कांग्रेस और भाजपा के साथ-साथ क्षेत्रीय दल भी अंतर्कलह का शिकार

Edited By Updated: 15 Jun, 2021 03:29 AM

along with congress and bjp regional parties are also a victim of squabble

देश की दोनों मुख्य राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस और भाजपा की भांति ही कुछ क्षेत्रीय पाॢटयों में भी आपसी लड़ाई-झगड़ा और बगावत का सिलसिला ल बे समय से चला आ रहा है। हरियाणा में

देश की दोनों मुख्य राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस और भाजपा की भांति ही कुछ क्षेत्रीय पाॢटयों में भी आपसी लड़ाई-झगड़ा और बगावत का सिलसिला ल बे समय से चला आ रहा है। हरियाणा में ‘इनैलो’ नेता चौ. देवी लाल के समय में उनके पुत्रों में टकराव चरम पर रहा और उनके बाद ओम प्रकाश चौटाला के दोनों पुत्रों अजय सिंह चौटाला और अभय सिंह चौटाला में राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण ‘इनैलो’ बिखर गई तथा ‘इनैलो’ से टूट कर दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में ‘जजपा’ का जन्म हुआ जो इस समय हरियाणा की भाजपा सरकार में भागीदार है। 

पंजाब में ‘शिअद’ में टकराव की स्थिति बनी हुई है। गत 17 मई को राज्यसभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींडसा ने पूर्व मंत्री रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा के साथ मिल कर ‘शिरोमणि अकाली दल (डैमोक्रेटिक)’ व ‘शिरोमणि अकाली दल (टकसाली)’ का विलय करके ‘अकाली दल (संयुक्त)’ का गठन किया है जो अगले वर्ष चुनाव में ‘शिअद’ के विरोध में मैदान में उतरेगा। 

तेलंगाना में मुख्यमंत्री के.सी.आर. राव तथा उनकी पार्टी ‘टी.आर.एस.’ की मुश्किलें बढ़ रही हैं। पिछले महीने ई. राजेंद्र को स्वास्थ्य मंत्री पद से हटाए जाने के कुछ दिन बाद वह पार्टी की सदस्यता और फिर 12 जून को विधायक पद से त्यागपत्र देकर अपने अनेक साथियों के साथ 14 जून को भाजपा में शामिल हो गए।
ई. राजेंद्र राज्य के ‘इटेला मुन्नूर कापू’ स प्रदाय से स बन्ध रखते हैं जिसका राज्य की 119 में से 60 सीटों पर प्रभाव है। राव द्वारा ई. राजेंद्र को मंत्री पद से हटाने के विरुद्ध कई नेता विद्रोह का झंडा उठाने की तैयारी में हैं। 

13 जून को बिहार में ‘लोक जनशक्ति पार्टी’ (लोजपा) में अंतर्कलह और टूटन सामने आई। पार्टी के 6 में से 5 सांसदों पशुपति कुमार पारस (चिराग पासवान के चाचा), चौ. महबूब अली कैसर, वीणा सिंह, चंदन सिंह और पिं्रस राज ने ‘लोजपा’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को पार्टी के सभी पदों से हटा कर पशुपति पारस को अपना नेता चुन लिया। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को लिखे इस आशय के पत्र में इन सांसदों ने उन्हें अलग समूह के रूप में मान्यता देने तथा पशुपति कुमार पारस को सदन में चिराग पासवान के स्थान पर लोजपा का नेता चुनने की मांग की है। 

इस घटनाक्रम से लोजपा में बड़े घमासान की आशंका व्यक्त की जा रही है। अब पार्टी में चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए हैं। पारस के रिश्ते के भाई पिं्रस भी उनसे अलग हो गए हैं। 14 जून को चिराग पासवान सुबह अपने चाचा पशुपति पारस और पिं्रस पारस के दिल्ली स्थित संयुक्त आवास पर उनसे मिलने भी पहुंचे तो काफी देर इंतजार के बाद उनके लिए गेट खोला गया और कार के कोठी में दाखिल होने के बाद भी चिराग उसी में बैठे रहे। पौने 2 घंटे प्रतीक्षा करने के बाद भी पशुपति पारस व प्रिंस में से किसी ने भी चिराग से भेंट नहीं की। जहां चिराग का सैंटीमैंटल कार्ड नाकाम रहा वहीं उनके आने से कुछ ही पहले पारस ने प्रैस कांफ्रैंस कर अपने फैसलों को पार्टी के हित में बताते हुए चिराग से कहीं न जाने और पार्टी में बने रहने की ‘अपील’ की। इसके साथ ही पारस ने नीतीश कुमार की प्रशंसा करते हुए उन्हें एक अच्छा नेता बताया और राजग के साथ गठबंधन की वकालत भी की। 

यहीं पर बस नहीं, तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक में भी असहमति की चिंगारियां फूटने लगी हैं तथा पार्टी नेतृत्व ने अन्नाद्रमुक से निष्कासित शशिकला से स पर्क रखने और पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में 16 कार्यकत्र्ताओं को पार्टी से निकाल दिया है तथा कहा है कि पार्टी पर कब्जा करने की शशिकला की कोशिशों को सफल नहीं होने दिया जाएगा। मु य दलों पर दबाव बनाकर अपने देश और प्रदेश के हितों की रक्षा करने के लिए क्षेत्रीय दलों का मजबूत होना आवश्यक है। 

अत: क्षेत्रीय पार्टियों का आपसी कलह के कारण कमजोर होना किसी भी दृष्टि से उनके हित में नहीं। यदि आपसी कलह और फूट के कारण क्षेत्रीय दल कमजोर होंगे तो एक पार्टी के रूप में इनकी प्रासंगिकता ही समाप्त हो जाएगी। क्षेत्रीय दलों के नेताओं को अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं और स्वार्थों से उठ कर एक संगठन के रूप में एकजुट होकर स्वयं को पेश करना चाहिए ताकि वे मजबूती के साथ प्रदेश के हितों की रक्षा कर सकें।—विजय कुमार 
 

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