Edited By ,Updated: 13 Oct, 2020 01:58 AM
जम्मू-कश्मीर पर सर्वाधिक समय तक अब्दुल्ला परिवार और उनकी पार्टी नैशनल कांफ्रैंस का ही शासन रहा है। अब्दुल्ला परिवार की तीन पीढिय़ों के सदस्य, स्वयं शेख अब्दुल्ला, उनके पुत्र फारूक अब्दुल्ला और पोते उमर अब्दुल्ला
जम्मू-कश्मीर पर सर्वाधिक समय तक अब्दुल्ला परिवार और उनकी पार्टी नैशनल कांफ्रैंस का ही शासन रहा है। अब्दुल्ला परिवार की तीन पीढिय़ों के सदस्य, स्वयं शेख अब्दुल्ला, उनके पुत्र फारूक अब्दुल्ला और पोते उमर अब्दुल्ला प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला दोनों के ही भाजपा तथा कांग्रेस से संबंध रहे हैं। जहां वाजपेयी सरकार में उमर अब्दुल्ला विदेश राज्यमंत्री रह चुके हैं, वहीं मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार में वह अक्षय ऊर्जा मंत्री रहे। उस दौरान फारूक अब्दुल्ला की राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति बनने की चर्चा भी रही।
अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत में कुछ समय अलगाववादी संगठन जे.के.एल.एफ. से जुड़े रहे तथा तीन विभिन्न अवसरों पर राज्य के मुख्यमंत्री बने डा. फारूक अब्दुल्ला पर दोहरे व्यक्तित्व वाले राजनीतिज्ञ होने के आरोप भी लगते रहे हैं, जो कभी पूर्णत: राष्ट्रवादी दिखाई देते हैं तो कभी अपने विवादास्पद बयानों से भिन्न नजर आते हैं। अब्दुल्ला परिवार के बारे में कहा जाता है कि जब ये सत्ता में होते हैं तो सरकार के पक्ष में और सत्ता से बाहर होने पर कुछ और भाषा बोलने लगते हैं। अर्थात ये कश्मीर में कुछ बोलते हैं, जम्मू में कुछ तथा दिल्ली में कुछ और।
डा. फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने अपनी आत्मकथा ‘आतिशे चिनार’ में स्वीकार किया है कि कश्मीरी मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे और उनके परदादा का नाम बालमुकुंद कौल था। ये मूलत: सप्रू गौत्र के कश्मीरी ब्राह्मण थे और इनके एक पूर्वज रघुराम ने एक सूफी के हाथों इस्लाम धर्म स्वीकार किया था। इनका परिवार पशमीने का व्यापार करता था और अपने छोटे से कारखाने में शाल तथा दोशाले बनाकर बाजार में बेचता था। स्वयं डा.फारूक अब्दुल्ला कश्मीर के बाहर दिए गए साक्षात्कार और भाषणों में अपने पूर्वजों के हिन्दू होने का उल्लेख कर चुके हैं और उन्हें कई बार भगवान राम की पूजा करते हुए भी देखा गया है।
बहरहाल कुछ वर्ष पूर्व पी.ओ.के. को पाकिस्तान का हिस्सा बता चुके डा. फारूक अब्दुल्ला ने 25 नवम्बर, 2017 को दोहराया था कि ‘‘पाक अधिकृत कश्मीर भारत की बपौती नहीं है।’’ इसी प्रकार 15 जनवरी, 2018 को उन्होंने श्रीनगर में कहा, ‘‘पाकिस्तान की बर्बादी के लिए भारत ही जिम्मेदार है।’’ और अब 11 अक्तूबर को वर्तमान में नैशनल कांफ्रैंस के सांसद फारूक अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को लेकर विवादित बयान देते हुए मोदी सरकार के इस कदम का समर्थन करने वालों को गद्दार बताया और यह कह कर अपने चीन प्रेम को उजागर कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर में दोबारा अनुच्छेद 370 की बहाली में चीन से मदद मिल सकती है।
फारूक अब्दुल्ला ने कहा,‘‘जहां तक चीन का प्रश्न है मैंने तो कभी चीन के राष्ट्रपति को यहां बुलाया नहीं। हमारे प्रधानमंत्री ने उसे गुजरात में बुलाया, उसे झूले पर भी बिठाया, उसे चेन्नई भी ले गए, वहां भी उसे खूब खिलाया, मगर उन्हें वह पसंद नहीं आया और उन्होंने अनुच्छेद 370 को लेकर कहा कि हमें यह कबूल नहीं है।’’ ‘‘जब तक आप अनुच्छेद 370 को बहाल नहीं करेंगे, हम रुकने वाले नहीं हैं क्योंकि तुम्हारे पास अब यह खुला मामला हो गया है। अल्लाह करे कि उनके इस जोर से हमारे लोगों को मदद मिले और अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 बहाल हों।’’ स्मरण रहे कि मोदी सरकार ने 5 जुलाई, 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निष्प्रभावी कर दिया था। भारत के इस पग से तिलमिलाए पाकिस्तान और उसके साथी चीन ने इसका विरोध किया था जिस पर भारत सरकार ने उन्हें हमारे देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देने की चेतावनी भी दी थी।
निश्चय ही अनुच्छेद 370 समाप्त करने के समर्थकों को गद्दार बता कर और इसे समाप्त करने में चीन के सक्षम होने की बात कह कर डा. फारूक अब्दुल्ला ने अपना महत्व ही कम किया है। यही कारण है कि डा. फारूक अब्दुल्ला के अपने ही गृह राज्य जम्मू-कश्मीर में उनके विरुद्ध आक्रोश पैदा होने लगा है तथा भारत के विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने कहा है कि डा. फारूक अब्दुल्ला ने उक्त बयान देकर अपना राष्ट्र विरोधी चेहरा एक बार फिर उजागर कर दिया है।—विजय कुमार