Edited By ,Updated: 20 Nov, 2023 04:50 AM
इसराईल-फिलिस्तीन संघर्ष को लेकर मुख्यत: 3 प्रश्न उत्पन्न होते हैं? पहला, दशकों से मिस्र, जोर्डन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब तथा कतर आदि देशों के साथ समझौतों द्वारा शांति का प्रयास करती आ रही इसराईल सरकार को यह नीति क्या भविष्य में नुकसान नहीं...
इसराईल-फिलिस्तीन संघर्ष को लेकर मुख्यत: 3 प्रश्न उत्पन्न होते हैं? पहला, दशकों से मिस्र, जोर्डन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब तथा कतर आदि देशों के साथ समझौतों द्वारा शांति का प्रयास करती आ रही इसराईल सरकार को यह नीति क्या भविष्य में नुकसान नहीं पहुंचाएगी? दूसरा, क्या अस्पतालों पर बम हमलों से फिलिस्तीन को मिलने वाली सहानुभूति से नुकसान नहीं होगा? तीसरा क्या इस बम वर्षा और आक्रमण की नीति से इसराईल हमास का खात्मा कर पाएगा या उसके समर्थकों और रंगरूटों में वृद्धि होगी?
18 नवम्बर को ‘अल-शिफा अस्पताल’ के कर्मचारियों को 36 नवजात शिशुओं सहित वहां उपचाराधीन 300 रोगियों को एम्बुलैंसों तथा अन्य वाहनों के बगैर वहां से निकालने के लिए एक घंटे का समय दिया गया। कुछ रोगियों, जिन्हें बांहों में उठाया जा सकता था, को तो बाहर ले जाया गया जबकि शेष रोगियों को वहीं अस्पताल के अंदर छोड़ दिया गया। बेशक यह ऐसा पहला अस्पताल नहीं है जहां सैन्य कार्रवाई की गई है, अन्य अनेक अस्पतालों को भी जमींदोज कर दिया गया है।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जैनेवा कनवैंशन के अनुसार अस्पतालों, यहां तक कि ‘वारजोन’ में मौजूद अस्पतालों में भी सिविलियनों पर इस तरह के हमलों को ‘युद्ध अपराध’ करार दिया गया है। हालांकि उपचाराधीन रोगियों व डाक्टरों को मानवीय ढाल के रूप में इस्तेमाल करने को भी अपराध माना गया है परंतु तब भी उन्हें बम से मारने को युद्ध अपराध ही माना गया है। इससे भी बढ़कर हेग स्थित ‘इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट’ (आई.सी.सी.) ने अपनी धारा 8 में धार्मिक, शैक्षिक, कला, विज्ञान या लोक भलाई के उद्देश्य से चलाई जा रही संस्थाओं पर इरादतन हमला करने को युद्ध अपराध माना है। हालांकि इसराईल आई.सी.सी. का सदस्य नहीं है परंतु गाजा तथा वैस्ट बैंक इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
दूसरा प्रश्र यह पैदा होता है कि इसराईल बम बरसाने बंद क्यों नहीं कर रहा और अपने अपहरण किए गए नागरिकों के लिए क्यों नहीं बात कर रहा? हमास द्वारा 7 अक्तूबर को इसराईल की धरती पर भयानक हमले में 1200 लोगों की हत्या और 200 इसराईली नागरिकों का अपहरण कर लिया गया था, इसके बाद इसराईल द्वारा गाजा पर शुरू किए गए हमलों में 5,000 बच्चों सहित कम से कम 12,000 लोग मारे जा चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र, कतर, बहरीन और यहां तक कि अमरीका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन द्वारा 5 दिनों के युद्ध विराम और बंधकों की वापसी की अपीलों के बावजूद इसराईल ने इसे स्वीकार नहीं किया है। हालांकि नेतन्याहू की सरकार पर दबाव बनाने हेतु अपहृत नागरिकों के हजारों पारिवारिक सदस्यों ने बंदियों की रिहाई के लिए तेल अवीव से यरुशलम तक 5 दिवसीय मार्च भी किया।
भारी ठंड में गाजा में घिरे हुए 2.20 लाख लोगों को भोजन और पानी मुहैया कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों द्वारा बार-बार ‘मानवतावादी दृष्टिकोण से युद्ध विराम’ की अपील के बावजूद, सिवाय व्हाइट हाऊस द्वारा नियमित आधार पर अस्पतालों के लिए एक दिन में र्ईंधन के 2 ट्रक भेजने पर सहमति देने के सिवाय, जोकि गाजा की जरूरतों के लिहाज से नाममात्र हैं, इसराईल ने किसी भी अन्य अपील को स्वीकार नहीं किया है। अब वे दक्षिणी गाजा सहित इस क्षेत्र के किसी भी भू-भाग की ओर कार्रवाई के लिए बढ़ेगा। यहां हमें नहीं भूलना चाहिए कि पहले ही इसराईल 20 लाख लोगों को उत्तर से दक्षिण गाजा की ओर भेज चुका है। 7 अक्तूबर को इसराईल पर हमले की अरब और व्यापक मुस्लिम जगत द्वारा ही नहीं बल्कि विश्व व्यापी स्तर पर निंदा की गई थी। कतर और मिस्र जैसे अनेक देशों ने तो हमास के अपराधियों को पकडऩे में सहायता की पेशकश भी की।
अरब टैलीविजन ने गाजा के लोगों की पीड़ा व विनाश के दृश्यों तक को छुपाया पर इसराईली हवाई और जमीनी हमलों से मौतों की संख्या 12,000 तक पहुंच जाने और सोशल मीडिया द्वारा यहां के लोगों की पीड़ा दुनिया के सामने लाने पर जोर्डन से ओमान और मिस्र से मोरक्को तक अरब देशों में ही नहीं यूरोप और अमरीका सहित फिलिस्तनियों के समर्थन में युद्ध विराम पर बल देने के लिए हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं। मध्य पूर्व में नागरिक अपनी सरकारों द्वारा इसराईल के साथ किए गए शांति समझौते को समाप्त करने की मांग भी कर रहे हैं परंतु जनता के दबाव के बावजूद अमरीकी दबाव के कारण अब तक अरब देशों की सरकारों ने इसराईल के विरुद्ध कोई कठोर कदम नहीं उठाया है। इस घटनाक्रम के बीच एक षड्यंत्र की थ्योरी भी सामने आ रही है जिसमें यह कहा गया है कि गाजापट्टी तथा वैस्ट बैंक पर इसराईल इसलिए कब्जा करना चाहता है क्योंकि यहां तेल और कुदरती गैस के काफी भंडार हैं।
एक अन्य थ्योरी के अनुसार इसराईल, फ्रांस, इंगलैंड और अमरीका यहां स्वेज नहर के विकल्प के रूप में जलमार्ग कायम करने के लिए ‘बेनगुरियन नहर परियोजना’ कायम करना चाहते हैं जिससे इसराईल को अरबों डालर की आय हो सकती है। इसलिए जिसके लिए इसराईल का गाजा पर कब्जा करना जरूरी है। इसलिए कोई युद्ध विराम की बात नहीं हो रही। प्रश्न उठता है जबकि अमरीका के 36 राज्यों में ऐसे कानून हैं कि इसराईल के विरुद्ध बात या प्रदर्शन करने पर सजा दी जा सकती है परंतु फिर भी लोग सड़कों पर उतर गए हैं। वहां पर ही नहीं इंगलैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा में भी शांति की मांग हो रही है। क्या इसराईल और अमरीका को अपनी आक्रामकता की नीति का त्याग करके एक समाधान केंद्रित नीति अपनाने का समय नहीं आ गया?