबल होने लगी। प्रबल हुई उसकी इस इच्छा ने ही उसको ढाडी कला की ओर मोड़ दिया। इस मोड़ की ओर मुड़ते हुए उसने अपने साथी गुरचरण सिंह,अमरीक सिंह तथा हरनाम सिंह को साथ ले लिया तथा बाबा चिरागदीन से ढड-सारंगी बजाना 3. सीखने लगे। उस्ताद जी से ढाडी-कला की सुक्ष्मता से अच्छी तरह ज्ञात होकर ज्ञानी सोहण सिंह सीतल का ढाडी जत्था दूर-दराज़ दीवानों में अपनी हाजऱी भरने लगा। देश-विदेश में इस ढाडी जत्थे की अच्छी पहचान बनने लगी। ढाडी होने के साथ-साथ ज्ञानी सोहण सिंह सीतल एक नामवर कलमकार/साहित्यकार भी था। 

 

1924 ई. को उसकी पहली कविता ‘अकाली’ अ$खबार में छपी थी। ‘सजरे हंझू’ सीतल का एक प्रसिद्ध काव्य संग्रहि है। क विता के साथ-साथ सीतल ने कुछ कहानियां भी लिखी हैं जिनमें ‘कदरां बदल गईआं’,‘अजे दीवा बल रिहा सी’ तथा ‘जेब कटी गई’ बहुत चर्चित रही हैं। एक उपन्यासकार के तौर पर भी सोहण सिंह सीतल की पंजाबी साहित्य तथा सांस्कृति को महान देन रही है। उसके द्वारा लिखे उपन्यासों की तदाद दो दर्जन के करीब बनती है। पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के पाठक्रम में छात्रों को पढ़ाया गया सीतल का उपन्यास ‘तूतां वाला खूह’ अपनी मिसाल आप है जो देश के विभाजन को करूणामयी ढंग से ब्यान करता है। 

 

‘जुग बदल गया’ उसका एक अन्य मशहूर उपन्यास है,जिसको 1974 ई. में भारतीय साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया था। इन दो उपन्यासों के अतिरिक्त ‘मुल्य दा मास’,‘जंग जां अमन’ तथा ‘ईचोगिल दी नहर तक’ इत्यादि सीतल द्वारा रचित उपन्यास हैं जिन्होंने पंजाबी भाषा तथा साहित्य का गौरव बढ़ाया है। एक खोजी (सिक्ख) इतिहासकार के तौर पर भी ज्ञानी सोहण सिंह सीतल का एक अहम स्थान है। सीतल की ऐतिहासिक लिखतों में ‘सिक्ख राज किवें (कैसे) गया’ एक शाहकार रचना मानी जाती है। ‘सिख इतिहास दे सोमे’ (पांच जिल्दों में) उसका एक और खोज भरपूर कार्य है। एक प्रतिभाशाली ढाडी तथा पंजाबी साहित्य का अमिट हस्ताक्षर ज्ञानी सोहण सिंह सीतल अपनी नौं दशकों की जीवन यात्रा समाप्त करके अन्त 23 सितम्बर 1998 ई. वाले दिन इस फानी संसार को अंतिम अलविदा कह गया।

 

रमेश बग्गा चोहला

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