संसद में गूंजा 'वंदे मातरम', राजनाथ सिंह बोले- यह सिर्फ एक शब्द नहीं, यह आजादी का प्रतीक है

Edited By Updated: 08 Dec, 2025 05:06 PM

vande mataram is not just a word its a philosophy rajnath singh in parliament

संसद में बोलते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ‘वंदे मातरम’ सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि भावनाओं और राष्ट्रीय दर्शन का प्रतीक है। बंगाल विभाजन आंदोलन के दौरान इसने जनचेतना जगाई और ब्रिटिश प्रतिबंधों के बावजूद यह आज़ादी का मजबूत स्वर बना रहा।...

नई दिल्ली। संसद के भीतर सोमवार को माहौल उस समय देशभक्ति की भावनाओं से भर उठा, जब केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘वंदे मातरम’ पर बोलते हुए इसे भारत की राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता संघर्ष की आत्मा बताया। राजनाथ सिंह ने कहा, “वंदे मातरम सिर्फ एक शब्द नहीं है, यह एक भावना है, एक दर्शन है। यह भारत के स्वाभिमान और आजादी का प्रतीक है।” उन्होंने याद दिलाया कि 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ चले व्यापक आंदोलन के दौरान ‘वंदे मातरम’ की गूंज पूरे देश में गूंज उठी थी, जिसने क्रांतिकारियों से लेकर आम जनता तक, सभी के दिलों में स्वतंत्रता की आग पैदा की।

ब्रिटिश सरकार भी घबराई

रक्षा मंत्री ने बताया कि ‘वंदे मातरम’ के प्रभाव से ब्रिटिश हुकूमत इतनी विचलित हुई कि इसके विरोध में एक विशेष सर्कुलर जारी किया गया, जिसमें इसे सार्वजनिक रूप से गाने पर पाबंदी लगाने का आदेश दिया गया। उन्होंने कहा, “इंग्लिश हुकूमत इतने दमन के बाद भी भारतीयों के मानस से वंदे मातरम को कभी मिटा नहीं सकी।”

वंदे मातरम समिति का गठन

राजनाथ सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय चेतना को दिशा देने के लिए उस समय ‘वंदे मातरम समिति’ का गठन किया गया था, जिसने आंदोलन को संगठित रूप दिया और जनसहभागिता बढ़ाई। रक्षा मंत्री ने कहा कि 1906 में जब पहली बार भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज तैयार किया गया, तब उसके मध्यभाग में ‘वंदे मातरम’ लिखा गया था। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उस समय ‘वंदे मातरम’ नाम से एक अखबार भी प्रकाशित होता था, जो स्वतंत्रता की आवाज बनकर उभरा। राजनाथ सिंह ने कहा, “वंदे मातरम ने भारतीयों में स्वाभिमान, साहस और आत्मबल जगाने का काम किया। यही वह नारा था, जो स्वतंत्रता सेनानियों के लिए अंतिम सांस तक संघर्ष की प्रेरणा बना।” उन्होंने सभी सदस्यों से आग्रह किया कि संविधान, तिरंगे और वंदे मातरम जैसे प्रतीकों का सम्मान करना हर भारतीय का नैतिक कर्तव्य है।

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